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Friday, September 29, 2017

पोन ठेलवा

कहानी प्रस्तुत है ... शीर्षक है.... पोन ठेलवा
एक देश में एक नेता हैं। वो 2014 चुनाव में राष्ट्रीय लहर में भी बुरी तरह हार गए...
फिर भी बैक डोर से मंत्री बने... वित्त मंत्री के रूप में भयानक फैसले लेते रहे...

प्रोविडेंट फण्ड में, 
कभी उम्र की सीमा 
कभी ब्याज दर में छेड़छाड़

नेशनल पेंशन स्कीम में 
इतना दिमाग और रिस्ट्रिक्शन 
कि उसको डूबा ही समझिए
ये नही की पहले स्टॉक एक्सचेंज में,
बिभाग अनियमितता को दुरुस्त करें

नोटबन्दी में 
आम आदमी, गरीब, माध्यम वर्ग, 
व्यापारी, दुकानदार,  
वकील, डॉक्टर, प्राइवेट प्रैक्टिशनर
सबको पसीना पसीना 
तबाह कर दिए

जी एस टी में 
गाहक दुकानदार दोनो तबाह
कही से भी दाम में राहत नही
फल, फूल, सब्जी, 
चश्मा, रेस्टोरेंट, वस्त्र, उपकरण
सब जगह सबकुछ महंगा
जाहिर है मांग और खपत कम हो गयी
कुछ कंगाल हो गए
कुछ मितव्ययी
कहते हैं रिसेशन है
छुपाते है  कि रीज़न उनके 'रिफॉर्म्स' हैं
कुछ खरीदना गुनाह
व्यासाय व्यापार करना अपराध

प्राइवेसी में
नाक अड़ा दिए
सब चीज़ में आधार नंबर चाहिए
डेटा सुरक्षा का अता पता नही
पब्लिक का डेटा 
कोई भी हैकर निकाल सकता है।

डिजिटल करेंसी में
इतना जोर, 
ये नही कि पहले
पहले इंफ्रास्ट्रक्चर बनाये
सिक्योर करे
एंड्राइड फ़ोन से मैलवेयर से
भगवान भरोसे रक्षा है।

टैक्स लिमिट में 
राहत को दबा के रखे हैं 
2019 के लिए
नौकरी करना गुनाह हो गया।

पेट्रोलियम का राहत दबा के रखे है
ये नही कि जनता को राहत दे।

कहते हैं
70 साल में कुछ नही हुवा
70 साल का अव्यवस्था है।
क्या कर रहे थे ये इतना दिन?
70 साल जनता सरकार चुनती रही
कोई तानाशाह नही हुआ।
भारत प्रगतिशील रहा, 
पड़ोसी की तरह फेल्ड मुल्क नही बना।
घर घर मे मोबाइल, आई टी में उन्नति
एच ए एल, इसरो सब हुआ।
अभिव्यक्ति की आज़ादी रही
सद्भाव और प्रेम बना रहा।
फिर भी त्रुटि तो रही ही
इसलिए इस सरकार को जनादेश मिला।
इस जनादेश का सम्मान कीजिये।
पहले के 70 साल के जनादेश का भी सम्मान कीजिये।
चुनाव नही लड़े पहले वो?
2014 में  पैदा हुवे?
और अब क्या कर रहे हैं?
जनता एम पी नही चुना
तो बस लग गए पीछे?
70 साल का बहाना सुन सुन
पब्लिक का कान पक गया।
कितना  बहाना कीजियेगा और कब तक?

देश मे वही एक बुधियार समझदार
बाकी सब बुरबक बेवकूफ?

लोगो में हाहाकार क्यों
सोशल मीडिया पर इनको फटकार क्यों?
कुछ तो वजह है।

फिर भी न तो 
ये पद से हटने वाले हैं
न ही सुधरने वाले।

माननीय वित्त मंत्रीजी
पोन ठेलवा का आधुनिक उदहारण हैं।

माननीय प्रधानमंत्रीजी आपके नाम पे कब तक
इनको झेलना पड़ेगा?

