Saturday, January 12, 2013

सिक्को का गुल्लक

बूँद बूँद जमा करता रहा है ताजिंदगी
डूबा रहता है घड़ा भरने के खयालो में
इस ख्वाब से निकल पागल, नेता बन जा
पराये घड़ो से भर ले सागर चंद सालो में

कब तक रखेगा सिक्को का गुल्लक
पुरानी अलमारी के अन्दर, बंद तालों में
नेता बन और मकरी से सिख तरक़ीब
कैसे फंसाते हैं दुसरो को मकड़जालों में

कब तक नलके से भरता रहेगा पेट
ढूँढता रहेगा स्वाद बासी निबालों में
नेता बन देश चला दिन के उजाले में
अँधेरे में डूब गालों में बालों में प्यालों में

-अमिताभ रंजना झा

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