मेरे सपनों का भारत
हर चेहरे पर मुस्कान हो
हर हाथों को काम हो|
गगन चुम्बी स्वाभिमान हो
हर भारतवासी कीर्तिमान हो||
वाणी में मिठास हो
सफलताओ की प्यास हो|
आलस्य को अवकाश हो
अनगिनत प्रयास हो||
कृषि का विकास हो
मंजिले आकाश हो|
अज्ञानता का नाश हो
हृदय में प्रकाश हो||
आतंक का संहार हो
अहिंसा का व्यवहार हो|
सबको सबसे प्यार हो
ऐसे संस्कार हो||
अन्न का भंडार हो
नित्य नए अविष्कार हो|
शिक्षा का संचार हो
प्रगति का विचार हो||
ज्ञान का सम्मान हो
विज्ञान का उत्थान हो|
रोगों की रोकथाम हो
भ्रष्टाचार का न निशान हो||
मुख पर मोहक हर्ष हो
और भीषण संघर्ष हो|
सद्भाव का व्यवहार हो
किन्तु पराजय अस्वीकार हो||
नित्य नूतन प्रयोग हो
संसाधनों का सदुपयोग हो|
खोयी प्रतिष्टा पुनर्जित करे
लक्ष्य नए निर्धारित करे||
हर भारतीय आगे बढे
हरसंभव यत्न करे|
सौ बार हो विफल
एक और प्रयत्न करे||
मिल के ये ले शपथ
चलेंगे हम प्रगति पथ|
फिर ये स्वप्न साकार हो
और ऐसा चमत्कार हो||
- अमिताभ रंजन झा
Thursday, August 21, 2008
A poem for my India
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Friday, August 1, 2008
A poem for my short-lived son Adbhut
A poem for my short-lived son Adbhut.
अदभुत
छोटे से अदभुत को
दी तुमने कितनी पीड़ा|
मासूमों के जीवन से क्यों
करते हो तुम क्रीड़ा?
एक बूंद भी दुग्ध का
ना तुमने उसे चखाया|
दी चौंतीस दिनों की आयु
और पल पल उसे तड़पाया||
पुत्र मोह में डूबा मैं
करता रहा पुकार|
पुत्र शोक का तुमने
दिया मुझे उपहार||
पुत्र के आलिंगन की
मैं करता रहा प्रतिक्षा|
किन्तु उसके प्राणों की
तुमने की ना रक्षा||
बिलख बिलख के रोया मैं
किया पुत्र को अंतिम प्यार|
कटु निर्णय तेरा प्रभु
करना था स्वीकार||
निर्मल हृदय गंगा का
कितना है विशाल|
माता, पुत्री के पश्चात्
लिया पुत्र को मेरे संभाल||
अपने हाथों पुत्र को मैंने
गंगा गर्भ में समाया|
ना कही धरती फटी
न कोई प्रलय ही आया||
विनती करू मैं तुमसे
सुन ले मेरे नाथ|
किसी पिता को जग में
मिले ना ये अभिशाप||
कष्ट और आंशु का
ना दुनिया में हो निशान|
भर दे सबकी झोली
मांगू यही वरदान||
- अमिताभ रंजन झा
अदभुत
छोटे से अदभुत को
दी तुमने कितनी पीड़ा|
मासूमों के जीवन से क्यों
करते हो तुम क्रीड़ा?
एक बूंद भी दुग्ध का
ना तुमने उसे चखाया|
दी चौंतीस दिनों की आयु
और पल पल उसे तड़पाया||
पुत्र मोह में डूबा मैं
करता रहा पुकार|
पुत्र शोक का तुमने
दिया मुझे उपहार||
पुत्र के आलिंगन की
मैं करता रहा प्रतिक्षा|
किन्तु उसके प्राणों की
तुमने की ना रक्षा||
बिलख बिलख के रोया मैं
किया पुत्र को अंतिम प्यार|
कटु निर्णय तेरा प्रभु
करना था स्वीकार||
निर्मल हृदय गंगा का
कितना है विशाल|
माता, पुत्री के पश्चात्
लिया पुत्र को मेरे संभाल||
अपने हाथों पुत्र को मैंने
गंगा गर्भ में समाया|
ना कही धरती फटी
न कोई प्रलय ही आया||
विनती करू मैं तुमसे
सुन ले मेरे नाथ|
किसी पिता को जग में
मिले ना ये अभिशाप||
कष्ट और आंशु का
ना दुनिया में हो निशान|
भर दे सबकी झोली
मांगू यही वरदान||
- अमिताभ रंजन झा
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