मंजूर है मुझे उनकी
घने जुल्फों की हाजत।
कहने से नहीं हम उनके
चुप रह जाने से डरते हैं।।
दिलफेंक है थोड़े
दिल की आती न हिफाजत।
सामना से नहीं हम चाँद के
छुप जाने से डरते हैं।।
उनके सामने आते ही
दिल करता है धक् धक्।
शिद्दत से नहीं हम उनके
शोहबत से डरते हैं।।
सिल जाते हैं लब हमारे
जाती चेहरे की है रंगत।
चाहत से नहीं हम उनके
संगत से डरते हैं।।
फितरत से नहीं उनके
हम कुदरत से डरते हैं।
जिल्लत से नहीं उनके
उल्फत से डरते हैं।।
नफरत से से नहीं उनके
मोहब्बत से डरते हैं।
हिकारत से नहीं उनके
शोहरत से डरते हैं।।
शिकायत से नहीं उनके
मुरौवत से डरते हैं।
क़यामत से नहीं उनके
इनायत से डरते हैं।।
रियायत से नहीं उनके
पर शराफत से डरते हैं।
बुरे हालात से नहीं हम
बुरी हालत से डरते हैं।।
शराबो के प्यालो से नहीं हम
होठों के शरबत से डरते हैं।
लिपट जाने से नहीं कपड़ो पर
सिलवट आ जाने से डरते हैं।।
बंद आँखों से नहीं उनके
अपनी संगीं नियत से डरते हैं।
उनके मासूमियत से नहीं हम
अपने रंगीं तबियत से डरते हैं।।
मुझको यकीं हैं तपा सोना
उनकी रूह ऐ पाकियत।
उनके नसीब से न हम
अपनी किस्मत से डरते हैं।।
जज्बात से नहीं
अपने आप से डरते हैं।
आज की नहीं ये बात
बड़ी मुद्दत से डरते हैं।।
सहमा सा हूँ मैं रब रूठ न जाये
दिल टूट न जाए हम टूट न जाएँ।
ज़माने को रुला दे
ऐसी है रुबैयत।।
अल्फाजों से हम
अपने ला दे एक सैलाब।
अपने इस हुनर से
काबिलियत से डरते हैं।।
प्यार में फुर्सत
पा जाने से नहीं डरते।
अपनी जिगर के
गफ़लत से डरते हैं।।
नसीम ऐ सुबोह में हम
जागने से नहीं डरते।
लेकिन जुदाई से
शब् ऐ फ़ुर्क़त से डरते हैं।।
ठान ले कर देते हैं ऐ दोस्त
साहस के इसी पर्वत से डरते हैं।
किसी के बाप से नहीं डरते
बस अपनी हिम्मत से डरते हैं।
हौसले में कोई नहीं कमी
जरा हिलो-हुज्जत से डरते हैं।
सालों कमाई है खुद्दारी की जो दौलत
इसी नाजुक इज्जत को खोने से डरते हैं।।
एक मजेदार बात याद आ रही है।
हमारे एक निहायत करीबी दोस्त थे।
साहबजादे को एक सौ किलो की हसीना से प्यार हो गया।
पर उसके छः मुस्टंडे भाइयों से वो डरते थे।
तो यदि वो लिख रहे होते तो लिखते ...
बेशक दिलोजान से
चाहता हूँ उनको मैं ऐ दोस्त।
उठाने से नहीं उनको
खुद उठ जाने से डरता हूँ।।
भरी जवानी में कंधो पे
जाने से डरता हूँ।
उनके शहर में भी
अब जाने से डरता हूँ।।
फिर कुछ महीनो बाद वालिद के बुलावे पे गांव गए।
दरवाजे पर पांव रखते ही माशुका के सभी भाई से नैन मिल गए।
सिट्टी पिट्टी ग़ुम, उनके होश उड़ गए ।
एक भाई ने उन्हें संभाला, कोने में ले गए,
चेहरे पर पानी डाला, वो जग गए ।
फिर पुछा जिस दिन उन्होंने बहन से मिलते देखा था,
क्यों वो भागे थे और फरार कहा थे?
बात बात में, बात खुल गयी, बेचारे वो रिश्ते को राजी थे।
फिर क्या था?
