Saturday, April 15, 2017

सन्तोषम परमं सुखं

साईं इतना दीजिये जा में कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ  साधु ना भूखा जाए

ये बात यदि समझ में आ जाये
तो सन्सार के आधे रोग,
आधे दुख, आधे फसाद
तुरंत समाप्त हो जाये।

और और
ये भी  लेना है
वो भी लेना है

जिसका विज्ञापन देखा वो लेना है
जो पड़ोसी के घर देखा वो लेना है
जो सम्बंधी के घर देखा वो लेना है
जो देखा वो लेना है

इस फेर में
कुछ सेहत से जा रहे
कुछ पागल हो रहे
कुछ जान से जा रहे

मुट्ठी बाँधे आये हैं
हाथ पसारे जाना है

जीवन सरल है
लोभ असंतोष रूपी गरल का क्या काम?

पैदाइश पे ढाई किलो सही
परवरिश से साठ किलो सही
अब ख्वाहिश क्विंटल टनों का न सही न सहा जाए!

- अमिताभ रंजन झा

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