गांव के दिन याद आते हैं.
चाँद पंक्तियाँ उन यादों को समर्पित है.
गांव की हवेली का
हर राज पुराना है|
रौशन था जो आँगन
आज वीराना है||
मीठी सी यादे हैं
रोने का बहाना है|
छोड़ा हमने देस
रोटी जो कमाना है||
गांवों के बीते दिन
अब नया जमाना है|
अजनबी शहरों में
हर शख्श अनजाना है||
नेकी, सादगी, संतोष
बात बचकाना है|
दौलत, शोहरत, ताक़त
सफलता का पैमाना है||
रह जाये न पीछे
दौड़ लगाना है|
ठोकर खा के जो गिरे
संभल कर उठ जाना है||
सब दाव लगाकर
किस्मत आजमाना है|
हार नहीं सकते
मुंह जो दिखाना है||
खुद को भुलाना है
मुखौटा लगाना है|
यूँही मुस्कुरा कर
हर दर्द छुपाना है||
पर मन में एक लगन
घर वापस जाना है|
हाथों में ले मिटटी
माथे पे लगाना है||
दिन हफ्ते रुक कर
दिल को बहलाना है|
भारी मन फिर से
उसी शहर में आना है||
हवा, हरयाली, अपनापन
सपना रह जाना है|
शहरों के दरबे में
उम्र बीताना है||
- अमिताभ रंजन झा
चाँद पंक्तियाँ उन यादों को समर्पित है.
गांव की हवेली का
हर राज पुराना है|
रौशन था जो आँगन
आज वीराना है||
मीठी सी यादे हैं
रोने का बहाना है|
छोड़ा हमने देस
रोटी जो कमाना है||
गांवों के बीते दिन
अब नया जमाना है|
अजनबी शहरों में
हर शख्श अनजाना है||
नेकी, सादगी, संतोष
बात बचकाना है|
दौलत, शोहरत, ताक़त
सफलता का पैमाना है||
रह जाये न पीछे
दौड़ लगाना है|
ठोकर खा के जो गिरे
संभल कर उठ जाना है||
सब दाव लगाकर
किस्मत आजमाना है|
हार नहीं सकते
मुंह जो दिखाना है||
खुद को भुलाना है
मुखौटा लगाना है|
यूँही मुस्कुरा कर
हर दर्द छुपाना है||
पर मन में एक लगन
घर वापस जाना है|
हाथों में ले मिटटी
माथे पे लगाना है||
दिन हफ्ते रुक कर
दिल को बहलाना है|
भारी मन फिर से
उसी शहर में आना है||
हवा, हरयाली, अपनापन
सपना रह जाना है|
शहरों के दरबे में
उम्र बीताना है||
- अमिताभ रंजन झा
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