लड़की हूँ या कोई पाप
प्रश्न बड़ा सा है।
बाहर निकलू घूरे दुनिया
ये कैसी भाषा है?
लड़की बस घर का काम करें
ये कैसी आशा है?
कैसे जिऊ अपनी मर्जी से
मन में निराशा है?
तुझको मुझको सबको
प्रभु ने तराशा है।
फिर भेद भाव ये कैसा है
ये क्या तमाशा है?
एक दिन बदले ये दुनिया
मुझको भरोसा है।
हो लड़का लड़की एक समान
मेरी अभिलाषा है।
- अमिताभ रंजन झा
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