राजनीतिज्ञ दुहने में माहिर होते है।
नहीं होते तो शीर्ष पर नहीं पहुंच पाते।
शायद इस तथ्य से प्रेरित होकर
आयोजकों ने
मंगल ग्रह पर एक बार
अखिल ब्रह्माण्ड के
जाने माने राजनीतिज्ञ द्वारा
दूध दूहने की प्रतियोगिता का आयोजित किया।
सब नेता को अपना परिचय देना था
और
उनका नाम कैसे पड़ा
ये बताना था
और फिर दूध दूहना था।
एक से एक धुरंधर आये,
परिचय, नाम का कारण बताये
और फिर दूध का झड़ी लगा दिये।
पाँच, दस, बीस, पच्चीस लीटर।
निरंतर गोदीजी आये।
बताया बचपन से
निरंतर गोदी में रहते थे
सो नाम पड़ा।
गोदी में अब भी कुछ लोग लेना चाहते हैं,
मीडिया, भ्रष्ट, स्वार्थी, लोग।
काला धन काला मन वाले लोग।
धमाकेदार एंट्री हुआ
एक दो तीन चार
पांच छ सात आठ
कदम चले
कैमरे की तरफ
फिर ज्योति जला के आयोजन किया।
उनके लोगों ने स्टेडियम में लाइट गुल कर
भीड़ में सैकड़ों सिक्के उछाले गए.
लोग मोबाइल में टोर्च जला के
सिक्के पाने की होड़ में लग गए.
मीडिया ने खबर चलाया
मोदी ने ज्योति जला के उद्घाटन किया
जनता का अपार समर्थन।
जल्दी जल्दी वस्त्र बदला
फिर से
एक दो तीन चार
पांच छ सात आठ
कदम चले
कैमरे की तरफ
और थाली बजाया।
फिर से जल्दी जल्दी वस्त्र बदला
एक दो तीन चार
पांच छ सात आठ
कदम चले
कैमरे की तरफ
और मयूर के पीछे चलने लगे।
मीडिया बढ़ चढ़ के कवर करती गयी।
मित्रों और जनता को धन्यवाद दिया
प्रतियोगिता देखने उमड़े
अपार भीड़ को, सम्पूर्ण राष्ट्र को
नोटबंदी, देश बंदी के समर्थन के लिए
जीएसटी सीएए एनपीआर के समर्थन के लिए
ह्रदय से धन्यवाद दिया।
घंटों मन का बात किये।
लोग मंत्रमुग्ध हो कर सोते चले गए।
मीडिया बढ़ चढ़ के कवर करती रही।
गोदी जी फिर पूरी मेहनत से
पंद्रह लीटर दूहे।
सेक्रेटरी से पूछे
इतना कम क्यों हुआ?
क्यों हाल दिल्ली राजस्थान और एम पी चुनाव वाला हो गया?
सेक्रेटरी बोला
देसी गाय है
जर्सी गाय का खाल पहना के लाये हैं।
हाइप क्रिएट करना पड़ता है।
आप पंद्रह निकाल दिए,
दुसरा पांच लीटर भी नहीं निकाल सकता था।
फिर सेक्रेटरी इशारा किये
भीड़ के तरफ़।
हर तरफ गोदी गोदी की गूँज।
जज पूछा कितना है?
गोदीजी इमानदारी से बोले
फ़िफ्टीन।
सेक्रेटरी सजग था,
देश की ईज़्ज़त का सवाल था।
उनके कहने से पहले
तमाम मीडिया, समर्थक लोग
हल्ला मचा दिये,
फिफ्टी, फिफ्टी।
फिफ्टीन फिफ्टी बन गया।
बस स्कोरर उनको
देबामा जी से भी ऊपर डाल दिया।
भीड़ फिर से चिल्लाई
गोदी गोदी गोदी गोदी।
'देबामा' जी मन मसोस के रह गए
मन ही मन बोले
बेटा मालूम था
तू दुनिया को पीछे छोड़ देगा।
इसलिए तोहरा
कहियो हमरे इहा का वीसा नहीं दिए।
जनता पीएम बना दिया
तो मज़बूरी में देना पड़ा।
ये सोच ही रहे थे कि
खुराक देबामा जी का नंबर आया।
खुराक ज्यादा था बचपन से ही।
चौबीस घंटे माँ का दूध पीते रहते थे जब बच्चे थे।
जब से बोलना सीखे
हरदम कहते खुराक देबा माँ।
सो नाम पड़ गया खुराक देबामा।
बड़े हो गए हैं,
शादी भी हो गयी है, दो बेटी भी है।
लेकिन दूध खुराक अभी भी वही है।
पहले कहते खुराक देबा माँ
अब कहते हैं खुराक देबा बुच्ची के माँ?