त्राहिमाम!

समझिये
नही तो 2019, 
2004 जैसे इंडिया शाइनिंग न हो जाये!

शब्द कोष
पोन ठेलवा - वो व्यक्ति जिसे ऊपर चढ़ाने या आगे बढ़ाने के लिये हमेशा पुश करना पड़ता है। 

निवेदन:
यदि इस कथा को उनके कानों तक पहुंचाना चाहते हैं तो लाइक एवं शेयर अवश्य करें Facebook, Whatsapp, Twitter...।

डिस्क्लेमर:
इनकम टैक्स, सी बी आईं 
इत्यादि संस्था को पीछे न लगाएं
क्योंकि इस कथा के
सारे पात्र काल्पनिक है
कहानी भी काल्पनिक है
और कथाकार भी
;) 
अमिताभ झा
http://amitabh-jha.blogspot.in

Friday, May 16, 2014

आज मोदी आर या पार या व्यापार

शुभ प्रभात!
आज बीजेपी का सबसे बड़ी दल अर्थात सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनना तय है। ये तभी से तय होना शुरू गया था जब कांग्रेस में बैठे लोग ही भ्रष्टाचार एवं महंगाई को कंट्रोल करने के बदले स्वयं घोटाले करने लगे।
विकल्प के अभाव में हम भारतीय वोट ऑफ़ रिजेक्शन अर्थात "फलां नहीं जीते" नीति अपना कर वोट करते हैं। सो इस बार "कोई जीते, कांग्रेस नहीं" की लहर चल रही थी।
इस वर्ष कोई भी बीजेपी वाला होता तो भी बीजेपी का सबसे बड़ी दल बनना तय था। लहर को भुनाना अच्छे व्यवसायी की पहचान है, और मोदी पार्टी में बाजी मार ले गए ।

आज का दिन मोदी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आज वो आर या पार या व्यापार!
भोली जनता उनके लाखो करोड़ के विज्ञापन द्वारा प्रचारित "अच्छे दिन आने वाले हैं" में भरोसा रख उन्हें स्पष्ट बहुमत दे सकती है!
ऐसा नहीं हो सका तो उन्होंने जिन जिन को नाराज किया है वो उन्हें कही का नहीं रखने की पूरी कोशिश करेंगे। हालाँकि मोदी के जिन स्पॉन्सरों ने पैसे पानी की तरह खर्च किया है वो सांसदों का ईमान खरीद मोदी को सपोर्ट करवाने की पूरी कोशिश करेंगे। सच है पैसा बोलता है!

आम आदमी पार्टी को भी अपना औकात आज पता चल जायेगा। यदि वो पचास सीट पर लड़ते तो शायद चालीस सीट जीत जाते। किन्तु पांच सौ सीट पर लड़ने की मूर्खतापूर्ण निर्णय के कारण सिंगल डिजिट में ही रह जायेगी। इस निर्णय ने करोड़ो वालंटियर्स लाखो डोनटर्स का समय एवं पैसा बर्बाद किया है और लोग बार बार ऐसा करने से हिचकेंगे।
उसे याद रखना पड़ेगा "समय पाई तरुवर फले, केतक सिंचों नीर", अत्यधिक खाद और कार्बाइड के चक्कर में नुकसान सेहत को ही होता है।

जिसकी सरकार बने, हम महँगाई एवं भ्रष्टाचार पर कंट्रोल की न रखें तो अच्छा क्योंकि ये होने से रहा। फिर भी भारत हमको भी प्यारा है!

शुभकामना दोस्तों!

Tuesday, March 25, 2014

पांच साल कहाँ थे

घर जला के पूछते हो, के हाल कैसा है,
मासूम से जालिम, ये सवाल कैसा है?
पांच साल कहाँ थे, जो अब आये पूछने,
और पूछते हो मन में, ये मलाल कैसा है?

