साढ़े पांच फुट का एक शख्श, साधारण परिवार में पैदा हुआ, आई आई टी से पढ़ाई की, इनकम टैक्स कमिश्नर बना। चाहता तो आज भारत के हर बड़े शहर में ५ कमरे के मकान होता, भ्रष्टाचार की कमाई से। पैसे के जोर पे एम पी, एम एल ए, मंत्री सब बन सकता था। पर उसे ये मंजूर न था।
जहा सौ दो सौ रूपये के लिए, छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए, इंसान का ईमान डोल जाता है वहा शक्ति, धन, समृधि के जीवन को त्याग देना हरेक के बस की बात नहीं। ऐसा नमक का दरोगा ही कर सकता है, ऐसा महात्मा बुद्ध ही कर सकते हैं।
दैनिक भ्रष्टाचार का सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है। एक सरकारी बाबू जब बिजनेसमैन से घूस मांगता है, बिजनेसमैन डर से या जोड़ तोड़ की लालच से बाबू को पैसे दे देता है। दिए पैसे को वो आम जनता से ही वसूलता है, कम तौल कर, दाम बढ़ा कर, मिलावट से, काला बाजारी से, तरह तरह के गोरख धंधे से।
अब तक के धूर्त राजनितिक पार्टिया कभी कुछ नहीं करेगी ये तय है, उनसे कुछ अपेक्षा करना बालू से तेल निकलना, बाँझ से बच्चे की आस लगाने जैसा है। पर आम आदमी पार्टी कर सकती है। उम्मीद पर दुनिया कायम है।
यदि हम लोग इस बात को समझ नहीं सकते, तो हम वैसी ही जिंदगी के लायक हैं जो अब तक की सरकार ने दिया है। आज जो घुटन की जिंदगी हम जी रहे हैं, हमारी नासमझी हमारे बच्चो को भी वही जिंदगी देगी। यदि हम ये नहीं समझते हैं तो हमें क्या हक़ है बच्चे पैदा करने का? क्या जरुरत हैं उन्हें लाड़-प्यार से पोस के बड़ा करने का? क्या हमारे बच्चे चूजे हैं जो एक दिन मोटे ताजे चिकन बन कर इन घूसखोरो, बेईमानो का खाना बनेंगे, तिल तिल कर, टुकड़ो टुकड़ो में हर दिन जब तक सांस चलेगी? नहीं कभी नहीं।
अपने पे जो बीती है वो बच्चों का न भाग्य बनाओ।
आगे बढ़ो आप अपनाओ आस्तीन के साँप भगाओ।।
अमिताभ रंजन झा
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