Saturday, January 14, 2017

व्यंग - राजनीतिज्ञ की दूध दुहने की प्रतियोगिता

राजनीतिज्ञ दुहने में माहिर होते है।
नहीं होते तो शीर्ष पर नहीं पहुंच पाते।

शायद इस तथ्य से प्रेरित होकर
आयोजकों ने
मंगल ग्रह पर एक बार
अखिल ब्रह्माण्ड के
जाने माने राजनीतिज्ञ द्वारा
दूध दूहने का प्रतियोगिता आयोजित किया

सब नेता को अपना परिचय देना था
और
उनका नाम कैसे पड़ा
ये बताना था
और फिर दूध दूहना था।

एक से एक धुरंधर आये,
परिचय, नाम का कारण बताये
और फिर दूध का झड़ी लगा दिये।
पाँच, दस, बीस, पच्चीस लीटर।

खुराक देबामा जी का नंबर आया।
खुराक ज्यादा था बचपन से ही।
चौबीस घंटे माँ का दूध पीते रहते थे जब बच्चे थे।
जब से बोलना सीखे
हरदम कहते खुराक देबा माँ।
सो नाम पड़ गया खुराक देबामा।
बड़े हो गए हैं,
शादी भी हो गयी है, दो बेटी भी है।
लेकिन दूध खुराक अभी भी वही है।
पहले कहते खुराक देबा माँ
अब कहते हैं खुराक देबा बुच्ची के माँ?
आने के साथ ही
जितनी भी महिला वहा उपस्थित थीं
सबको सबसे खूबसूरत कहते गये।
महिला लोग को बुरा नहीं लगा
लेकिन मीडिया को बर्दाश्त नहीं हुआ।
हंगामा मचा दिये।
देबामा जी माफ़ी मांग के आगे बढ़े।
ऐसे ही परेशां थे,
वाइट हाउस से निकलना था
सदा के लिए।
सोच रहे थे
हिलेरी कीर्तन का हाल
लाकी अडवाणी वाला हो गया
ये बुड्ढी प्रेजिडेंट इन वेटिंग
वो बुड्ढा पीएम इन वेटिंग
सदा के लिए।
खैर,
आये एकदम गंग्नम स्टाइल में,
लाये अपनी जर्सी गाय
आ धराधर दूह दिए चालीस लीटर।

फिर निरंतर गोदीजी आये।
बताया बचपन से
निरंतर गोदी में रहते थे
सो नाम पड़ा।
गोदी में अब भी कुछ लोग लेना चाहते हैं,
मीडिया, भ्रष्ट, स्वार्थी, लोग।
काला धन काला मन वाले लोग।
मित्रों और जनता को धन्यवाद दिया
प्रतियोगिता देखने उमड़े
अपार भीड़ को
नोटबंदी के समर्थन के लिए
ह्रदय से धन्यवाद दिया।
गोदी जी फिर पूरा मेहनत से
पंद्रह लीटर दूहे।
सेक्रेटरी से पूछे
इतना कम काहे हुआ?
काहे दिल्ली और बिहार चुनाव वाला हो गया?
सेक्रेटरी बोले
देसी गाय है
जर्सी गाय का खाल पहना के लाये हैं।
हाइप क्रिएट करना पड़ता है।
आप पंद्रह निकाल दिए,
दुसरा पांचो लीटर नहीं निकाल सकता था।
फिर सेक्रेटरी इशारा किये
भीड़ के तरफ़।
हर तरफ गोदी गोदी की गूँज।
जज पूछा कितना है?
गोदीजी इमानदारी से बोले
फ़िफ्टीन।
सेक्रेटरी सजग था,
देश की ईज़्ज़त का सवाल था। 
उनके कहने से पहले
तमाम मीडिया, समर्थक लोग
हल्ला मचा दिये,
फिफ्टी, फिफ्टी।
फिफ्टीन फिफ्टी बन गया।
बस स्कोरर उनको
देबामा जी से भी ऊपर डाल दिया।
भीड़ फिर से चिल्लाई
गोदी गोदी गोदी गोदी।
देबामा जी मन मसोस के रह गए
मन ही मन बोले
बेटा मालूम था
तू दुनिया को पीछे छोड़ देगा।
इसलिए तोहरा
कहियो हमरे इहा का वीसा नहीं दिए।
जनता पीएम बना दिया
तो मज़बूरी में देना पड़ा।