हर जगह करें घोटालें, कोयले से खेल तक,
नेता बाबू माफिओं का, ये जंजाल ऐसा है.
खोयी चौबन्नी अठन्नी, डूबी है रुपैया भी,
मुद्रास्फीति का दशको से ये कमाल कैसा है?

परिवार आठ लोगों का, पिता ने पांच हजार में चलाया
पूछे लाखों तुम कमाते हो, फिर ये तंग हाल कैसा है?
मैं खुद से पूछता हुँ, ढाई लोगो की है मेरी फैमिली
पर पैसा कैसे कहाँ बह जाता है, ये गोलमाल कैसा है?

खाँस दे जो अडानी, तो संसद में छाती चुप्पी
एक शब्द भी नेता कहे, ये मज़ाल कैसा है?
अम्बानी पे उठी ऊँगली, तो एक हो गए सब
भौंहें चढ़ा के पूछते हैं, ये बवाल कैसा है?

खीर न बनाना, अच्छे कपड़े भी ना पहनना,
बहन बीबी बेटी छुपाना, क्या बुरी नजर का,
चुनाव का मौसम है, नेता घर आ धमकते हैं,
पूछ बैठे कही कि वो लेडीज रूमाल कैसा है?

जेबे खाली रखना, टीवी फ्रीज़ भी ढँके रखना,
बटुवें में बिल और कागज, ठूंस के न रखना
कही टैक्स फिर ना बढ़ा दे, ये सोच के कि है कम
नहीं तो हर बटुवे में इतना, मोटा माल कैसा है?

उपरवाला भी डरता है इसलिए नीचे न उतरता है
ईश्वर भी फँस के तड़पे सोचे ये जाल कैसा है?
तुम भी कुछ न पूछना और नजरे नीची रखना,
भगवान हैं वो उनके आगे, ये लोकपाल कैसा है?

- अमिताभ रंजन झा

Tuesday, March 18, 2014

व्यंग: तू पी एम् की औलाद है पी एम् बनेगा।


मैंने विश्व के महानायक निरंतर गोदीजी के बारे में लिखा था व्यंग: दूध दुहने का प्रतियोगिता में। गोदीजी लगातार चर्चा में बने रहते हैं। आजकल झूलन आसन के द्वारा गोदीजी को ईमानदार बताना काफी चर्चा में हैं। झूलन आसन बचपन में झूला के आसन में बैठ कर झूलते रहते थे सो उनका नाम ही पर गया झूलन आसन। बड़े हुए तो एक वेबसाइट बनाया। नाम नहीं फुरा रहा था तो याद आया उनके अंगना में बौकी नाम की सेवक थी जिसके बाल में ढील और लीख भरा रहता था सो साईट का नाम रख दिए बौकीलीख। झूलन गोदीजी की बड़ाई तो कर दिए पर उनको गोदीजी के राज्य में एक हजार एकड़ मनचाहा जमीन नहीं दिया गया तो वो गोदीजी के बड़ाई के बयान से मुकड़ गए।

