Friday, August 15, 2014

Happy Independence Day!



भारतवर्ष की संतान
भारतवर्ष की तू है संतान, ये बात कभी भी तू भूले न।
ऐसे करना काम महान, मन ख़ुशी से समाये फूले न।।
एक मुख दो आंख-कान, दस उंगलिया दिए विधाता ने।
कम बोल देख सुन, कर काम, व्यर्थ समय गंवाए न।।

किसी हाल में कोई बुराई तुझको कभी बहकाए न।
मुस्कान, स्वाभिमान तो हो, अभिमान छू पाए न।।
जीवनपथ में भेड़िये मिलेंगे, सिर्फ मिलेंगे भेड़ ही न।
संयम से तू चले बढे, किसी हाल में भी घबराये न।।

दृढ़ विश्वास से सब संभव, असंभव तुझे झुकाए न।
साहस धीरज से रहना तू, रोड़े कदम रोक पाए न।।
तू जाये आगे उस पथ भी, जहा भय से कोई जाये न।
आगे बढ़ते जाना तू, क्या हुआ जो कोई संग आये न।।

जब तक न मंजिल हासिल हो, न रुके तू सोये न।
मुश्किल हो तो खूब लड़े, न थके-रुके तू रोये न।।
एक मुकाम हो जब हासिल आलस से सुस्ताये न।
कामयाबी जश्न हो बेशक, प्यास कभी बुझाए न।।

भारतवर्ष की तू है संतान, ये बात कभी भी भूले न।
ऐसे करना काम महान, मन ख़ुशी समाये फूले न।।
सूरज, चाँद, सितारे सारे चमक तेरी घटा पाए न।
ब्रह्माण्ड सदा याद रखे, इतिहास कभी भुलाये न।।


ज़श्न-ए-आज़ादी

ज़श्न-ए-आज़ादी पर हसरत, सख्त मेहनत मशक्कत
गरीबी बदहाली को फुर्सत, अम्नोखुशहाली को बरकत
मालिक की हो इनायत, बख़्शे नेक किस्मत निहायत
यार परिवार के संग मिल कर तबियत से हो दावत
नफरत और कड़वाहट हो हमेशा के लिए रुखसत
वतन-ए-मोहब्बत में हमें शहादत की हो हिम्मत

पड़ोसी के लिए अक्ल की चाहत, वो बदले फितरत
हम दें दोस्ती की दस्तक, प्यार इजहार की आहट
सियासत-ए-अमन की दीन ईमान से हो इज्ज़त
जी जान से हो कसरत, रख लिहाज़-ए-इंसानियत
छोड़ उसूल-ए-हुकूमत जो ढाए मासूमो पे क़यामत
कर बंद बुरी हरकत वरना लोग करेंगे बगावत

पर याद रख हजरत न हो गुस्ताख हिमाकत
गर लड़ाई की जुर्रत खाक होगी तेरी किस्मत
अमन पसंद हैं हम, इसलिए इसकी वकालत
लड़ाई कभी नहीं रही हमारे हिन्दुस्तां की चाहत
सबके लिए दुआ है और पैगाम-ए-सदाकत
ज़श्न-ए-आज़ादी पे हमारी है आज ये हसरत

- अमिताभ रंजन झा



मेरे सपनों का भारत

हर चेहरे पर मुस्कान हो
हर हाथों को काम हो|
गगन चुम्बी स्वाभिमान हो
हर भारतवासी कीर्तिमान हो||

वाणी में मिठास हो
सफलताओ की प्यास हो|
आलस्य को अवकाश हो
अनगिनत प्रयास हो||

कृषि का विकास हो
मंजिले आकाश हो|
अज्ञानता का नाश हो
हृदय में प्रकाश हो||

आतंक का संहार हो
अहिंसा का व्यवहार हो|
सबको सबसे प्यार हो
ऐसे संस्कार हो||

अन्न का भंडार हो
नित्य नए अविष्कार हो|
शिक्षा का संचार हो
प्रगति का विचार हो||

ज्ञान का सम्मान हो
विज्ञान का उत्थान हो|
रोगों की रोकथाम हो
भ्रष्टाचार का न निशान हो||

मुख पर मोहक हर्ष हो
और भीषण संघर्ष हो|
सद्भाव का व्यवहार हो
किन्तु पराजय अस्वीकार हो||

नित्य नूतन प्रयोग हो
संसाधनों का सदुपयोग हो|
खोयी प्रतिष्टा पुनर्जित करे
लक्ष्य नए निर्धारित करे||

हर भारतीय आगे बढे
हरसंभव यत्न करे|
सौ बार हो विफल
एक और प्रयत्न करे||

मिल के ये ले शपथ
चलेंगे हम प्रगति पथ|
फिर ये स्वप्न साकार हो
और ऐसा चमत्कार हो||

- अमिताभ रंजन झा