Monday, September 30, 2019

पानी-पानी

पानी-पानी

सवाल एक है आज सबकी ज़ुबानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?
वो नहीं हुए, हुआ शहर पानी-पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?

रेहड़ी वालों के मेहनत पे फिरा पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?
ठेले वालों के आंखों में भरा पानी
नेता और बाबू कब होंगे पानी-पानी?

हुए बाढ़ से हालात, राहत-कोष की बरसात
नेता और बाबू के मुँह भर गया पानी!
रहने दो छोड़ो, सवाल ये बचकानी
नेता और बाबू कभी हुए हैं पानी-पानी?

देख नेता और बाबू का लहू हुआ पानी
सदमें में 'प्रवासी', मांगें चुल्लू भर पानी।

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Sunday, September 22, 2019

बेटी

सृष्टि का विकास चरम पे
अब बेटीयों का नाश हो
मनुष्यों का सर्वनाश हो
इस सृष्टि का विनाश हो

हे मूर्ख क्यूँ है नासमझ
क्यूँ नहीं इतनी समझ
सृष्टि का आधार है
बेटी से ही संसार है

शुक्राणु अंडाणु हैं विशेष
इनका जब हो समावेश
मातृ-गर्भ में होकर प्रवेश
जीवन का होता श्रीगणेश

शुक्राणु का तो कोष है
बैंक से मिल जाएगा
गर्भ तो विशेष है
ये कहाँ से लाएगा

बेटियां परम हर्ष हैं
जीवन का उत्कर्ष हैं
मान है, अभिमान हैं
ईश्वर का वरदान हैं

बेटियां बच जाएंगी
सृष्टि निखर जाएगी
बेटियां पढ़ जाएंगी
सृष्टि सँवर जाएगी

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Saturday, September 14, 2019

हिंदी मेरी प्यारी हिंदी

हिंदी मेरी प्यारी हिंदी
सदियों से हमारी हिंदी
जग में सबसे न्यारी हिंदी
संस्कृत की दुलारी हिंदी
सीखने में आसान हिंदी
करोड़ों की जबान हिंदी
साहित्य की खान हिंदी
लेखकों की जान हिंदी
माथे पे तेरे आँचल हिंदी
श्रृंगार तुम्हारा चाँद बिंदी
भावनाओं की बोल हिंदी
हमको है अनमोल हिंदी

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Tuesday, September 10, 2019

हौसला

पिंजड़े में बड़ा सा पंछी
कमजोर अधमरा सा पंछी
भविष्य से अनजान था
पल भर का वो मेहमान था
एक दिन बुलंद कर हौसला
क़ैद से बस उड़ चला
देख के उड़ान उसकी
एक नई पहचान उसकी
दुनिया ये ठिगनी हो गयी
आसमां भी कम पड़ गया

अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

बारिश की बूंद

बारिश की एक बूंद माटी पे जा गिरी
बारिश की वो बूंद माटी से मिल गयी
बारिश की एक बूंद पत्थर पे जा गिरी
बारिश की वो बूंद टूट के बिखर गयी

तुझसे इश्क़ का अंजाम ऐसा हो गया
पहले तो मैं टूटा और पूरा बिखर गया
सोच के शायद ये अंजाम कम हो गया
मैं जोर से कूदा जा मिट्टी में मिल गया

- अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Tuesday, September 3, 2019

अभिलाषा

लड़की हूँ या कोई पाप
प्रश्न बड़ा सा है।
बाहर निकलू घूरे दुनिया
ये कैसी भाषा है?

लड़की बस घर का काम करें
ये कैसी आशा है?
कैसे जिऊ अपनी मर्जी से
मन में निराशा है?

तुझको मुझको सबको
प्रभु ने तराशा है।
फिर भेद भाव ये कैसा है
ये क्या तमाशा है?

एक दिन बदले ये दुनिया
मुझको भरोसा है।
हो लड़का लड़की एक समान
मेरी अभिलाषा है।

- अमिताभ रंजन झा

Monday, September 2, 2019

खामोशी

तेरी खामोशी को हाँ समझू या कि ना समझू
यही सोच सोच कर मैं परेशान हुआ जाता हूँ।

तुझे देखु तो गुस्सा और ना देखु तो भी गुस्सा
तेरी नाजों अदाओं पे  मैं हैरान हुआ जाता हूँ।

रुकने को नही कहती जाने को नहीं कहती हो
तेरी बेरुखी पे तो हाय मैं कुर्बान हुआ जाता हूँ।

दिलों जान जिगर से चाहा  है  मैंने हमेशा तुमको
तुम मुमताज हो न हो मैं शाहजहां हुआ जाता हूँ।

- अमिताभ रंजन झा