Tuesday, October 1, 2019

भूख

भूख

पत्थर दिल भी
देख मंजर पिघल गया

भूख थी जिसे
भूख ने ही निगल लिया

बेघर था जो
खुदा के घर निकल लिया

माटी का जो बना
मिट्टी में मिल गया

जीने को उसका जी
फिर मचल गया

वो उसी मिट्टी में
फूल बन के खिल गया

अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

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