प्रिय
प्रिय
मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
भाग्य की लकीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो
मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
तुम नृत्य हो झंकार हो
तुम ही मेरी उपहार हो
मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पे रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
संगीत सी बजती रहो
तुम सदा संजती रहो
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Another version
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मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
दिवा-रात्रि सर्वदा
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
प्रहर घटिका कला काष्ठा
तिथि पक्षायन वर्ष युग में
तुम से ही तौक़ीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो
मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
सोम मंगल बुद्ध वृहस्पत
शुक्र शनि रविवार हो
तुमसे ही उपहार हो
तुमसे ही उपहार हो
मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पर रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
चैत्र वैशाख ज्येष्ठाषाढ़ श्रावण
भादव अश्विन कार्तिक अगहन
पूष माघ फागुन तुम सदा संजती रहो
तुम सदा संजती रहो
- अमिताभ रंजन झा
प्रिय
मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
भाग्य की लकीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो
मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
तुम नृत्य हो झंकार हो
तुम ही मेरी उपहार हो
मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पे रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
संगीत सी बजती रहो
तुम सदा संजती रहो
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मेरे जिह्वा पर प्रिय
बस तुम्हारा नाम हो
मेरे अधरों पे प्रिय
बस तुम्हारा गान हो
दिवा-रात्रि सर्वदा
हर सुबह हर शाम हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
बस तुम्हारा ध्यान हो
मेरे मन मस्तिष्क में
बस तेरी तस्वीर हो
तेरे हाथों में लिखी
मेरी हर तक़दीर हो
प्रहर घटिका कला काष्ठा
तिथि पक्षायन वर्ष युग में
तुम से ही तौक़ीर हो
तुम से ही तौक़ीर हो
मेरे ह्रदय में प्रिय
बस तुम्हारा प्यार हो
जन्मों जन्मों तक प्रिय
तुम ही मेरी श्रृंगार हो
सोम मंगल बुद्ध वृहस्पत
शुक्र शनि रविवार हो
तुमसे ही उपहार हो
तुमसे ही उपहार हो
मेरे नयनों में प्रिय
तुम सदा बसती रहो
मुख पर रहो या विमुख
तुम सदा हंसती रहो
चैत्र वैशाख ज्येष्ठाषाढ़ श्रावण
भादव अश्विन कार्तिक अगहन
पूष माघ फागुन तुम सदा संजती रहो
तुम सदा संजती रहो
- अमिताभ रंजन झा
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