Saturday, April 2, 2011

क्रिकेटशाला

सुन, ठकठक, ठुकठुक बल्ले से गिरती रनों में हाला, सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती क्रिकेटबाला, बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है, चहक रहे देखनेवाले, महक रही क्रिकेटशाला। हर बल्ले की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला, दबी आरजू है, मत इसको कह देना उर का छाला, दर्द नशा है इस जूनून का विगत स्मृतियाँ साकी हैं, पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए ये क्रिकेटशाला। लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी क्रिकेट, हर्ष-विकंपित कर से जिसने न छुआ गेंद और विकेट, आगे बढ़ लज्जित बोलर को छक्का जिसने न मारा, व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने अपनी क्रिकेटमय क्रिकेटशाला। बने पुजारी धोनी युवी, जाकी भज्जी रखवाला, रहे फेरता अविरत गति से विकेट रनों की माला' 'छक्का चौका दूसरा गुगली', इसी मंत्र का जाप करे' सचिन शिव की प्रतिमा बन बैठा, मंदिर है ये क्रिकेटशाला। मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल चौका मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल छक्का, मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची क्रिकेटशाला। मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में क्रिकेट आह भरे वो, जिसने लिया हो कम से कम एक विकेट, दे मुझको वो कांधा जिनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो क्रिकेटशाला। और चिता पर जाये उंढेला रनों विकेटों का प्याला पैर बंधे हो पेड्स में हाथों में ग्लव्स और बल्ला, प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना खेलने वालों को बुलवा कर खुलवा देना क्रिकेटशाला। नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस क्रिकेटवाला काम ढालना, और ढालना सबको क्रिकेट का प्याला, जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना गेंदों की ले माला जपना क्रिकेटशाला। पितृपक्ष में मित्र उठाना अर्घ्य न कर में पर बल्ला किसी खिड़की की कांच टूटे तृप्ति मुझे मिल जाएगी तर्पण अर्पण करना मुझको पढ़ पढ़ कर क्रिकेटशाला। - अमिताभ रंजन झा Dedicated to every diehard fan of cricket. Inspired from Madhushala

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