आजकल पटाखो का प्रचलन काफी बढ़ गया है । पिछला तीन दीवाली जर्मनी में बीता।
Diwali 2012
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Diwali 2011
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Diwali 2010
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इस वर्ष के दीवाली का इन्तजार था। पर इन तीन चार वर्षो में दीवाली काफी बदल गया है। पटाखों का शोर दीवाली के एक हफ्ते पहले से शुरू है और रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। सर दर्द हो रहा है।
पहले ऐसा नहीं था। बचपन के दीवाली की धूमिल यादे बाकी हैं। उस समय हम पुरे घर में तीषी तेल, किरासन तेल और घी के दिए जलाते थे। फटक्का का प्रचलन नहीं था, हुक्का लोली और संठी का जमाना था। हुक्का लोली कुछ आज कल के योयो कि तरह का होता था। पुराने धोती या साड़ी के टुकड़े को लपेट का छोटी गेंद बना ली और धोती या साड़ी के कोर से बांध दिया। फिर एक पतला तार बीच में दाल दिया। तेल में गेंद को डुबाया, आग लगायी और गोल गोल घुमाया और चिल्लाया "हुक्का लोली ". छुड़छूड़ी के बदले जूट के पौधे से निकला संठी चलता था, सफ़ेद रंग का और बहुत हलका जैसे थर्मोकोल की छड़ी। अब तो बस यादें ही हैं।
एक तरफ विज्ञान ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है। दूसरे तरफ धरती, प्राणी और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी पड़ने लगा है। हमें अच्छी बातें अपनानी चाहिए और बुरे प्रभाव का त्याग करना चाहिए। हमें पटाखो का कम प्रयोग करने की कोशिश करनी चाहिए।
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दिया तले अँधेरा सुना होगा! पर जब अनेक दिया जलते हैं तो वो एक दूसरे के नीचे के अँधेरे को को मिटा देते हैं और हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश होता है! एकता में बल है! मिलजुल कर दीवाली मनाए!
जब कभी हो घना अँधेरा
दूर हो जब तक सवेरा
प्रकाश ज्ञान का दिया जला लो!
सब गोटाके दीपावली के हार्दिक शुभकामना!
सब रौवा लोगन के दीपावली के शुभकामना!
सब लोग के दिवाली के शुभकामना देत्ते ही!
Wish you all a happy and safe Diwali!
आप सब लोगो को दीवाली की हार्दिक शुभकामना!
- अमिताभ रंजन झा
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