Thursday, July 11, 2013

जन्मदिन की दुविधा


जन्मदिन पर एकांत में जब हूँ
हृदय मुझ से ये प्रश्न उठाए,
क्या किया है अब तक हासिल
जो इस दिवस को मनाए?

इर्ष्या महत्वकांक्षा जैसी बहने
मेरी दुविधा और बढ़ाए।
क्या खोया है क्या पाया है
मन-मस्तिष्क हिसाब लगाए।।

कभी सुख, सफलता का व्यंजन
विधाता थाली में सजाए।
कभी दुःख, विफलता की मिर्ची से
हमारे अन्दर आग लगाए।।

एक वर्ष और जीवन का
अपने अपनों के संग बिताए।
आओ इसकी ख़ुशी मनाए
सबका प्रभुका आभार जताए।।

अच्छी स्मृतियों को अपने
मानस पटल के एल्बम में सजाए।
बुरी यादों के चित्रों को फाड़-फाड़ कर
अंतर अग्नि में जलाए।।

पांव छुए और हाथ मिलाए
गले लगे और गले लगाए।
अगला बरस हो और भी अच्छा
सबसे ये शुभकामना पाए।।

- अमिताभ रंजन झा



No comments:

Post a Comment