सृष्टि का विकास चरम पे
अब बेटीयों का नाश हो
मनुष्यों का सर्वनाश हो
इस सृष्टि का विनाश हो
हे मूर्ख क्यूँ है नासमझ
क्यूँ नहीं इतनी समझ
सृष्टि का आधार है
बेटी से ही संसार है
शुक्राणु अंडाणु हैं विशेष
इनका जब हो समावेश
मातृ-गर्भ में होकर प्रवेश
जीवन का होता श्रीगणेश
शुक्राणु का तो कोष है
बैंक से मिल जाएगा
गर्भ तो विशेष है
ये कहाँ से लाएगा
बेटियां परम हर्ष हैं
जीवन का उत्कर्ष हैं
मान है, अभिमान हैं
ईश्वर का वरदान हैं
बेटियां बच जाएंगी
सृष्टि निखर जाएगी
बेटियां पढ़ जाएंगी
सृष्टि सँवर जाएगी
- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'
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