Saturday, November 16, 2013

भाई


एक उदर में नौ मास रहे,
एक मात -पिता की परछाई,
एक ही घर में पले-बढ़े,
बांटा सुख-दुःख, की प्यार-लड़ाई।

काम ने हमको जुदा कर दिया,
भाग्य ने न की सुनवाई,
अलग-अलग हम शहरों में रहते,
पर प्रेम न कभी घटाई।।

कभी-कभी ही अब हम मिले जब,
घूमे-खेले, खाये मिठाई,
हफ्ते छुट्टी के क्षण में बीते,
हम ले अश्रुपूर्ण विदाई।

जिनसे मिलती हिम्मत-ताक़त,
वो मेरे हैं अनोखे भाई,
जिनके लिए समस्त है अर्पण,
वो मेरे हैं अपने भाई।।

- अमिताभ रंजन झा

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