आने के साथ ही
जितनी भी महिला वहा उपस्थित थीं
सबको सबसे खूबसूरत कहते गये।
महिला लोग को बुरा नहीं लगा
लेकिन मीडिया को बर्दाश्त नहीं हुआ।
हंगामा मचा दिये।
देबामा जी माफ़ी मांग के आगे बढ़े।
ऐसे ही परेशान थे,
वाइट हाउस से निकल चुके थे
कबके, सदा के लिए।
सोच रहे थे
हिलेरी कीर्तन का हाल
लाकी अडवाणी वाला हो गया
ये बुड्ढी प्रेजिडेंट इन वेटिंग
वो बुड्ढा पीएम इन वेटिंग
सदा के लिए।
खैर,
आये एकदम गंग्नम स्टाइल में,
लाये अपनी जर्सी गाय
आ धराधर दूह दिए चालीस लीटर।
फिर नंबर आया रहल गन्दे का।
महीन स्वर में बोले
हम बच्चा में गन्दा रहा करते थे।
माँ कहती तू हरदम रहे लअ गन्दे।
सो नाम पड़ गया रहल गन्दे।
बोले अब भी
जब साफ़ कुरता
बर्दाश्त नहीं होता है,
देहात में जा के मिट्टी,
कचरा उठा लेते है।
तलब भी पूरा हो जाता है
और वाहवाही भी मिल जाता है।
बीच बीच में लंबी छुट्टी ले
तन मन की सफाई के लिए
गायब हो जाते हैं।
लौटते ही गोदी जी और उनमें
उनके दलों में
उनके आई टी सेलों में
वाक् युद्ध शुरू हो जाता है।
एक दूसरे को ऐसी ऐसी उपमा
ऐसी ऐसी गालिया, अपशब्द
दे दी जाती हैं
की स्लम में रहने वाले भी
शर्मा जाएँ।
मीडिया प्राइम टाइम में शुरू हो जाती है
लोग चैनल बदल बदल के परेशान।
खैर, रहलजी
अब भी विशेष ट्रेनिंग ले के लौटे थे।
ज्यादा ही जोश में थे।
धराधर तीस लीटर दुह दिए।
सेक्रेटरी बोलता रह गया
सर सर छोड़ दीजिये,
लोग को पता चल जायेगा
स्विट्ज़रलैंड का गाय है।
माँ माथा पकड़ के बैठी
बड़बड़ाने लगी
बोली मना किये थे,
कहे थे कम दूहो।
पर सेक्रेटरी भी शातिर थे।
इशारा किये,
भीड़ से समर्थक हल्ला करने लगे।
रहल रहल।
जज पूछा कितना?
वो बोले थर्टी।
भीड़ से गूँज आयी
थर्टीन थर्टीन।
थर्टी थर्टीन हो गया।
माँ को भी चैन आया।
फिर आया नंबर आकेलेस का।
बोले घर में जब भी बिजली काटता
नेताजी पप्पा कहते
आ के लेस डिबिया।
सो नाम पड़ गया।
दुहना शुरू करने वाले थे कि
चाचा गाय को
साइकिल पर ले के
भाग गए।
आकेलेस पीछे पीछे भागे
तो चाचा अपने भाई के घर घुस गए
फिर मीडिया बुला के
भाई के हाथों
आकेलेस को बेदखल कर दिए।
आकेलेस मीडिया को बोले
चचा अपने दोस्त से मिल कर
हमको औरंगजेब घोषित कर दिए।
चाचा बचपन में खिलौना छीनते थे
अब माइक छीन लेते हैं।
दुनिया उगते सूरज को पूजती है
नेताजी अस्त हो रहे हैं,
जाहिर है,
दल में सबका स्वार्थ सिद्धि
आकेलेस से ही हो सकता है।
सो दल वाले
आकेलेस के साथ हो लिए।
नेताजी को
मार्गदर्शक बना दिया गया।
न दल में समर्थन
न जन में समर्थन
फिर भी
नेताजी चाचाजी और मर्जी
ढींठ की तरह अड़े रहे।
हंसी के पात्र बने रहे।
आकेलेस अब भी
गाय और साइकिल
का इन्तजार कर रहे है।
जैसे ही दोनों मिला
दुहना शुरू कर देंगे।
