नरेन्द्र मोदी को गुजरात चुनाव में निर्णायक विजय के लिए बधाई देता हूँ. निःसंदेह वो गुजरात में सर्वोपरि हैं.
पर कुछ डाटा प्रस्तुत करता हूँ नीचे तस्वीर में.
(Source NDTV)
ध्यान से देखिये तो बीजेपी हर तरफ माइनस में है.
हैरत कि बात है कि कांग्रेस प्लस में है, वो भी इतने घोटाले, भ्रस्टाचार, अव्यस्था, महंगाई और नाकामियों के बावजूद.
मन में सवाल आता है.
बीजेपी क्यों नहीं कांग्रेस के नाकामी का चेक भुना पाई? नीचे की तस्वीर बीजेपी कि स्तिथि बताती है.
Source: Wiki
बीजेपी कमजोर कांग्रेस को भी पटकनी नहीं दे पा रही है. कर्नाटक में किरकिरी हो रही है. बाकी दक्षिण में कोई पूछने वाला नहीं. यू पी में नामोनिशान नहीं. बिहार में नीतीशजी के रहमो करम पर है.
कारण हो सकता है कि बीजेपी न तो कांग्रेस से अलग लगती है न ही कुछ अलग करती है.
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी सरकार गवा बैठी. मोदी का जादू भी चल नहीं पाया. ये हार गुजरात के बाहर मोदी के अस्तित्व पर, उनके प्रभाव पर प्रश्न नहीं लगाता? बीजेपी कभी इतना कमजोर नहीं था. क्या पार्टी मर रही है? जब अडवानीजी और अटलजी अपने चरम पर थे तो उनका प्रभाव देश के कोने कोने में दीखता था. अटलजी रिटायर हो गए, अडवानीजी ने जिन्ना प्रकरण में अपने पांव पर कुल्हारी मार ली. तब से पार्टी उस कद के नेता के लिए तरस रही है. मोदी वो चमक राष्ट्रीय स्तर पर दिखा नहीं पाए हैं. गुजरात के बाहर उनका प्रभाव नगण्य दिखता है.
यदि मोदीजी का गोल गुजरात में सिमटे रहना है तो वो कम से कम अगले पांच साल तक कामयाबी का जश्न मानाने के लिए स्वतंत्र हैं.
पर यदि मोदी की आकांक्षा दिल्ली है तो उन्हें गुजरात छोड़ना चाहिए. दिल्ली बसना चाहिए. नए सिरे से बीजेपी के उत्थान के लिए काम प्रारंभ करना चाहिए. देश भ्रमण करना चाहिए. नयी शुरुवात एक घोषणा के साथ कि गुजरात जीत के दिया बीजेपी को, अब हिन्दुस्तान देंगे.
पर क्या वो ये कर पाएंगे?
एक व्यवसायी समाज से होने के कारण ये कदम आसान नहीं होगा उनके लिए. व्यवसायी नफा नुकसान सोचते हैं, रिस्क से बचते हैं, पाई पाई का मोह रखते हैं. दिल्ली की गद्दी दूध को फूंक फूंक के पीने वाले और अपने घर में शेर बनाने वाले हासिल नहीं कर सकते. दिल्ली की गद्दी या तो विरासत में मिलती है या कर्म से या मज़बूरी से. विरासत उनके पास है नहीं, मज़बूरी या रहम शायद उनको कबूल न हो. रास्ता बचता है कर्म का.
मोदीजी को फिर से बधाई और शुभकामना.
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