आज मैं आपको कहानी सुनाऊंगा बैजू और भोलू की|
इससे पहले मैं ये स्पष्ट कर दूं कि कहानी के सारे पात्र काल्पनिक है|
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बैजू और भोलू
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एक समय की बात है, एक गांव था, हरा-भरा और खुशहाल| उस गांव में दो परिवार पास-पास रहते थे| दोनों परिवार में मधुर सम्बन्ध थे, आना-जाना था, खान-पीन था, सुख-दुःख का साथ था| परिवार के बुजुर्ग दादाजी लोग साथ गप्पे लड़ाते, शतरंज खेलते| दादियाँ सवेरे साथ-साथ पूजा के फूल तोड़ने जाती, शाम आरती के गीत साथ-साथ गातीं| पिता साथ खेत में काम करने जाते, माँ साथ मंदिर जातीं|
संयोग या विडम्बना कहिये, दोनों परिवार अगले पीढ़ी के संतान का इन्तजार बरसों से कर रहे थे| वे मन्नते मांगते, फरियाद करते, पर पूरी न होती| आखिरकार चौदह साल कांवर लेकर, वैद्यनाथ बाबा के दर्शन के बाद दोनों परिवार की मन्नत पूरी हो ही गयी| बाबा की कृपा से दोनों परिवार को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुयी| संयोग देखिये, एक ही दिन, एक ही घडी में| एक सेकंड का भी अंतर नहीं| परिवारों ने दोनों बच्चो का नाम बाबा के नाम पर रखा, वैद्यनाथ सिंह (बैजू) और भोलानाथ सिंह (भोलू)| एक बहुत ही प्रसिद्ध ज्योतिषराज से बच्चो की जन्मकुंडली बनवाई गयी जिन्होंने बताया की दोनों बच्चे जगत में बहुत नाम कमाएंगे|
बच्चे बड़े होने लगे| खाते-पीते घर से थे सो अच्छी परवरिश होती रही, प्रभु के कृपा से किसी चीज़ की कमी नहीं हुयी| समय बदला, जैसा कि पड़ोसियों में होता है, दोनों परिवार अपने बच्चे को अच्छा साबित करने में पीछे नहीं छूटते जिसका असर बच्चों पर भी होता गया | दोनों बच्चे साथ खेलते, कभी लड़ भी जाते| जब भी कोई खेल या प्रतियोगिता या इम्तिहान की बात होती, बैजू फटाक से भोलू को कहता, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| दोनों अपनी जान लगा देते किन्तु जीत हमेशा बैजू सिंह की ही होती| ये सिलसिला उनके से बचपन से शुरू हुआ और चलता रहा| बैजू हमेशा जीतता रहा, अव्वल आता रहा| भोलू हमेशा दुसरे नंबर पे रहता और इसे ही अपनी नियति मान लेता| दोनों बड़े होते गए|
उसी समय महापराक्रमी दारा सिंह जी का उदय हुआ और दोनों बच्चे ने उनसे प्रभावित होके कुश्ती को अपना धर्म बना लिया| दोनों साथ लड़ते, अभ्यास करते| दोनों ने काफी प्रगति की| विद्यालय के स्तर से शुरुवात हुयी, फिर गांव, शहर, जिला, राज्य, और राष्ट्रीय स्तर पर जा पहुचे| किन्तु भोलू कभी बैजू से न जीत पाया| और एक दिन आया की दोनों का एशियन गेम्स के लिए चयन हो गया| दोनों फ़ाइनल में भी पहुच गए| बैजू ने वहा भी भोलू को माँ के दूध के हवाला दिया| दोनों जोड़ से लड़े| जैसा की होता आया था, जीत बैजू की ही हुयी| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए गर्व की बात थी, स्वर्ण और रजत दोनों हासिल हुए| लोगों ने वापसी पे उनका पुरजोर स्वागत किया| सरकार, और निजी कंपनियों ने उन्हें इनामों से मालामाल कर दिया| दोनों मायानगरी में जुहू के पास एक आलीशान अपार्टमेन्ट में आमने सामने के घर में आ गए| अपार्टमेन्ट का माहौल मोहक, मादक और आकर्षक था, बोलीवुड के बहुत सारे अभिनेता, अभिनेत्री, नर्तक, नर्तकी, मॉडल इसकी चहल पहल को और बढ़ाते|
दो साल बाद ओलंपिक गेम्स हों वाले थे| बैजू ने घर में ही अखाडा और जिम बना लिया था| दिन रात मेहनत करता, शायद ही कभी अपार्टमेन्ट से बाहर निकलता| भोलू पड़ोस में एक आधुनिक जिम में जाता| वही उसकी मित्रता बॉलीवुड की उभरती हुयी अभिनेत्री से हो गयी| दोनों अक्सर जिम में मिलते, फिर धीरे धीरे बाहर भी मिलने लगे| एक दिन दोनों ने शादी कर ली और ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे| कुछ दिन बाद भगवन ने उन्हें एक औलाद भी दे दी|
