Sunday, January 1, 2012

नवदिवस की प्रथम लालिमा

आकाश में एक दिन मैंने
चंदा को जब गिरते देखा,
आँखें मेरी फटी रह गयी
रगों में मेरे रक्त थम गया|

जोर से भागा उसे लपकने
सूरज ने झट किरण पसारी,
बांह फैलाये दौड़ा सवेरा
बादल भी खोले आँचल आया|

ठोकर खा के मैं तो गिर गया
पर ऊपर देखा राहत पाया,
मेघा अरुण की गोद में
था सुरक्षित भोला चंद्रमा|

पूर्णेंदु यूँ तो चहक रहा था
नींद से पर थी बोझिल आँखें,
झिलमिल किरणों के दामन में
छुपकर नटखट हंस भी रहा था|

पूरी रात जो की थी शरारत
थक के बिलकुल चूर हुआ था
शनैः शनैः गहरी निद्रा में
बेफिक्री से फिर सो चूका था|

मैं नींद से जागा फिर उस पल
आँख रगड़ते उठ के बैठा,
बाहर खिड़की से देखा, पाया
नवदिवस की प्रथम लालिमा|

और छोटी सी मेरी ऐश्वर्या
जागकर मुझसे लिपट रही थी,
कानों में शायद फ़ुसक के मेरे
नया दिन मंगल कह रही थी|

-अमिताभ रंजन झा

नया साल मंगल हो!

आकाश, ऐश्वर्या और हर बच्चे को समर्पित! उनके उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना!

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