Sunday, December 19, 2010

सौ सौ नमन जर्मनी

हिमपात एवं भीषण शर्दी यूरोप के जीवन को कितना कठिन बना देती है, अंदाज नहीं था। छह महीने ठण्ड, बर्फ और अन्धकार में डूबे रहने के बाबजूद यहाँ के लोगो ने इतनी तरक्की की है। इनसे सीख मिलती है कि कठिनाइयों का समाधान करो और आगे बढ़ो। एक कविता इनको समर्पित।

करकराती सर्द में,
बर्फीली चादर तले,
प्रकृति की आगोश में,
चलती रहे जर्मनी!

सूरज देर से जगे,
रात जल्द आये तो क्या?
किसी भी हाल में कभी
रूकती नहीं जर्मनी!

गर्मी के मौसम में
जल्द आ टपके सवेरा,
चाँद लेट लतीफ़ तो क्या?
शिकायत करती नहीं जर्मनी!

युद्ध ने था लुटा कभी,
पर हौसला न टूटा कभी!
कड़ी मेहनत और लगन से
फिर से उठी जर्मनी!

जीवन में ग़म हो या ख़ुशी,
आसान हो या मुश्किले,
बढ़ते रहे हम सदा
सिखाती हमे जर्मनी!

अमेरिका के उद्योग में,
भारत के छोटे गाँव में,
दुनिया के कोने कोने में,
दिखती है तकनीक जर्मनी!

बटन दबाके हो हर काम,
ज्ञान-विज्ञान से जीवन आसान,
छाई विकास,ऐश्वर्य और ख़ुशी,
यूँही सदा रहे जर्मनी!

लोग सीधे और सच्चे,
अपराध का निशां नहीं,
मेहनत यहाँ पहचान है
सौ सौ नमन जर्मनी!

- अमिताभ रंजन झा

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