Saturday, March 30, 2013

पासवर्ड - कविता

दुनिया कितनी बदल गयी है!

सिखाया था कभी
दुनिया को नालंदा ने।
ज़माने को चलाने के नुस्खे
अब हार्वर्ड में मिलते हैं।।

खिलाया था कभी माँ ने
आम और मीठी खीर।
माशूका के हाथों से अब
चेरी-कस्टर्ड मिलते हैं।।

कैंटीनों में कभी होते थे
तहजीब के हर शब्द।
अब तो ज्यादातर
फक और बास्टर्ड मिलते हैं।।

कुरता, दुपट्टा का जमाना
अब नहीं "रंजन"।
हर तरफ आधुनिक खयालो के
फॉरवर्ड ही मिलते हैं।।

पर एक चीज़ नहीं बदली!

पहले प्यार की यादें
हर दिल में बसते हैं।
किताबो में कभी मिलते थे
अब पासवर्ड में मिलते हैं।।

****************

चलन नहीं बाजारों में
अब शराफत का।
मुंह मांगे दामों में अब
बदचलन ही बिकते हैं।।

-अमिताभ रंजन झा

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