उधर रहल गंदे सदमे से बौरा गए। कहते फिरते हम लोग दू सौ से ज्यादा सीट लेंगे। फ्लाइट में जाते तो २०० सीट बुक कर लेते हैं, आई पी एल देखने जाते तो २०० सीट बुक कर लेते। बोलते जहाँ जायेंगे २०० सीट लेंगे कम से कम। सदमा का कारण मत पूछिए। उनकी विश्व के सबसे शक्तिशाली महिला में से एक किन्तु दुखिया विधवा माई ने मौनमहिन को पी एम् बना दिया। मौन जी मौन रहते थे और महीन से स्वभाव से सो नाम पद गया मौनमहिन। मौन जी ने टीम में कूलमाडी, राजन जैसे धुरंधरो को शामिल कर लिए, ऐसे धुरंधर की बालू से भी तेल निकाल ले। इन लोगो से कोयला, टेलिकॉम, कमनवेल्थ गेम्स इत्यादि हर क्षेत्र में में मुँह काला किया। परिणाम ये हुआ की पार्टी अंदर इन शत्रुओ से कही भी मुंह दिखाने के काबिल नहीं रही। रहल गंदे जी का पी एम् होने का खवाब टूट गया। सदमा छोटा नहीं था सो वो भी जिन्नावानी की तरह पी एम् नहीं बनाने के शॉक से बौरा गए। दिली जितने पर हरमन केजड़ेबाल अलग बौरा गए, आनन् फानन में आसपास के चापलूस लोग कह दिए हवा है, लहर है, सब सीट पर उम्मीदवार खड़ा कर दीजिये। सीट बाँट दिया गया है, पर उम्मीदवारों को फण्ड के नाम पर झाबाबा का ठुल्लु दे दिया गया है। गरीब और माध्यम वर्ग के लोग बेटी की शादी का पूँजी और जीवन भर का जमा, खानदानी जमीन बेच कर कंगाल हो चुके हैं और अभी और बदहाली बाकी है। हमको भी टिकट लेने को दोस्तों ने कहा, हम हँसे, उ पार्टी में एम् पी बन के का करेंगे जहां न बत्ती मिलेगा ना हरयाली?

इधर कुछ दिन पहले गोदीजी साहब महिला जासूसी योजना के कारण चर्चा में थे। रहल गंदे को एक रात नींद नहीं आ रही थी। सोते थे लगता था कुर्सी जा रही है, उठ जाते। सो फिर उठ गए। सामने दीवाल पर निरंतर गोदी और उनके अंतरंग मित्र गोमुख साह का फोटू लगाये थे। डार्ट उठाया और उन दोनों के फोटू पर चलाने लगे। एफएम चलाया गाना आ रहा था आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ। रहलजी का माथा ठनका। लैपटॉप उठाया गूगल करने लगे एक एक पिक्चर दोनों का छान लिया। संजोग से गोमुख के इंटरनल पिकासा फोटू अकॉउंट में एक्सेस हो गया। देखा दोनों का आपत्तिजनक फोटू। पाया कि गोदी जी और गोमुख जी तो 'वो' हैं। तो रहल गंदे के जासूसी दिमाग के कीड़े ने पुछा ये वो हैं तो महिला जासूसी किसके लिए कर रहे हैं और ये साहब कौन हैं? तभी रहल जी को बौकीलीख से ट्वीट आ गया कि गोदीजी वीसा चाहते हैं, सो जासूसी खुराक देदेमा जी के लिए करवा रहे हैं। देदेमा जी ही साहब है और इस करतूत का पता देदेमा जी की पत्नी को चल गया है और दोनों अलग रह रहे हैं। रहल गंदे पसीने पसीने होने लगे और चिल्लाने लगे देदेमा साहब है देदेमा साहब है। माई दौड़ के आयी, कलेजे से लगायी बोली, फिर बुरा सपना देखा होगा, और २०० सीट दिलाने का भरोसा देने लगी। ऍफ़ एम् पर गाना आ रहा था तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा तू पी एम् की औलाद है पी एम् बनेगा। रहल फिर सपनाने लगे, ख्याल आया कि गोदीजी का सीना अब तक छप्पन इंच का क्यों हो गया? तो फिर बौकीलीख के ट्वीट में पाया कि गोमुख जी को ५६ इंच का सीना पसंद है तो गोदीजी सिलिकॉन पैड प्लांट करवा के छब्बीस इंच का सीना छप्पन इंच के लिए करवा लिए। ऍफ़ एम् पर गाना आ रहा था इश्क़ ने नचाया ता थय्या थय्या।

