Tuesday, March 25, 2014

पांच साल कहाँ थे

घर जला के पूछते हो, के हाल कैसा है,
मासूम से जालिम, ये सवाल कैसा है?
पांच साल कहाँ थे, जो अब आये पूछने,
और पूछते हो मन में, ये मलाल कैसा है?

हर जगह करें घोटालें, कोयले से खेल तक,
नेता बाबू माफिओं का, ये जंजाल ऐसा है.
खोयी चौबन्नी अठन्नी, डूबी है रुपैया भी,
मुद्रास्फीति का दशको से ये कमाल कैसा है?

परिवार आठ लोगों का, पिता ने पांच हजार में चलाया
पूछे लाखों तुम कमाते हो, फिर ये तंग हाल कैसा है?
मैं खुद से पूछता हुँ, ढाई लोगो की है मेरी फैमिली
पर पैसा कैसे कहाँ बह जाता है, ये गोलमाल कैसा है?

खाँस दे जो अडानी, तो संसद में छाती चुप्पी
एक शब्द भी नेता कहे, ये मज़ाल कैसा है?
अम्बानी पे उठी ऊँगली, तो एक हो गए सब
भौंहें चढ़ा के पूछते हैं, ये बवाल कैसा है?

खीर न बनाना, अच्छे कपड़े भी ना पहनना,
बहन बीबी बेटी छुपाना, क्या बुरी नजर का,
चुनाव का मौसम है, नेता घर आ धमकते हैं,
पूछ बैठे कही कि वो लेडीज रूमाल कैसा है?

जेबे खाली रखना, टीवी फ्रीज़ भी ढँके रखना,
बटुवें में बिल और कागज, ठूंस के न रखना
कही टैक्स फिर ना बढ़ा दे, ये सोच के कि है कम
नहीं तो हर बटुवे में इतना, मोटा माल कैसा है?

उपरवाला भी डरता है इसलिए नीचे न उतरता है
ईश्वर भी फँस के तड़पे सोचे ये जाल कैसा है?
तुम भी कुछ न पूछना और नजरे नीची रखना,
भगवान हैं वो उनके आगे, ये लोकपाल कैसा है?

- अमिताभ रंजन झा

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