Saturday, April 22, 2017

पंखुड़ी

Shortlived Shahzad Wakeel, a young IITian turned Activist, inspiration for many of us.
A poem composed on his memories on his birthday.

Poem dedicated to all activists, social worker and reformers who make difference to million lives everyday

नही रहा फरिश्ता जो
कड़ोरो में एक था
पर दिल मे है आज भी
वो बड़ा ही नेक था

किसी के आंख का नूर
सब के दिल का नेग था
ये आम बात नही
वो बड़ा विशेष था

बुद्धि और साहस का
अद्भुत समावेश था
ज्ञान उसका गहना
सादगी उसका भेष था

विचारों में उसके
बड़ा ही तेज वेग था
बहुत हीं प्रभावित
उससे हरेक था

वो पंचतत्व में विलीन
किन्तु आज भी विराजमान
वो तुझमें मुझमें पंखुड़ी में
आज वो हर एक है

- अमिताभ झा

Saturday, April 15, 2017

सन्तोषम परमं सुखं

साईं इतना दीजिये जा में कुटुम्ब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ  साधु ना भूखा जाए

ये बात यदि समझ में आ जाये
तो सन्सार के आधे रोग,
आधे दुख, आधे फसाद
तुरंत समाप्त हो जाये।

और और
ये भी  लेना है
वो भी लेना है

जिसका विज्ञापन देखा वो लेना है
जो पड़ोसी के घर देखा वो लेना है
जो सम्बंधी के घर देखा वो लेना है
जो देखा वो लेना है

इस फेर में
कुछ सेहत से जा रहे
कुछ पागल हो रहे
कुछ जान से जा रहे

मुट्ठी बाँधे आये हैं
हाथ पसारे जाना है

जीवन सरल है
लोभ असंतोष रूपी गरल का क्या काम?

पैदाइश पे ढाई किलो सही
परवरिश से साठ किलो सही
अब ख्वाहिश क्विंटल टनों का न सही न सहा जाए!

- अमिताभ रंजन झा

धर्म पत्नी

गृहस्थी अजीब धर्म है
गृहस्थ की धर्म पत्नी होती है
गृहस्थ का धर्म पत्नी को प्रसन्न रखना
पत्नी का धर्म पति को त्रस्त रखना

पति कुछ भी कर ले
पत्नी की नजर में नालायक

मजदूर
पत्नी को टेम्पू रिक्शा में घूमा
दो सौ की साड़ी दिला कर
सनीमा दिखा कर
खुश करने की कोशिश करता रहता है

प्रवासी मजदूर
पत्नी को गोआ, ताज, स्विट्ज़रलैंड
एसी ट्रैन टैक्सी, हवाई जहाज में घूमा कर
दो चार हजार की साड़ी दिला कर
फाइव स्टार में खाना खिला कर
खुश करने की कोशिश करता है

पर  पति  नालायक ही रहते हैं
और सदा रहेंगे
धर्म पत्नी की नजर में

पतियों के लिए अश्रुपूर्ण सहानुभति
परम पिता परमेश्वर  से याचना प्रार्थना
अगले जन्म मोहे पत्नी बनैयहो

-अमिताभ रंज झा