Monday, April 1, 2013

गृह कर्ज दुह्स्वप्न


किसानों की पुरानी जमीन बिल्डर
सरकार से मिल के ले रही है।
किसानो को सौ के भाव दे कर
हमें थव्जेंड्स पर स्कवैर फीट में बेच रही है।।
एक घर हो हमारा ये सपना
रियलटरों के भूख से मिल रही है।
अनमोल खेत जो उगलती थी सोना
अब कंक्रीट जंगल बन रही है।।

होम लोन लेना इतना है इजी
तो लोन हम सब ले रहे हैं।
चुकाना पड़ता है सूद के साथ
हम लोग फिर भी ले रहे हैं।।
सैलरी के बड़े हिस्से से
इ एम् आई समय पर दे रहे हैं।
देखा है जो घर का सपना
सूद जुर्माने में दे रहे हैं।।

नीचे चार्ट में देखिये
इस मनमानी का असर
कितना बोझ पड़ेगा
अपने हर बच्चे पर।।
पच्चीस लाख का लोन
हम पच्चीस साल का जो लें।
मेरे बच्चा तब रखे अपने घर का स्वप्न
जब महीने डेढ़ लाख कमा ले।।



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देश भक्ति का भाव जाग गया है,
ओल्ड मोंक रगों मैं अब दौड़ रहा है।
इंडिया की बात है सबसे अनोखी
मेरा ह्रदय ये इंग्लिश में बोल रहा है।।

कुछ मदहोश पंक्तिया...

सारी दुनिया घूम लोगे
पर भारत देश जैसा ना पाओगे।
अमेरिका यूरोप ऑस्ट्रेलिया में भी
ऐसे महंगे सूद का दर तुम न पाओगे।।
ये देश अटके हैं आधे एक प्रतिशत पे
चालीस प्रतिशत पर कर्ज यही तुम पाओगे।
सरकारों ने लगा रखी है लगाम वहा पर
भारत सरकार सा दिल तुम कही न पाओगे।।

भारत की अध्यात्मिक सरकार
मैडिटेशन कर रही है।
योग ध्यान में डूबकर
इश्वर की तलाश कर रही है।।
कुछ बोध नहीं इसको
यहाँ पर क्या बीत रही है।
चन्द लोगों ने है लूट मचाई
देश खुद ही चल रही है।।

ये ख्वाइश है कि थोड़ी
सरकार जल्दी जाग जाये।
क्रेडिट रिपो रेट रूपी शैतान
एकदम बेलगाम हो चुकी है।।
सरकार उस पर शख्त होकर
एक बड़ी सी लगाम लगाये।
ख्वाइशें तो ख्वाइशें हैं,
हकीकत तो है वो सो रही है।।

- अमिताभ रंजन झा।


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