लेकिन पता नहीं मिलेगा।
प्रदेश में नाम बदलने का माहौल है
पता नहीं किसका किसका नाम बदल जाए।
शहर तो शहर
सब्जी, दाल, पशु, पंक्षी, निर्जीव, सजीव,
भगवान् भी डरे सहमें हैं
कहीं उनका नाम भी न बदल जाए।
फिर आये लेले प्रसाद।
बोले बचपन गरीबी में बिता।
प्रसाद खा गुजारा होता,
लोग प्रसाद देते
और कहते लेले प्रसाद,
सो नाम हो गया।
किसी जे पी आंदोलन में उभरे
इतने बड़े समाजवादी कि
पहले अपने भाई, सालों को समाज वादी बनाया
फिर अपनी पत्नी को समाजवादी बनाया
यहाँ तक की बच्चों तक की शिक्षा छुड़वा
समाजवाद में लगा दिए।
लोग आरोप लगते रह गए
समाजवाद = परिवारवाद।
पर किसी को घंटा फर्क पड़ा।
उनका समाजवाद दौड़ता है
दौड़ता रहेगा।
दुनिया का
सबसे दुधारू गाय ले के आये थे।
दुहने बैठे की
गाय लात मार दी।
लेले प्रसाद ऐसे ही डरे थे
कही दोनों तेज पुत्र
उनको भी
मार्गदर्शक न घोषित कर दे।
उपर से मैडम बोली
ऐ साहब
इ का हो गया।
प्रसादजी झन्ना के बोले
चुप्प, मुंह बंद।
इधर गाय बोली
सब चारा खुद खा लेते हो
और दूध दुहने आ जाते हो।
लोग हंसने लगे
बड़ी जग हँसाई हुयी।
उसके बाद धोती कुरता पहने
बत्तीस कुमारजी का नंबर आया।
मुस्कुराए, बत्तीस दांत दिख गये।
बोले ज्यादा नहीं बोलूंगा,
गर्भावस्था से ही बत्तीस दांत हैं।
सो नाम पड़ गया।
इन्तजार करना पड़ा,
उनका गाय नहीं आया था।
सेक्रेटरी बोला
सर विरोधी लोग गाय भगा दिया है।
गोदी जी के दल से फुसफुसा कर बोले
जरूर कसाईघर वाले का काम है।
दंगाई लोग का काम है दंगा करना।
कही बकरी के मांस खाते लोग को
पीट के अधमरा कर दिए,
कही मृत गाय को ठिकाने लगाने
वाले लोग का ठिकाना लगाने लगे।
बदले में कही योग सूर्यनमस्कार कर रहे
लोग की लगा दी गयी।
कहीं नबी के शान में
गुस्ताखी के अफवाह में
सड़क घर जला दिए गए.
हर तरफ
हैवानों ने मासूम इंसानों की लगा दी
इंसानियत फिर से सहम गयी।
बत्तीसजी ने कुछ महीनों के लिए
गोदी जी से कट्टी कर लिये थे.
लेले प्रसाद जी अपने दोनों तेजों के साथ
बत्तीसजी से चिपक गए थे।
लेकिन जल्दी ही बत्तीसजी घर वापसी कर लिए.
खैर
गोदीजी का सेक्रेटरी
एक आयोजक को इशारा किये।
वो आयोजक जो दिया
बत्तीस जी उसी को दुहने लगे।
सुबह से शाम हो गया।
रात हो गया।
बेदम हो गए
लेकिन दुहते रहे।
जज उनका बाल्टी देखा
तो पता चला एक पौवा भी नहीं था।
जज हँसा,
इ हिह ही इ हिह ही
कटाक्ष से बोला
इतना देर में इतना ही?
फिर ऊपर देखा,
होश उड़ गये। इ त सांड था।
बत्तीसजी बोले
गोदीजी को ऊपर रहने दिजिये,
उनको राज्य भी
जर्सी गाय जैसा ही मिला था।
हमरा किस्मत,
राज्य भी
मरना सन्न सांड जैसा ही मिला था।
हम तो बस भाग लेने आये हैं,
रैंक का मोह नहीं है।
लेल प्रसाद जी के दोनों तेज पुत्र
फुरफुसाये पलटू चचा
सांड से दूध?
