To the corrupt, greedy, characterless, mean... politicians of India.
भारत के राजनीतिज्ञों का
आज चित्र विचित्र है|
ह्रदय में है कालिख
निम्न उनका चरित्र है||
अनुराग विद्वेष के बिना
कर्त्तव्य की शपथ खाते हैं|
कैसा शपथ है सोच ये
मन ही मन मुस्कराते हैं||
नोच रहे देश वो
जैसे निर्मम चील हैं|
देस लिटा सलीब पर
ठोंक रहे कील हैं||
सफ़ेद है लिबास किन्तु
दुष्कर्म जघन्य है|
क्षमा प्रार्थना भी
अपराध अक्षम्य है||
अशिक्षा, गरीबी, महंगाई,
भ्रष्टाचार हमें उपहार है|
सहन अब न हो हमें
नए अवतार का इन्तजार है||
-अमिताभ रंजन झा
Thursday, July 19, 2012
अवतार का इन्तजार
Labels:
India corruption,
कविता
Saturday, July 7, 2012
पिता
हर पिता को समर्पित!
Dedicated to every father!
पिता बना तो जाना
ये काम नहीं आसान
हर पिता को मेरा
शत शत है प्रणाम|
हर पल मन में एक लगन
सदा खुश रहे संतान
पल पल अमृत उसे मिले
सो खुद करते रहे विषपान|
टूटे चप्पल पावों में अपने
तन पर वस्त्र पुरान
नव वस्त्र बच्चों को मिले
जन्मदिवस, होली, रमजान|
अपने इक्षा को परे रख
जोड़े पुस्तक का दाम
हो अथक अनगिनत प्रयास
दिन रात वो करते काम|
शिक्षा, शक्ति, संस्कार आपसे
आज चलू जो सीना तान
मस्तक ऊँचा आपके कारण
है सफल पिता का प्रमाण |
क्षमा अपेक्षित है
जो भूल हुयी अनजान
त्याग, धर्म की मूर्ति
पिता हैं कितने महान|
पिता बना तो जाना
ये काम नहीं आसान
प्रिय पिताजी आपको
मेरा शत शत है प्रणाम|
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
- अमिताभ रंजन झा
Dedicated to every father!
पिता बना तो जाना
ये काम नहीं आसान
हर पिता को मेरा
शत शत है प्रणाम|
हर पल मन में एक लगन
सदा खुश रहे संतान
पल पल अमृत उसे मिले
सो खुद करते रहे विषपान|
टूटे चप्पल पावों में अपने
तन पर वस्त्र पुरान
नव वस्त्र बच्चों को मिले
जन्मदिवस, होली, रमजान|
अपने इक्षा को परे रख
जोड़े पुस्तक का दाम
हो अथक अनगिनत प्रयास
दिन रात वो करते काम|
शिक्षा, शक्ति, संस्कार आपसे
आज चलू जो सीना तान
मस्तक ऊँचा आपके कारण
है सफल पिता का प्रमाण |
क्षमा अपेक्षित है
जो भूल हुयी अनजान
त्याग, धर्म की मूर्ति
पिता हैं कितने महान|
पिता बना तो जाना
ये काम नहीं आसान
प्रिय पिताजी आपको
मेरा शत शत है प्रणाम|
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
- अमिताभ रंजन झा
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कविता,
पिता,
प्रिय पिताजी,
मध्य वर्ग
बचपन के दो मित्र
A poem dedicated to childhood friendship:
बचपन के दो मित्र जा रहे
हाथों में डाले हाथ|
परछाई छुटे परवाह नहीं
छुटे कभी न साथ||
बालपन के जीवन कि
है अनोखी बात|
मासूमियत कण कण में
पावन हैं जज्बात||
संग सदा रहने की ख्वाइश
सर्दी गर्मी बरसात|
पढ़े लिखे खेले कूदे
सुबह शाम दिन रात||
- अमिताभ रंजन झा
Photo by Vishakha!
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कविता
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