Sunday, June 27, 2010
गंगा के दो किनारे
आपने दिल तोड़ दिया
हमसे मुंह मोड़ लिया
हमको अकेला छोड़ दिया
हम छोड़ ना पाए|
खुशियों के मौसम बीते
अब यादों के मौसम आये
मन में ऐसे टीस जगाए
हमको हर पल तड़पाऐ|
गंगा से ली गीली मिट्टी
प्यार का डाला बालू गिट्टी
बाते की कुछ मीठी खट्टी
रेत पे हमने घर भी बनाये|
इंतजार में तेरे हमने
कितने पत्थर नदी में डाले
कितने पंखुरी फूलों से निकाले
हम गिन न पाए|
बाँहों में तुझको लेके
जुल्फों के साये में सोके
झील सी आँखों में खोके
हरदिन सूरज हमने डुबाये|
गोद में तेरे सर रखकर
ओस में कितनी राते काटी
चंदा से की जी भर बातें
तारो से भी नैन मिलाये|
सतरंगा अपना शहर हो
नदी किनारे छोटा घर हो
सारे जगकी ख़ुशी मगर हो
मीठे सपने हमने सजाये|
टूट गए वो सारे सपने
हमें रुलाया सारे जगने
हुए पराये अब तो अपने
अब भी हम जाग न पाए|
देखू तुझे दिल करे इशारे
मन ही मन तुझे पुकारे
पर गंगा के हम दो किनारे
सामने हैं पर मिल न पाए|
आपने दिल तोड़ दिया
हमसे मुंह मोड़ लिया
हमको अकेला छोड़ दिया
हम छोड़ ना पाए|
छोड़ ना पाए|
- अमिताभ रंजन झा
http://amitabh-jha.blogspot.com/search/label/Poems
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