- अमिताभ रंजन झा

Monday, April 15, 2013

व्यंग: राजनीतिज्ञ द्वारा दूध दूहने का प्रतियोगिता


मंगल ग्रह पर एक बार अखिल ब्रह्माण्ड के जाने माने राजनीतिज्ञ द्वारा दूध दूहने का प्रतियोगिता आयोजित हुआ। सब नेता को अपना परिचय देना था और उनका नाम कैसे पड़ा ये बताना था और फिर दूध दूहना था। एक से एक धुरंधर आये, परिचय, नाम का कारण बताये और फिर दूध का झड़ी लगा दिये। पाँच, दस, बीस, पच्चीस लीटर।

खुराक देबामा जी का नंबर आया। खुराक ज्यादा था बचपन से ही। चौबीस घंटे माँ का दूध पीते रहते थे जब बच्चे थे। जब से बोलना सीखे हरदम कहते खुराक देबा माँ। सो नाम पड़ गया खुराक देबामा बड़े हो गए हैं, शादी भी हो गयी है, दो बेटी भी हैं. लेकिन दूध खुराक अभी भी वही है। पहले कहते खुराक देबा माँ अब कहते हैं खुराक देबा बुच्ची के माँ। आने के साथ जितनी भी महिला वहा उपस्थित थीं सबको सबसे खूबसूरत कहते गये। महिला लोग को बुरा नहीं लगा लेकिन मीडिया को बर्दाश्त नहीं हुआ। हंगामा मचा दिये। देबामा जी माफ़ी मांग के आगे बढ़े। आये एकदम गंग्नम स्टाइल में, लाये अपनी जर्सी गाय आ धराधर दूह दिए चालीस लीटर।

फिर निरंतर गोदीजी आये। जनम से अभी तक जो जो किया था सबका बखान किये। बताया निरंतर गोदी में रहते थे सो नाम पड़ा। गोदी में अब भी रहते हैं, मीडिया के, चाटुकारों के। फिर पूरा मेहनत से पंद्रह लीटर दूहे। सेक्रेटरी से पूछे इतना कम काहे हुआ? सेक्रेटरी बोले देसी गाय है जर्सी गाय का खाल पहना के लाये हैं। आप पंद्रह निकाल दिए, दुसरा पांचो लीटर नहीं निकाल सकता था. फिर सेक्रेटरी इशारा किये भीड़ के तरफ़। जज पूछा कितना है, गोदीजी बोले फ़िफ्टीन। उनके कहने से पहले तमाम मीडिया, समर्थक लोग हल्ला मचा दिये, फिफ्टी, फिफ्टी। फिफ्टीन फिफ्टी बन गया। बस स्कोरर उनको देबामा जी से भी ऊपर डाल दिया। देबामा जी मन मसोस के रह गए मन ही मन बोले बेटा जब तक हम हैं तोहरा कहियो हमरे इहा का वीसा नहीं मिलेगा।

फिर नंबर आया रहल गन्दे का. महीन स्वर में बोले हम बच्चा में गन्दा रहे थे. माँ कहती तू हरदम रहेलअ गन्दे। सो नाम पड़ गया रहल गन्दे। बोले अब भी जब साफ़ कुरता बर्दाश्त नहीं होता है, देहात में जा के मिट्टी, कचरा उठा लेते है. तलब भी पूरा हो जाता है आ वाहवाही भी मिल जाता है. धराधर तीस लीटर दुह दिए, सेक्रेटरी बोले सर छोड़ दीजिये, लोग को पता चल जायेगा स्विट्ज़रलैंड का गाय है। माँ बोली मना किये थे, कहे थे कम दूहो। सेक्रेटरी इशारा किये, भीड़ हल्ला करने लगा। जज पूछा कितना? वो बोले थर्टी। भीड़ बोला थर्टीन थर्टीन. थर्टी थर्टीन हो गया. माँ को भी चैन आया।

उसके बाद धोती कुरता में बत्तीस कुमारजी का नंबर आया। मुस्कुराए, बत्तीस दांत दिख गये। बोले जादा नहीं बोलूंगा, पेट से ही बत्तीस दांत है। सो नाम पड़ गया। इन्तजार करना पड़ा, उनका गाय नहीं आया था। सेक्रेटरी बोला सर विरोधी लोग गाय भगा दिया है।

