Microsoft released new OS Windows 7
The free evaluation version is available for download here Windows 7 Enterprise. Or just google with Windows 7 free download.
I decided to try it my on my HP Pavilion dv5000 laptop (Intel Centrino Duo, x86, nVIDIA, 1 GB RAM, Windows XP).
I downloaded the Windows 7 Upgrade Advisor.
And fun began!
I ran the upgrade advisor and even though I had the internet connected I got consistently an error message telling there is no internet connection.
Old habits die hard!
I dared to fresh install the Windows 7 instead of upgrade.
Voila, after few hiccups I could install the OS!
I fall in love at the first sight because of her impressive looks and friendliness!
Problem began when i received various prompts for incompatible drivers like for Kaspersky Security, HP Update etc. I approached to the vendor's site as suggested while troubleshooting but not of much use. Either they are not ready for W7 or the patch is not working.
Funniest of the problem is while typing the cursor jumps here and there unexpectedly and I am having hard time while typing.
Computer becomes less responsive if it is idle for some time or many windows are open.
I may breakup well before the 90 days trial period and move to my eternal love XP!
Sunday, October 25, 2009
Thursday, September 24, 2009
गूँज उठी शहनाई
मेरे घर हुआ नया सवेरा
जब से तेरा हुआ बसेरा|
हर्षित है आँगन मेरा
जब से हुआ आगमन तेरा||
मेरे घर तू आयी
त्रिलोक की खुशिया संग लाई|
कानों में ढोल बज रहे
गूँज उठी शहनाई||
भोली तू अबोली तू
मेरी प्यारी सहेली तू|
बेला गुलाब और जूही तू
मेरी चंपा चमेली तू ||
कभी हँसना तो कभी रोना
छोटी सी तू एक खिलौना|
एक एक तेरा स्पर्श
मन में लाये उत्कर्ष||
कभी गोद में रख के सुलाऊ
कभी बाँहों भर हृदय लागू|
रोम रोम मेरा पुलकित होए
भावुक मन मेरा ख़ुशी से रोये||
- अमिताभ रंजन झा
जब से तेरा हुआ बसेरा|
हर्षित है आँगन मेरा
जब से हुआ आगमन तेरा||
मेरे घर तू आयी
त्रिलोक की खुशिया संग लाई|
कानों में ढोल बज रहे
गूँज उठी शहनाई||
भोली तू अबोली तू
मेरी प्यारी सहेली तू|
बेला गुलाब और जूही तू
मेरी चंपा चमेली तू ||
कभी हँसना तो कभी रोना
छोटी सी तू एक खिलौना|
एक एक तेरा स्पर्श
मन में लाये उत्कर्ष||
कभी गोद में रख के सुलाऊ
कभी बाँहों भर हृदय लागू|
रोम रोम मेरा पुलकित होए
भावुक मन मेरा ख़ुशी से रोये||
- अमिताभ रंजन झा
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Thursday, July 9, 2009
Entrepreneurship
All the postings on Entrepreneurship will be labelled as Entrepreneurship.
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Tuesday, June 30, 2009
Got a baby girl!!
Got a baby girl! The poem below is dedicated to her (Aishwarya)!
जीवन मेरा नीरस था
फिर मेरे घर तू आई!
मेरे सुने आँगन में
त्रिलोक की खुशियाँ लायी!!
ममता मेरी प्यासी थी
तुने प्यास बुझाई!
मन को मेरे तन को मेरे
रोम-रोम को भायी!!
ख़ुशी से मेरी आँखें नाम थी
सुन के तेरी रुलाई!
परम आनंद की बेला थी
जब तू गोद में मेरी आई!!
तेरे दरबार में मालिक
होती सबकी सुनवाई!
भगवन तुझे धन्यवाद
तू सबकी करे भलाई!!
- अमिताभ रंजन झा
जीवन मेरा नीरस था
फिर मेरे घर तू आई!
मेरे सुने आँगन में
त्रिलोक की खुशियाँ लायी!!
ममता मेरी प्यासी थी
तुने प्यास बुझाई!
मन को मेरे तन को मेरे
रोम-रोम को भायी!!
ख़ुशी से मेरी आँखें नाम थी
सुन के तेरी रुलाई!
परम आनंद की बेला थी
जब तू गोद में मेरी आई!!
तेरे दरबार में मालिक
होती सबकी सुनवाई!
भगवन तुझे धन्यवाद
तू सबकी करे भलाई!!
- अमिताभ रंजन झा
Sunday, March 29, 2009
A poem for dream politician
नेता
आपका नेता वो हो
जो पढ़ा लिखा हो
आपका सच्चा सखा हो|
जिसमें प्रदेश के विकास की ललक हो
जिसके सपनों में आपके सपनों की झलक हो|
जिसके रग रग में आत्मविश्वास हों
जिसमें बसा आपका विश्वास हो|
जिसके सीने में इन्साफ हो
और जिसकी छवि साफ़ हों|
जिसका गगन-चुम्बी स्वाभिमान हो
जिसके पास समस्यों का समाधान हों|
जिसकी भुजाये विशाल हो
जिसके खून में उबाल हो|
धर्मं एवं जाति की राजनीती जिसकी रूचि न हो
विकास के मार्ग पर जिससे त्रुटि न हो|
जो आपके कंधे से कन्धा मिला के चले
जो आपके संग फुले फले|
न की वो जो सिर्फ अपना कल्याण करे
और सिर्फ परिजनों का उत्थान करे|
आपका नेता वो हो
जो पढ़ा लिखा हो
आपका सच्चा सखा हो|
- अमिताभ रंजन झा
आपका नेता वो हो
जो पढ़ा लिखा हो
आपका सच्चा सखा हो|
जिसमें प्रदेश के विकास की ललक हो
जिसके सपनों में आपके सपनों की झलक हो|
जिसके रग रग में आत्मविश्वास हों
जिसमें बसा आपका विश्वास हो|
जिसके सीने में इन्साफ हो
और जिसकी छवि साफ़ हों|
जिसका गगन-चुम्बी स्वाभिमान हो
जिसके पास समस्यों का समाधान हों|
जिसकी भुजाये विशाल हो
जिसके खून में उबाल हो|
धर्मं एवं जाति की राजनीती जिसकी रूचि न हो
विकास के मार्ग पर जिससे त्रुटि न हो|
जो आपके कंधे से कन्धा मिला के चले
जो आपके संग फुले फले|
न की वो जो सिर्फ अपना कल्याण करे
और सिर्फ परिजनों का उत्थान करे|
आपका नेता वो हो
जो पढ़ा लिखा हो
आपका सच्चा सखा हो|
- अमिताभ रंजन झा
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Monday, February 2, 2009
माँ तू याद आती है
A poem dedicated to mother.
