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Friday, August 13, 2010

माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना

नौ महीने उदर में
समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से
लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा
जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको
बसाये रक्खा|

इतना छोटा हूँ कि
हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और
कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं
रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो
जी मेरा घबराता|

तेरी गोदी में सीखूंगा
मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर
एक दिन है चलना,
माँ मुझ पे कभी भी
नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ
तो सिखाना संभलना|

अपनी आँचल में मुझको
छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पे
टिकाये रखना,
दुनिया की निगाहों से
बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना|

मेरे बालों में उंगलिया
फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से
थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पे चुम्बन
लुटाते रहना,
गालों से गालों को
सटाये रखना|

माँ मुझको आँचल में
छुपाये रखना|
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना||

- अमिताभ रंजन झा

Poems dedicated to mother:

माँ तू याद आती है

आंतकवादी की माँ

हाड़ मांस का पुतला

Monday, February 2, 2009

माँ तू याद आती है

A poem dedicated to mother.

माँ तू याद आती है

कोई हो खुशी
या कोई हो ग़म|
याद आये तू
मुझ को हरदम||

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

जो दर्द दिल में है
आँशु बन के आती है
मुझको रुलाती है
तुझको बुलाती है|

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

यूँ दूर तू तो है
फिर भी देखूं मैं तुम्हे|
मेरे सामने खड़ी
तू मुस्कुराती है||

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

महसूस मैं करूँ
तू ममता लुटाती है|
रस्ता दिखाती है
लोरी सुनाती है||

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

जब होता मैं परेशां
सीने से लगाती है|
बालों में तू मेरे
उँगलियाँ फिराती है||

इतनी दूर हो गयी
क्यों दूर हो गयी?
कि आवाज भी मेरी
तू सुन न पाती है||

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

किस से शिकायत करू
क्यों छीना तुम्हे?
देव आँखे चुराते हैं
परियां मुंह छुपाती हैं||

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|

माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है||

- अमिताभ रंजन झा

माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना

आंतकवादी की माँ

हाड़ मांस का पुतला

- अमिताभ रंजन झा