गोदीजी एक आयोजक को इशारा किये। वो आयोजक जो दिया बत्तीस जी उसी को दुहने लगे। सुबह से शाम हो गया। रात हो गया। बेदम हो गए लेकिन दुहते रहे। जज उनका बाल्टी देखा तो पता चला एक पौवा भी नहीं था।

जज हँसा, बोल इतना देर में यही? फिर ऊपर देखा, होश उड़ गये। इ त सांड था।

बत्तीसजी बोले गोदीजी को ऊपर रहने दिजिये, उनको राज्य भी जेर्सी गाय जैसा ही मिला था। हमरा किस्मत, राज्य भी मरणासन्न सांड जैसा ही मिला था। हम तो बस भाग लेने आये हैं, रैंक का मोह नहीं है। सेक्रेटरी पुछा सर सांड से दूध? बत्तीस जी बोले बुरबक, इज्जत रखना था ना। मेहनत कर रहे थे, जो पसीना आ रहा था उसको चुनौटी के चुना में मिला के बाल्टिया में गिराते गये। जज लोग एक हफ्ता का समय देता तो गोदी को पीछे छोड़ देते। सेक्रेटरी को आँख मारे बोले जनता सब देख रही है, लेकिन वही जो हम दिखा रहें हैं।

भीड़ में टोपी पहने कुछ लोग हल्ला मचा रहे थे हरमन केजड़ेबाल को काहे नहीं बुलाये इ प्रतियोगिता में. सब प्रतियोगी मुस्कराने लगे मने मन सोच के जो आयकर बिभाग में हो कर भी दुहना नहीं सीख पाया यहाँ कैसे गाय दूह पाता। केजड़ेबाल स्टेडियके बाहर झाड़ू ले के सफाई ही करने लगे जब नहीं घुसने दिया लोग. और बड़बड़ा रहे थे हमरा देख के बचपने से हर मनके जड़े बाल एही लिए हमरा नाम हरमन केजड़ेबाल।

अमिताभ रंजन झा
Monday, April 15, 2013, Edited on 9/1/2014
http://amitabh-jha.blogspot.in/2013/04/blog-post_4696.html

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Old version

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कथा के प्रशंशा और ताली के दिए अग्रिम धन्यवाद, निंदा और गाली के लिए अग्रिम क्षमा प्रार्थना

- अमिताभ रंजन झा

शायद आपको ये व्यंग रचना भी पसंद आये।

सफल राजनीतिज्ञ मडोना कुमार

एनडीए के शातिर, यूपीए के अल्हड़!



Monday, January 17, 2011

२०११ में भारतीय राजनीति

२०११ में भारतीय राजनीति बहुत घिनौनी होती जा रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था. कांग्रेस उस मद में चूर होकर भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. कहावत जुबान पर आ रही है, हमाम में सभी नंगे है पर जो पकड़ा जाये सो चोर. राजमाता एवं युवराज के चरणों में लिपटी सिमटी कांग्रेस से जनता को बस मिल रही है तो कमरतोड़ महंगाई. परिवारवाद एक अलग रोचक विषय है, यदि बापू, जेपी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनगिनत महानुभावो ने अपने परिवार के लिए थोडा भी स्वार्थ दिखाया होता तो आज उनके बच्चे, सगे सम्बन्धी भारत की राजनीति में पहचान के मोहताज नहीं होते. हालाँकि युवराज चाहते तो वातावंकुलित कक्ष में बैठे आराम से प्रधानमंत्री बन सकते थे, किन्तु वो फ़िलहाल भारत को जानने में लगे हैं सो प्रसंशा के पात्र अवश्य हैं.