फिर नंबर आया रहल गन्दे का।
महीन स्वर में बोले
हम बच्चा में गन्दा रहे थे।
माँ कहती तू हरदम रहेलअ गन्दे।
सो नाम पड़ गया रहल गन्दे।
बोले अब भी
जब साफ़ कुरता
बर्दाश्त नहीं होता है,
देहात में जा के मिट्टी,
कचरा उठा लेते है।
तलब भी पूरा हो जाता है
आ वाहवाही भी मिल जाता है।
बीच बीच में लंबी छुट्टी ले
तन मन की सफाई के लिए
गायब हो जाते हैं।
लौटते ही गोदी जी औए उनमे
वाक् युद्ध शुरू हो जाता है।
फिर दोनों पार्टी में भी।
एक दूसरे को ऐसी ऐसी उपमा
ऐसी ऐसी गालिया, अपशब्द
दे दी जाती हैं
की स्लम में रहने वाले भी
शर्मा जाएँ।
मीडिया प्राइम टाइम में शुरू हो जाती है
लोग चैनल बदल बदल के परेशां।
खैर, राहलजी
अब भी विशेष ट्रेनिंग ले के लौटे थे।
ज्यादा ही जोश में थे।
धराधर तीस लीटर दुह दिए।
सेक्रेटरी बोलता रह गया
सर सर छोड़ दीजिये,
लोग को पता चल जायेगा
स्विट्ज़रलैंड का गाय है।
माँ माथा पकड़ के बैठी
बड़बड़ाने लगी
बोली मना किये थे,
कहे थे कम दूहो।
पर सेक्रेटरी भी शातिर थे।
इशारा किये,
भीड़ से समर्थक हल्ला करने लगे।
रहल रहल।
जज पूछा कितना?
वो बोले थर्टी।
भीड़ से गूँज आयी
थर्टीन थर्टीन।
थर्टी थर्टीन हो गया।
माँ को भी चैन आया।

फिर आया नंबर आकेलेस का।
बोले घर में जब भी बिजली काटता
नेताजी पप्पा कहते
आ के लेस डिबिया।
सो नाम पड़ गया।
दुहना शुरू करने वाले थे की
चाचा गाय को
साइकिल पर ले के
भाग गए।
आकेलेस पीछे पीछे भागे
तो चाचा अपने भाई के घर घुस गए
फिर मीडिया बुला के
भाई के हाथों
आकेलेस को बेदखल कर दिए।
आकेलेस मीडिया को बोले
चचा अपने मर्जी दोस्त से मिल
हमको औरंगजेब घोसित कर दिया।
चाचा बचपन में खिलौना छीनते थे
अब माइक छीन रहे हैं।
दुनिया उगते सूरज को पूजती है
नेताजी अस्त हो रहे हैं,
जाहिर है,
दल में सबका स्वार्थ सिद्धि
आकेलेस से ही हो सकता है।
सो दल वाले
आकेलेस के साथ हो लिए।
नेताजी को
मार्गदर्शक बना दिया गया।
न दल में समर्थन
न जन में समर्थन
फिर भी
नेताजी चाचाजी और मर्जी
ढिंट की तरह अड़े हुए।
हंसी के पात्र बने हुए।
आकेलेस अब भी
गाय और साइकिल
का इन्तजार कर रहे है।
जैसे ही दोनों मिला
दुहना शुरू कर देंगे।

फिर आये लेले प्रसाद।
बोले बचपन गरीबी में बिता।
प्रसाद खा गुजारा होता,
लोग प्रसाद देते
और कहते लेले प्रसाद,
सो नाम हो गया।
दुनिया का
सबसे दुधारू गाय ले के आये थे।
दुहने बैठे की
गाय लात मार दी।
लेले प्रसाद ऐसे ही डरे थे
कही दोनों तेज पुत्र
उनको भी
मार्गदर्शक न घोसित कर दे।
उपर से मैडम बोली
ऐ साहब
इ का हो गया।
प्रसादजी झन्ना के बोले
चुप्प, मुंह बंद।
इधर गय्या बोली
सब चारा खुद खा लेते हो
और दूध दुहने आ जाते हो।
लोग हंसने लगे
बड़ी जग हँसाई हुयी।

