Saturday, December 31, 2011
सपरिवार नव वर्ष की शुभकामनाये!
परिचित, अपरिचित, दोस्त, दोस्त ए चड्डी
उनके जीवनसाथी, मम्मी, डैडी, गुड्डा, गुड्डी
थोडा दिमाग का दही थोड़ी सी हो जाये गुदगुदी
तो मेहरबान, कदरदान, या कबाब में हड्डी
सफल, विफल, काबिल या कभी फिसड्डी
जेब में सिक्के या हो नोटों की गड्डी
सबल, निर्बल, विनम्र या थोड़े घमंडी
पहने कुछ भी, कोट, शाल या बंडी
पसीने से हो लतपथ या लग रही हो ठंडी
करे सब निछावर या मारते हो थोड़ी डंडी
सबको नव वर्ष की हरी झंडी!
आप सबको सपरिवार नव वर्ष की शुभकामनाये!
-अमिताभ रंजन झा
Also I would like to share the poem I composed on the eve of last new year!
नववर्ष का स्वागत
बीता ये साल,
छोड़े सब मलाल,
नववर्ष के स्वागत
में आ झूमे गायें|
नंगे है तन,
भूखे है जन,
पर उम्मीद का दिया
कभी बुझने न पाए|
लाखो हो मुश्किलें,
मिल के हम चले,
सपनो का वतन
मेहनत से बनाये|
आ ले ये कसम,
जब तक दम में दम,
भारत का तिरंगा
झुकने न पाए|
हौसला रहे अटल,
हर प्रयास हो सफल,
नव वर्ष में सबको
हार्दिक शुभकामनाएं|
- अमिताभ रंजन झा
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