दूसरी तरफ उसी चुनाव में हार से तिलमिलाई और अटल बिहारी वाजपेयी के बाद एक सक्षम नेतृत्व की तलाश में भटक रही भाजपा छोटे बच्चे की तरह बर्ताव कर रही है, कभी आंसू बहा रही है तो कभी चिल्ला रही है. बच्चे स्कूल न जाने की हठ करते हैं, वो संसद न जाने की जिद पर अड़ रही है. जब देश की सबसे बड़ी विपक्ष पार्टी का ये हाल है तो, तो जो मतदाता चुनाव का बहिष्कार करते है, वोट नहीं करते हैं, वो क्या गलत करते हैं? मुझे गलत न समझे, मेरी राय में वोट करना चाहिए, अवश्य करना चाहिए.

कभी एक मजबूत नेता कि छवि वाले लाल कृष्ण आडवानी और जिन्ना प्रकरण में अपने ही पैरों पर कुठाराघात करने के बाद आजकल अपना स्तर और गिराते हुए, निजी आक्षेप पर उतर आये हैं. पूरी दुनिया को पता है कि स्विस बैंक में रखा काला धन, भारत के भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का है. नखविहीन हो चुकी तीसरा मोर्चा हो या झगड़ालू बनती जा रही भाजपा, सरकार में रहते वो ये बात भूल जाते हैं. बोफोर्स का सच कभी सामने नहीं आता है, स्विस में रखे काले धन की कोई चर्चा नहीं होती है और उस धन को वापस लाने के लिए कोई कदम नहीं उठाते है. भ्रष्टाचार के पुराने केस चलते रहते है और नए घोटाले होते रहते हैं. उनसे पूछना चाहिए कि चुनाव में बहुत देर है, अभी से जनता को क्यों बेवकूफ बना रहे हैं?

क्या सरकार, भाजपा या तीसरा मोर्चा से ये अपेक्षा नहीं होनी चाहिए कि वो परिपक्व व्यवहार करें, मर्यादा में रहे, संयम बरते, संसद जाएँ, बहस करें? भ्रष्टाचार, महंगाई एक दिन की बात नहीं है, ये एक राष्ट्रीय चिंता का विषय सदा से रहा है सो मिल कर सकारात्मक सहयोग दे, सुझाव दें कैसे निदान हो सकता है और काम करे. विपक्ष को शिकायत है तो मर्यादा में रहकर प्रतिरोध करे, एक दुसरे पर कीचड़ न फेंके, अगले चुनाव में सारे मुद्दे उठाये और यदि सरकार बने तो कड़े और सटीक कदम उठाये, सारे भ्रष्टाचार के केस पर परिणाम दे, काला धन वापस लाये.

जनता का हाल मत पूछिए. भ्रष्टाचार और चिल्लपों के बीच एवं आसमान छूती महंगाई के तले दबे हम आम आदमी किसी तरह अपनी रोजी रोटी कमाने में लगे हैं, ताकि घर चलता रहे. और एक आवाज भी नहीं आती है क्योंकि लाखों करोड़ों के घोटालो के आरोपी को सजा मिले न मिले, जनता के सच्चे हितैषी और मानव कल्याण के लिए जीवन अर्पण करने वाले को पल भर में राष्ट्र द्रोह जैसे भयावह आरोप में सलाखों के पीछे भेज दिया जाता है. अस्मत लुटने के पश्चात शोषित स्त्री को जेल होने में तनिक भी देर नहीं लगती है. सो खामोश!

गणतंत्र दिवस निकट है, नेतागण ध्वज फहरा कर भाषण देंगे, राष्ट्रगान गाये जायेंगे, गरम जलेबी वितरित होगी, गली गली कानफाड़ू गाने बजेंगे मेरे देस की धरती सोना उगले, ए मेरे वतन के लोगो. अगले दिन पुनरमूषकोभवः, वही भ्रष्ट्राचार, घपले, अपराध, रोना धोना, वही काम-धाम. जिंदगी चलती रहेगी.

सबको गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाये!

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- अमिताभ रंजन झा