दोनों का निकाह हो गया धूम धाम से।
अब इनके छह बेटे हैं
और एक बेटी।
- अमिताभ रंजन झा
घने जुल्फों की हाजत।
कहने से नहीं हम उनके
चुप रह जाने से डरते हैं।।
दिलफेंक है थोड़े
दिल की आती न हिफाजत।
सामना से नहीं हम चाँद के
छुप जाने से डरते हैं।।
उनके सामने आते ही
दिल करता है धक् धक्।
शिद्दत से नहीं हम उनके
शोहबत से डरते हैं।।
सिल जाते हैं लब हमारे
जाती चेहरे की है रंगत।
चाहत से नहीं हम उनके
संगत से डरते हैं।।
फितरत से नहीं उनके
हम कुदरत से डरते हैं।
जिल्लत से नहीं उनके
उल्फत से डरते हैं।।
नफरत से से नहीं उनके
मोहब्बत से डरते हैं।
हिकारत से नहीं उनके
शोहरत से डरते हैं।।
शिकायत से नहीं उनके
मुरौवत से डरते हैं।
क़यामत से नहीं उनके
इनायत से डरते हैं।।
रियायत से नहीं उनके
पर शराफत से डरते हैं।
बुरे हालात से नहीं हम
बुरी हालत से डरते हैं।।
शराबो के प्यालो से नहीं हम
होठों के शरबत से डरते हैं।
लिपट जाने से नहीं कपड़ो पर
सिलवट आ जाने से डरते हैं।।
बंद आँखों से नहीं उनके
अपनी संगीं नियत से डरते हैं।
उनके मासूमियत से नहीं हम
अपने रंगीं तबियत से डरते हैं।।
मुझको यकीं हैं तपा सोना
उनकी रूह ऐ पाकियत।
उनके नसीब से न हम
अपनी किस्मत से डरते हैं।।
जज्बात से नहीं
अपने आप से डरते हैं।
आज की नहीं ये बात
बड़ी मुद्दत से डरते हैं।।
सहमा सा हूँ मैं रब रूठ न जाये
दिल टूट न जाए हम टूट न जाएँ।
ज़माने को रुला दे
ऐसी है रुबैयत।।
अल्फाजों से हम
अपने ला दे एक सैलाब।
अपने इस हुनर से
काबिलियत से डरते हैं।।
प्यार में फुर्सत
पा जाने से नहीं डरते।
अपनी जिगर के
गफ़लत से डरते हैं।।
नसीम ऐ सुबोह में हम
जागने से नहीं डरते।
लेकिन जुदाई से
शब् ऐ फ़ुर्क़त से डरते हैं।।
ठान ले कर देते हैं ऐ दोस्त
साहस के इसी पर्वत से डरते हैं।
किसी के बाप से नहीं डरते
बस अपनी हिम्मत से डरते हैं।
हौसले में कोई नहीं कमी
जरा हिलो-हुज्जत से डरते हैं।
सालों कमाई है खुद्दारी की जो दौलत
इसी नाजुक इज्जत को खोने से डरते हैं।।
एक मजेदार बात याद आ रही है।
हमारे एक निहायत करीबी दोस्त थे।
साहबजादे को एक सौ किलो की हसीना से प्यार हो गया।
पर उसके छः मुस्टंडे भाइयों से वो डरते थे।
तो यदि वो लिख रहे होते तो लिखते ...
बेशक दिलोजान से
चाहता हूँ उनको मैं ऐ दोस्त।
उठाने से नहीं उनको
खुद उठ जाने से डरता हूँ।।
भरी जवानी में कंधो पे
जाने से डरता हूँ।
उनके शहर में भी
अब जाने से डरता हूँ।।
फिर कुछ महीनो बाद वालिद के बुलावे पे गांव गए।
दरवाजे पर पांव रखते ही माशुका के सभी भाई से नैन मिल गए।
सिट्टी पिट्टी ग़ुम, उनके होश उड़ गए ।
एक भाई ने उन्हें संभाला, कोने में ले गए,
चेहरे पर पानी डाला, वो जग गए ।
फिर पुछा जिस दिन उन्होंने बहन से मिलते देखा था,
क्यों वो भागे थे और फरार कहा थे?
बात बात में, बात खुल गयी, बेचारे वो रिश्ते को राजी थे।
फिर क्या था?
दोनों का निकाह हो गया धूम धाम से।
अब इनके छह बेटे हैं
और एक बेटी।
- अमिताभ रंजन झा
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