बैजू और भोलू दोनों ओलंपिक के लिए जी तोड़ मेहनत करते रहे और एक दिन आया की दोनों का चयन भी हो गया| ओलंपिक में दोनों ने बड़े-बड़े पहलवानों को चुनौती दी, धुल चटाया और, खूब लड़ा और सेमी फ़ाइनल तक पहुँच गए| बैजू दुसरे स्थान पर था और भोलू चौथे स्थान पर| सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए ख़ुशी का पल था और लोग स्वर्ण और रजत पदक की कल्पना से अभिभूत थे| सेमी फ़ाइनल में प्रतिद्वंद्वी उनसे भारी पड़े और कड़े मुकाबले में दोनों पराजित हो गए| देश के लिए गम का माहौल था तो संतोष भी की सौ कड़ोड़ की आबादी वाले देश के लिए कम से कम एक कांस्य पदक पक्की है| अब कांस्य पदक के लिए चिर प्रतिद्वंधियों को आपस में लड़ना था|
मैच शुरू होने को था, दोनों पहलवान रिंग में थे| बैजू ने शरारत से फिर भोलू की कान में कहा, माँ का दूध पिया है तो आ जा मैदान में| मैच शुरू हुआ, पहला राउण्ड, दूसरा, तीसरा, हर राउण्ड में भीषण मुकाबला होता रहा| बैजू चकित था, उसे भोलूसे कभी इतना प्रतिरोध नहीं मिला था| दूरदर्शन पर मैच देख रहे बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक विस्मित थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक अचंभित| और अब अंतिम राउण्ड आ चुका था| मैच शुरू हुआ, कड़ा मुकाबला, परम संघर्ष, पुरजोर प्रयास| दोनों एक दुसरे को पछाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे, अंतिम कुछ पल बाकी थे, दोनों बेदम हो चुके थे और जमीन पर थे, उठ नहीं पा रहे थे , और अंतिम गिनती चल रही थी| फिर ये क्या हुआ? भोलू ने हिम्मत बटोर कर बैजू की तरफ मुंह किया, उस पर कूदा और उस को चित्त कर दिया| बैजू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में शोक के आंशु थे तो भोलू के परिवार वाले और प्रशंसक की आँखों में हर्ष के| ऐसा कभी हुआ न था, अनहोनी हुई, भोलू विजय हुआ|
बैजू टूट गया, शोक में डूबा रहा| पर बैजू मन का मजबूत था, मन में ठान लिया, अगले प्रतियोगता में देख लेगा| और दुनिया को भूल कर फिर से कड़ी मेहनत में लग गया| फिर कॉमन वेल्थ गेम्स हुए, भाग्य देखिये यहाँ भी बैजू भोलू से पराजित हो गया| अब ये सिलसिला चलता रहा, समय का पहिया घूमता रहा, वो कभी भोलू से जीत न पाया| एक समय आया दोनों रिटायर हो गए|
बैजू ने शादी कभी की नहीं, बिलकुल अकेला रहा, और हार का संताप| बैजू बीमार रहने लगा| एक दिन डॉक्टरों ने जवाब दे दिया| बैजू ने भोलू को बुलाया और उस से पूछा, आखिर क्या हुआ कि उस ओलंपिक मुकाबला के बाद वो कभी उस से जीत न पाया? भोलू मुस्कुराया और उसके कान में कुछ फुसफुसाया| बैजू चकित रह गया, उसकी आँखे खुली रह गयी और उस के कानों में भोला की आवाज गूंजने लगी "बैजू तुने सिर्फ माँ का दूध पिया| तुमने सिर्फ खेल पर ध्यान लगाया और अपनी दूसरी जरूरतों को कभी पूरा नहीं किया| जीवन में सफल होने के लिए व्यक्तिगत विकास, स्वास्थय, सम्बन्ध, मित्र, मनोरंजन इत्यादि भी अवश्यक हैं| जब जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है तो ये मनोबल बढ़ाने में, तनाव दूर करने में काम आते है|" पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत| उसने वही प्राण त्याग दिए|
- अमिताभ रंजन झा
Sunday, September 26, 2010
बैजू और भोलू
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