Monday, September 2, 2019

खामोशी

तेरी खामोशी को हाँ समझू या कि ना समझू
यही सोच सोच कर मैं परेशान हुआ जाता हूँ।

तुझे देखु तो गुस्सा और ना देखु तो भी गुस्सा
तेरी नाजों अदाओं पे  मैं हैरान हुआ जाता हूँ।

रुकने को नही कहती जाने को नहीं कहती हो
तेरी बेरुखी पे तो हाय मैं कुर्बान हुआ जाता हूँ।

दिलों जान जिगर से चाहा  है  मैंने हमेशा तुमको
तुम मुमताज हो न हो मैं शाहजहां हुआ जाता हूँ।

- अमिताभ रंजन झा

No comments:

Post a Comment