बत्तीस जी बोले बुरबक,
इज्जत रखना था ना।
मेहनत कर रहे थे,
जो पसीना आ रहा था
उसको चुनौटी के चुना में
मिला के बाल्टिया में गिराते गये।
बत्तीस दांत निकाल
एक आँख दबा के इही ही ही कर दिए।
बोले
जज लोग एक हफ्ता का समय देता
तो गोदी जी को पीछे छोड़ देते।
सेक्रेटरी को आँख मारे
बोले
जनता सब देख रही है,
लेकिन वही जो हम दिखा रहें हैं।
फिर नंबर आया
गमथा दीदी का।
बोली जिंदगी में बहुत गम था
सो नाम पड़ गया।
गुसैल मिजाज थी,
एक बार तो गुस्सा में
टाटा को राज्य से ही
टाटा कर दिया।
दीदी के कुछ भाई लोग
कसाई बनने लगे,
व्यापारियों के लिए
चिट्ट फण्ड इन्वेस्टर के लिए।
अब भी गुस्से में थी,
धरना पे बैठ गईं।
बोली अब या तो
री-मोनिटाइजेसन होगा
या डी-गोदी-टाइजेसन।
तभी दूध दुहेंगी।
मगर न तो री-मोनिटाइजेसन हुआ
न ही डी-गोदी-टाइजेसन।
अभी तक धरने पे ही हैं।
अगला नंबर आया दोनाल ट्रंक का।
पत्नी के हाथ पकड़ के साथ चले
पत्नी ने नाक भौं सिकोड़ हाथ छुड़ा लिया।
खैर, आयोजन स्थल पर हर उपस्थित
महिला को देख उनके मुंह से पानी आता गया।
मंच पर पहुँच के बोले
पप्पा का कंट्रक्शन का धंधा था।
एक प्रोजेक्ट ख़तम होता तो
दूसरे प्रोजेक्ट दूसरे जगह पर शुरु
हर छौ महीना साल भर पर शिफ्ट होते रहते।
उनके पास फेवरिट नकली दोनाली बन्दुक
और ट्रंक भर खिलौना था।
जिसको वो किसी को न छूने देते।
सो नाम पड़ गया दोनाल ट्रंक।
आयोजक से बोले उनको देसी गाय चाहिए
देसी नस्ल हो और श्वेत हो।
उनके लिए गाय ढूंढा जा रहा था
समय लग रहा था।
एक गाय को बाहत ढूढ़ने के बाद लाया गया।
दूध दुहने गए तो
गाय धरना पे बैठ गयी।
बोलने लगी बौ बौ मी टू।
ये सुन कर आस पास की गायें भी
बोलने लगी बौ बौ मी टू मी टू।
पूरा स्टेडियम का स्पीकर
गूंजने लगा बौ बौ मी टू मी टू।
दोनाल बोले ये देशद्रोहियो की चाल है।
तब तक किसी दूसरे देश के हैकर्स ने
स्पीकर्स तो हैक कर लिया।
पूरा स्टेडियम का स्पीकर पर गूंजने लगा
बौ बौ स्वीटू।
हैकर्स ने कुछ समय के लिए
स्टेडियम की बिजली भी गुल कर दी।
बिजली वापिस आयी
तो बाल्टी दूध से भरा हुआ था।
नापा तो 56 लीटर।
खुश हो के बोले
मेरे मित्र का सीना 56 इंच का है
तो 56 लीटर दूहे।
भीड़ में टोपी पहने
कुछ लोग हल्ला मचा रहे थे
हरमन केजड़ेबाल को
काहे नहीं बुलाये इ प्रतियोगिता में।
सब प्रतियोगी मुस्कराने लगे
मने मन सोच के
जो आयकर बिभाग में हो कर भी
दुहना नहीं सीख पाया
यहाँ कैसे गाय दूह पाता।
केजड़ेबाल स्टेडियके बाहर
झाड़ू ले के सफाई ही करने लगे
जब नहीं घुसने दिया लोग.
चुनाव का टाइम था
इलेक्शन कमिसन से शिकायत हो गयी
देश के सारे झाड़ू को छुपा दिया गया
तो फिर कमल, हाथी, साइकल
की भी शिकायत हो गयी।
उनको भी छुपा दिया गया।
फिर हाथ की भी शिकायत हो गयी।
तो सबको शोले का ठाकुर कुर्ता
पहनने की हिदायत दी गयी।
खैर,
केजड़ेबाल
उधर ही धरना पर बैठ गए
और एक गौ-पाल बिल का स्वांग शुरू।
और बड़बड़ा रहे थे
हमरा देख के बचपने से
हर मनके जड़े बाल
एही लिए हमरा नाम हरमन केजड़ेबाल।