Saturday, July 6, 2013

गगन चूमने की इक्षा

तेरे मस्तक को चूमने की इक्षा

ह्रदय में सदा से रही है गगन|

वर्षों से श्रम में अथक लगा हूँ

दिन रात हो कर मैं मगन||


किन्तु थक गया हूँ अब बहुत

भरसक ये अंतिम प्रयास मेरा|

जोर से मैं उछलू बाहें खोले

तुम भी कुछ सर झुकाना तेरा ||



- अमिताभ रंजन झा

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