Tuesday, May 27, 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं

किसी गली से गुजर रहा था
एक झोपड़ के पास मेरे
कदम बस ठिठक गए
दीवाल झुकी टूटी हुयी थी
ऊपर छत भी नहीं थी
घर अँधेरे में था डूबा
बाबा ने ताड़ी पी रखी थी
भूखे बच्चे बिलख रहे थे
रसोई में रोटी नहीं थी
माँ उन्हें फुसला रही थी कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं.

किसी नुक्कड़ से गुजर रहा था
चौपाल के पास मेरे
कदम बस ठिठक गए
महंगाई पर चर्चा चली थी
गरीबी भी बातों में निकली थी
बेरोजगारों की हालत बुरी थी
बिजली पानी किसी ने न देखी सुनी थी
विकास कागज पर हुयी थी
पर टीवी पर विज्ञापन आ आ कर
उनको हौसला दे रही थी कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं.

नए प्रधानमंत्री ने शपथ थी खायी
नयी सरकार कस्मे ले रही थी
मैं सोच में खोया हुआ था
चिंतन में गहरे डूबा हुआ था
मंदी जग में छायी हुयी थी
आय में बढ़त नहीं थी
टैक्स मुद्रास्फीति बहुत थी
मन को बस बहला दिया कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं.
निराशा को झुठला दिया कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं.
सपने नए फिर सजा लिया कह,
दिन बुरे जाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं.

- अमिताभ रंजन झा



No comments:

Post a Comment