Wednesday, April 17, 2013

विपरीत आकर्षण


विपरीत लिंग का आकर्षण प्रकृति का नियम है।
सब के लिए आसान नहीं सदा रखना संयम है।।
कच्ची उमर में ये सम्मोहन होता अति परम है।
उम्र ही ऐसा है नसों में दौड़ता खून गरम हैं।।

अजीब सी दिल में धड़कन बड़ी हलचल होती है।
किसी ख़ास को देखने की इक्षा पल पल होती है।।
उल्लू की तरह जागें जब सारी दुनिया सोती है।
जवां उमंगें बीज रंग बिरंगे नयन में बोती है।।

मन रूपी वीणा के झन झन तार बजते हैं।
खट्टे मीठे से ख्वाब लगातार सजते हैं।।
कोई मिलने की मिन्नतें बार बार करते हैं।
कोई हाथों के मेहंदी में अपना प्यार रचते हैं।।

आवाज़ सुन लगे कानों में मिसरी घुलता है।
दिल में उसी का नाम आयने में चेहरा दीखता है।।
एक दुसरे को पता हो ये जरुरी नहीं होता है।
मुड़ मुड़ के कोई देखता छुप छुप के रोता है।।

वो कौन है जिसने ये न महसूस किया है?
शख्स विशेष के खातिर न मदहोश हुआ है??
वो होश में रह कर भी थोड़ा बेहोश रहा है।
जमाने से डर कर भी बड़ा गर्मजोश रहा है।।

- अमिताभ रंजन झा

No comments:

Post a Comment