Tuesday, October 19, 2010

चाँद बेदाग

सुनहरी आग तू
चाँद बेदाग तू
सफ़ेद मेहताब तू
इश्क बेहिसाब तू|

उभरता शवाब तू
हुस्न लाजवाब तू
हसीन रुवाब तू
नशीली शराब तू|

एक पाक किताब तू
सुबह का आफताब तू
वजह ए बेताब तू
मेरी मन्नत का जवाब तू|

दुनिया के लिए ऐतराज तू
मेरी जन्नत का रिवाज तू
ज़माने के जले पर तेजाब तू
पर मेरे हर मर्ज का इलाज तू|

मेरी गुलाब तू
मेरी नाज तू
मेरी हमनवाज़ तू
मेरी हमराज तू|

मेरे आँखों का हिजाब तू
मेरे होठों का रियाज तू
मेरी दिल की आवाज तू
मेरी हसीन ख्वाब तू|

- अमिताभ रंजन झा

Saturday, October 9, 2010

आसमान के पंछी चंचल

India is on fast track of success and the credit goes to the hard work of the infinite daughters and sons of the soil. This poem is dedicated to each and every Indian!

ओढ़ने को ले एक कम्बल
खाने को कुछ फुल और फल|
आगे बढते रहते हर पल
बदल रहे वो भारत की शकल||

जीवन उनका संघर्ष का जंगल
पग पग रखते संभल संभल|
जब ये दिखाए ताकत और अकल
दुनिया झाकें अगल और बगल||

जैसे जैसे होते वो सफल
होता जाता ऊँचा मनोबल|
बढ़ता जाता उनका आत्मबल
जैसे बहती झरना कलकल||

और कभी जो होते विफल
न मन को होने देते दुर्बल|
यदि कभी जो होते विकल
नहीं गिराते आँखों से जल||

नींद से जब होता तन बोझल
और थकान जब रहता मसल|
जहा कोई हो घना सा पीपल
वही लेट जाते दल बदल||

कंधे पर ले भारत का हल
पीते जाते घातक हलाहल|
नहीं सोचते कल आज कल
रोपते जाते अनगिनत फसल||

आसमान के पंछी चंचल
उड़ते ऊँचा चीर के बादल|
भरते जाते मातृभूमि का आँचल
करते जाते जन्भूमि का मंगल||

- अमिताभ रंजन झा