उसके बाद धोती कुरता पहने
बत्तीस कुमारजी का नंबर आया।
मुस्कुराए, बत्तीस दांत दिख गये।
बोले जादा नहीं बोलूंगा,
पेट से ही बत्तीस दांत है।
सो नाम पड़ गया।
इन्तजार करना पड़ा,
उनका गाय नहीं आया था।
सेक्रेटरी बोला
सर विरोधी लोग गाय भगा दिया है।
गोदी जी के दल से कुछ बोले
जरूर कसाईघर वाले का काम है।
दंगाई लोग का काम है दंगा करना।
कही बकरी के मांस खाते लोग को
पीट के अधमरा कर दिए,
कही मृत गाय को ठिकाने लगाने
वाले लोग का ठिकाना लगाने लगे।
बदले में कही योग सूर्यनमस्कार कर रहे
लोग की लगा दी गयी।
हर तरफ
हैवानों ने मासूम इंसानों की लगा दी
इंसानियत फिर से सहम गयी।
बत्तीसजी ने गोदी जी से कट्टी कर लिया
लेले प्रसाद जी अपने दोनों तेजों के साथ
बत्तीसजी से चिपक गए।
खैर
गोदीजी का सेक्रेटरी 
एक आयोजक को इशारा किये।
वो आयोजक जो दिया
बत्तीस जी उसी को दुहने लगे।
सुबह से शाम हो गया।
रात हो गया।
बेदम हो गए
लेकिन दुहते रहे।
जज उनका बाल्टी देखा
तो पता चला एक पौवा भी नहीं था।
जज हँसा,
इ हिह ही इ हिह ही
कटाक्ष से बोला
इतना देर में इतना ही?
फिर ऊपर देखा,
होश उड़ गये। इ त सांड था।
बत्तीसजी बोले
गोदीजी को ऊपर रहने दिजिये,
उनको राज्य भी
जेर्सी गाय जैसा ही मिला था।
हमरा किस्मत,
राज्य भी
मरना सन्न सांड जैसा ही मिला था।
हम तो बस भाग लेने आये हैं,
रैंक का मोह नहीं है।
लेल प्रसाद जी के दोनों तेज पुत्र
फुरफुसाये पप्पा, चचा
सांड से दूध?
बत्तीस जी बोले बुरबक,
इज्जत रखना था ना।
मेहनत कर रहे थे,
जो पसीना आ रहा था
उसको चुनौटी के चुना में
मिला के बाल्टिया में गिराते गये।
बत्तीस दांत निकाल
एक आँख दबा के इही ही ही कर दिए।
बोले
जज लोग एक हफ्ता का समय देता
तो गोदी को पीछे छोड़ देते।
सेक्रेटरी को आँख मारे
बोले
जनता सब देख रही है,
लेकिन वही जो हम दिखा रहें हैं।

फिर नंबर आया
गमथा दीदी का।
बोली जिंदगी में बहुत गम था
सो नाम पड़ गया।
गुसैल मिजाज थी,
एक बार तो गुस्सा में
टाटा को राज्य से ही
टाटा कर दिया।
दीदी के कुछ भाई लोग
कसाई बनने लगे,
व्यापारियों के लिए
चिट्ट फण्ड इन्वेस्टर के लिए।
अब भी गुस्से में थी,
धरना पे बैठ गईं।
बोली अब या तो
री-मोनिटाइजेसन होगा
या डी-मोदी-टाइजेसन।
तभी दूध दुहेंगी।

भीड़ में टोपी पहने
कुछ लोग हल्ला मचा रहे थे
हरमन केजड़ेबाल को
काहे नहीं बुलाये इ प्रतियोगिता में।
सब प्रतियोगी मुस्कराने लगे
मने मन सोच के
जो आयकर बिभाग में हो कर भी
दुहना नहीं सीख पाया
यहाँ कैसे गाय दूह पाता।
केजड़ेबाल स्टेडियके बाहर
झाड़ू ले के सफाई ही करने लगे
जब नहीं घुसने दिया लोग.
चुनाव का टाइम था
इलेक्शन कमिसन से शिकायत हो गयी
देश के सारे झाड़ू को छुपा दिया गया
तो फिर कमल, हाथी, साइकल
की भी शिकायत हो गयी।
उनको भी छुपा दिया गया।
फिर हाथ की भी शिकायत हो गयी।
तो सबको शोले का ठाकुर कुर्ता
पहनने की हिदायत दी गयी।
खैर,
केजड़ेबाल
उधर ही धरना पर बैठ गए
और एक गौ-लोकपाल बिल का स्वांग शुरू।
और बड़बड़ा रहे थे
हमरा देख के बचपने से
हर मनके जड़े बाल
एही लिए हमरा नाम हरमन केजड़ेबाल।

***********
आपके हिसाब से कहानी का
क्या शीर्षक होना चाहिये?
कमेंट करें।

अमिताभ रंजन झा