Thursday, January 6, 2011

मध्यवर्ग आर्थिक समृधिकरण

परेशान रहता हूँ आज कल अपने आर्थिक स्तिथि से, मध्यवर्ग से जो हूँ. घर का लोन, निजी लोन, कार लोन, क्रेडिट काड्र्स, ओवरड्राफ्ट, जीवन रक्षा प्रीमियम, कार प्रीमियम, ये कर्ज वो कर्ज इत्यादि इत्यादि. इनका शिकार हम मिडल क्लास के लोग ही क्यों बनते हैं? तनख्वाह कब हवा हो जाती है पता ही नहीं चलता. "वेळ डन अब्बा" चलचित्र में बोमन ईरानी शाहेब से सहमत हूँ, बहुत सही कहा है "जिस दिन महीने का वेतन मिलता है हम गरीबी रेखा से ऊपर आ जाते हैं और अगले ही दिन नीचे चले जाते हैं". अब बाकी का जो दो चार टका बचता है वो घर के खर्च में निकल जाता है, फ्लैट का मेनटीनेन्स, कामवाली का पगार, बिजली, अख़बार, फ़ोन, मोबाइल, इन्टरनेट, केबल का बिल, ये बिल, वो बिल, हे भगवान. राशन के लिए क्रेडिट कार्ड्स के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं बचता है. अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह, फिर भी ये आलम है. मेरी हालत पे पिताजी अक्सर चुटकी लेते है, दस हजार में हम पूरा परिवार चलाते थे आप इतना कमाते है फिर भी ये हाल है, आ जाईये पटना. अकसर सोचता हूँ, सोचता रहता हूँ, क्या हो रहा है ये, कब तक होता रहेगा ऐसा. शायद आप में से बहुतो को ये कहानी जानी पहचानी लगेगी, नहीं?

कुछ साल पहले एक किताब पढ़ी, "रिच डैड पुवर डैड". अच्छी किताब है, सोचा ये किताब दस साल पहले क्यों नहीं पढ़ी. जब मौका मिले जरुर पढ़िए. जरुरी नहीं है कि आप किताब की हर बात का अनुसरण करे पर ये आपका फिनान्सिअल आई क्यू (आर्थिक या वित्तिक बुद्धिमता) अवस्य बढ़ाएगा. हालाँकि ये किताब आपको खुद का बिजनेस करने को उत्साहित करती है, मेरा मानना है कि नौकरी में रहते हुए भी आप खुद को को समृध कर सकते हैं. आप सारांश यहाँ पढ़ सकते हैं: http://www.wikisummaries.org/Rich_Dad,_Poor_Dad

स्वीकार करना चाहूँगा कि दिमाग का अंग्रेजीकरण हो चुका है, हिंगलिश का आदि हो गया हूँ (कभी विस्तार में लिखूंगा, ये कैसे हुआ). हिंदी के शिक्षक पढेंगे तो माथा पीट लेंगे, नंबर देने लगे तो कम से कम -१०० तो देने ही होंगे. हाँ, इंची के हिसाब से नंबर देते होंगे तो हम पास अवस्य हो जायेंगे. जो लोग इंची कॉपी जाँच प्रणाली से उनके लिए एक लघु-परिचय: इंची प्रणाली परीक्षा की कॉपी जाँच करने की एक अनोखी प्रणाली है जिसमें लिखे लेख, उत्तर इत्यादि की उंचाई (इंच में) के हिसाब से अंक दिए जाते है. जब बहुत सारी कापियों का आंकलन कम समय में करनी हो तो ये प्रणाली बहुतो द्वारा अपनाई जाती है. उस प्रणाली का आदि हो गया हूँ, कुछ भी लिखू उसको लम्बा करने में लगा रहता हूँ कि कम से कम पास कर जाऊं. इस प्रणाली कि त्रुटी ये है कि मेधावी छात्र को भी औसत आंकलन से संतोष करना परता है. विद्यालय का नाम, विद्यार्थी का लास्ट नेम, कॉपी में कुछ कोड शब्द इत्यादि औसत आंकलन को बेहतर कर सकते हैं. कभी विस्तार में लिखूंगा.

हाँ तो मैं कह रहा था निजी आर्थिक समृधिकरण के बारे में, पहले न जाने कितने शलोक पढ़े, दोहे पढ़े, कहानिया सुनी, उपदेश सुना मितव्ययिता के बारे में, बात दिमाग में नहीं घुसी. जब विदेशी लेखक कि अंग्रेजी किताब पढ़ी, आँखें खुल गयीं. चलो सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसको भूला नहीं कहते. मन में सोच लिया है "एसेट क्वाडरंट मजबूत करना है, एसेट बढ़ाना है और लाएबिलिटी कम करना है". योजना बनाया हर खर्च से पहले खुद से पूछुंगा ''जरुरी है क्या, क्यों करना है".

अब हर खर्च से पहले सोचता हू, क्यों? पहले बैंक, लोँन, क्रेडिट कार्ड्स, इंश्योरंस के पत्र सीधे कचरे में डालता था. अब पढ़ने लगा हूँ. जब से ध्यान देना शुरू किया है काफी कुछ सीखने को मिला है. अगले पोस्ट में बताऊंगा टिप्स एंड ट्रिक्स, शायद आपके काम आ जाए!

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