A poem for my short-lived son Adbhut.
अदभुत
छोटे से अदभुत को
दी तुमने कितनी पीड़ा|
मासूमों के जीवन से क्यों
करते हो तुम क्रीड़ा?
एक बूंद भी दुग्ध का
ना तुमने उसे चखाया|
दी चौंतीस दिनों की आयु
और पल पल उसे तड़पाया||
पुत्र मोह में डूबा मैं
करता रहा पुकार|
पुत्र शोक का तुमने
दिया मुझे उपहार||
पुत्र के आलिंगन की
मैं करता रहा प्रतिक्षा|
किन्तु उसके प्राणों की
तुमने की ना रक्षा||
बिलख बिलख के रोया मैं
किया पुत्र को अंतिम प्यार|
कटु निर्णय तेरा प्रभु
करना था स्वीकार||
निर्मल हृदय गंगा का
कितना है विशाल|
माता, पुत्री के पश्चात्
लिया पुत्र को मेरे संभाल||
अपने हाथों पुत्र को मैंने
गंगा गर्भ में समाया|
ना कही धरती फटी
न कोई प्रलय ही आया||
विनती करू मैं तुमसे
सुन ले मेरे नाथ|
किसी पिता को जग में
मिले ना ये अभिशाप||
कष्ट और आंशु का
ना दुनिया में हो निशान|
भर दे सबकी झोली
मांगू यही वरदान||
- अमिताभ रंजन झा
Friday, August 1, 2008
A poem for my short-lived son Adbhut
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