माँ तू याद आती है
कोई हो खुशी
या कोई हो ग़म|
याद आये तू
मुझ को हरदम||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
जो दर्द दिल में है
आँशु बन के आती है
मुझको रुलाती है
तुझको बुलाती है|
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
यूँ दूर तू तो है
फिर भी देखूं मैं तुम्हे|
मेरे सामने खड़ी
तू मुस्कुराती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
महसूस मैं करूँ
तू ममता लुटाती है|
रस्ता दिखाती है
लोरी सुनाती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
जब होता मैं परेशां
सीने से लगाती है|
बालों में तू मेरे
उँगलियाँ फिराती है||
इतनी दूर हो गयी
क्यों दूर हो गयी?
कि आवाज भी मेरी
तू सुन न पाती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
किस से शिकायत करू
क्यों छीना तुम्हे?
देव आँखे चुराते हैं
परियां मुंह छुपाती हैं||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है||
- अमिताभ रंजन झा
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
- अमिताभ रंजन झा
माँ तू याद आती है
कोई हो खुशी
या कोई हो ग़म|
याद आये तू
मुझ को हरदम||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
जो दर्द दिल में है
आँशु बन के आती है
मुझको रुलाती है
तुझको बुलाती है|
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
यूँ दूर तू तो है
फिर भी देखूं मैं तुम्हे|
मेरे सामने खड़ी
तू मुस्कुराती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
महसूस मैं करूँ
तू ममता लुटाती है|
रस्ता दिखाती है
लोरी सुनाती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
जब होता मैं परेशां
सीने से लगाती है|
बालों में तू मेरे
उँगलियाँ फिराती है||
इतनी दूर हो गयी
क्यों दूर हो गयी?
कि आवाज भी मेरी
तू सुन न पाती है||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
किस से शिकायत करू
क्यों छीना तुम्हे?
देव आँखे चुराते हैं
परियां मुंह छुपाती हैं||
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है|
माँ तू याद आती है
बहुत याद आती है||
- अमिताभ रंजन झा
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
- अमिताभ रंजन झा
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Monday, January 26, 2009
आंतकवादी की माँ
A poem for terrorism...
आंतकवादी की माँ
मौत का सौदागर तू
करे आतंक से प्यार|
हिंसा का पुजारी
करे मजलूमों पे प्रहार||
कोई हो मजहब
तुझे क्या दरकार!
तू तो बस करता जा
मानव-संहार||
इंसानों के मांस लहू से
बुझाये भूख प्यास|
लाशों के ढेर पे बैठा
करे तू अहठास||
हैवानियत ईमान
कत्ल तेरे संस्कार|
मासूमो की किलकारी
नहीं तुझे स्वीकार||
मेरे जिगर के टुकड़े तुने
जिगर कितने टुकड़े किये|
मेरी नजर के उजाले तुने
ऑंखें कितने सुने किये||
मेरे घर के दीपक तुने
कितने घरों के दीप बुझाये|
मै रोऊ पछताऊ हर पल
तुने ऐसे दिन दिखलाये||
आहत हु तुमसे
किया ममता का अपमान|
किसी माँ के कोख से
न जन्मे ऐसी संतान||
हर भूले राही से
करूँ मैं फ़रियाद|
घर लौट जा तू
करे माँ तुझको याद||
- अमिताभ रंजन झा
Love them who love you!
Live with them always!!
Violence is a crime!
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
हाड़ मांस का पुतला
आंतकवादी की माँ
मौत का सौदागर तू
करे आतंक से प्यार|
हिंसा का पुजारी
करे मजलूमों पे प्रहार||
कोई हो मजहब
तुझे क्या दरकार!
तू तो बस करता जा
मानव-संहार||
इंसानों के मांस लहू से
बुझाये भूख प्यास|
लाशों के ढेर पे बैठा
करे तू अहठास||
हैवानियत ईमान
कत्ल तेरे संस्कार|
मासूमो की किलकारी
नहीं तुझे स्वीकार||
मेरे जिगर के टुकड़े तुने
जिगर कितने टुकड़े किये|
मेरी नजर के उजाले तुने
ऑंखें कितने सुने किये||
मेरे घर के दीपक तुने
कितने घरों के दीप बुझाये|
मै रोऊ पछताऊ हर पल
तुने ऐसे दिन दिखलाये||
आहत हु तुमसे
किया ममता का अपमान|
किसी माँ के कोख से
न जन्मे ऐसी संतान||
हर भूले राही से
करूँ मैं फ़रियाद|
घर लौट जा तू
करे माँ तुझको याद||
- अमिताभ रंजन झा
Love them who love you!
Live with them always!!
Violence is a crime!
Poems dedicated to mother:
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
माँ तू याद आती है
हाड़ मांस का पुतला
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