A poem for terrorism...
आंतकवादी की माँ
मौत का सौदागर तू
करे आतंक से प्यार|
हिंसा का पुजारी
करे मजलूमों पे प्रहार||
कोई हो मजहब
तुझे क्या दरकार!
तू तो बस करता जा
मानव-संहार||
इंसानों के मांस लहू से
बुझाये भूख प्यास|
लाशों के ढेर पे बैठा
करे तू अहठास||
हैवानियत ईमान
कत्ल तेरे संस्कार|
मासूमो की किलकारी
नहीं तुझे स्वीकार||
मेरे जिगर के टुकड़े तुने
जिगर कितने टुकड़े किये|
मेरी नजर के उजाले तुने
ऑंखें कितने सुने किये||
मेरे घर के दीपक तुने
कितने घरों के दीप बुझाये|
मै रोऊ पछताऊ हर पल
तुने ऐसे दिन दिखलाये||
आहत हु तुमसे
किया ममता का अपमान|
किसी माँ के कोख से
न जन्मे ऐसी संतान||
हर भूले राही से
करूँ मैं फ़रियाद|
घर लौट जा तू
करे माँ तुझको याद||
- अमिताभ रंजन झा
Love them who love you!
Live with them always!!
Violence is a crime!
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
हाड़ मांस का पुतला
Monday, January 26, 2009
आंतकवादी की माँ
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सच कहा | माँ तो माँ ही होती है न |
ReplyDeleteVisit aur comment ke liye dhanyavaad!
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