वस्त्र जो तन पे ओढ़े हैं इन्होने
वो कोई नहीं है मच्छरदानी|
वो हैं इनके मैले चिथड़े कपड़े
जो कहते हैं इनकी कहानी||
भारत माँ की कभी ये थीं दुलारी
लोग कहते थे चीनी की कटोरी|
किस्मत ने ऐसी बदली मारी
भाग्यवान से हुयी यें दुखियारी||
बुद्ध, महावीर, अशोक जैसे माणिक्य
गुरु गोविन्द सिंह, आर्यभट, चाणक्य|
जन्मे बिहार ने अनगिनत संतान
जिनहो ने दुनिया में बढ़ाया मान||
जहाँ में उजाला इनके चिराग से
जल रही यें आज घर के ही आग से|
अपनों से ही लुटती रही अब
पीछे सबसे छुटती रही अब||
बरसों से यें है आस लगाये
चलो मिलके हम कदम बढ़ाये|
कब तक हो यें इनसे सहन
आओ करे अब इनपर रहम||
सुने माँ बिहार की करुण पुकार
आ मिल के करे इनका उद्धार|
वापस लाये इनका मान
तभी बढ़े हमारा सम्मान||
- अमिताभ रंजन झा
Thursday, August 26, 2010
माँ बिहार की करुण पुकार
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Wednesday, August 25, 2010
Happy Rakhi!
सुन ओ मेरी प्यारी बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
यदि बहन नहीं है तो बना लो :)
क्या हुआ जो तू नहीं बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
- अमिताभ रंजन झा
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
यदि बहन नहीं है तो बना लो :)
क्या हुआ जो तू नहीं बहन
राखी आज बंधवाऊंगा|
रक्षा का दू मै वचन
आजीवन निभाऊंगा||
- अमिताभ रंजन झा
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Saturday, August 14, 2010
जशन-ए-आज़ादी
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज हसरत|
हो सख्त मेहनत
और मशक्कत||
गरीबी बदहाली को
दे जरा फुर्सत|
और अम्नोखुशहाली की
हो सदा बरकत||
ए मालिक कर इनायत,
बक्श हमें नेक किस्मत|
यार परिवार के संग मिल
तबियत से हो दावत||
नफरत और कड़वाहट हो
हमेशा के लिए रुखसत|
और वतन-ए-मोहब्बत में
शहादत की हो हिम्मत||
पड़ोसी के लिए थोड़ी
अक्ल की है चाहत|
दें दोस्ती का दस्तक,
प्यार की आहट||
काश वो बदले
अपनी बुरी फितरत|
और सियासत-ए-अमन की
करे इज्ज़त||
करे वो कसरत,
रखे लिहाज़-ए-इंसानियत|
छोड़े उसूल-ए-हुकूमत,
जो ढाए मासूमो पे क़यामत||
बंद करे वो उलटी-सीधी
हरकते निहायत|
वरना एक दिन लोग
करेंगे बगावत||
पर याद ये
बात रहे हजरत|
न हो कोई
गुस्ताख हिमाकत||
गर लड़ाई की
कभी हुई जुर्रत|
खाक होगी
बेशक तेरी किस्मत||
अमन पसंद हैं हम,
करे इसकी वकालत|
लड़ाई नहीं रही
कभी हमारी चाहत||
सबके लिए हो
पैगाम-ए-सदाकत|
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज ये हसरत||
- अमिताभ रंजन झा
है आज हसरत|
हो सख्त मेहनत
और मशक्कत||
गरीबी बदहाली को
दे जरा फुर्सत|
और अम्नोखुशहाली की
हो सदा बरकत||
ए मालिक कर इनायत,
बक्श हमें नेक किस्मत|
यार परिवार के संग मिल
तबियत से हो दावत||
नफरत और कड़वाहट हो
हमेशा के लिए रुखसत|
और वतन-ए-मोहब्बत में
शहादत की हो हिम्मत||
पड़ोसी के लिए थोड़ी
अक्ल की है चाहत|
दें दोस्ती का दस्तक,
प्यार की आहट||
काश वो बदले
अपनी बुरी फितरत|
और सियासत-ए-अमन की
करे इज्ज़त||
करे वो कसरत,
रखे लिहाज़-ए-इंसानियत|
छोड़े उसूल-ए-हुकूमत,
जो ढाए मासूमो पे क़यामत||
बंद करे वो उलटी-सीधी
हरकते निहायत|
वरना एक दिन लोग
करेंगे बगावत||
पर याद ये
बात रहे हजरत|
न हो कोई
गुस्ताख हिमाकत||
गर लड़ाई की
कभी हुई जुर्रत|
खाक होगी
बेशक तेरी किस्मत||
अमन पसंद हैं हम,
करे इसकी वकालत|
लड़ाई नहीं रही
कभी हमारी चाहत||
सबके लिए हो
पैगाम-ए-सदाकत|
जशन-ए-आज़ादी पे
है आज ये हसरत||
- अमिताभ रंजन झा
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Friday, August 13, 2010
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना
नौ महीने उदर में
समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से
लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा
जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको
बसाये रक्खा|
इतना छोटा हूँ कि
हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और
कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं
रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो
जी मेरा घबराता|
तेरी गोदी में सीखूंगा
मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर
एक दिन है चलना,
माँ मुझ पे कभी भी
नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ
तो सिखाना संभलना|
अपनी आँचल में मुझको
छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पे
टिकाये रखना,
दुनिया की निगाहों से
बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना|
मेरे बालों में उंगलिया
फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से
थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पे चुम्बन
लुटाते रहना,
गालों से गालों को
सटाये रखना|
माँ मुझको आँचल में
छुपाये रखना|
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना||
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से
लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा
जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको
बसाये रक्खा|
इतना छोटा हूँ कि
हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और
कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं
रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो
जी मेरा घबराता|
तेरी गोदी में सीखूंगा
मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर
एक दिन है चलना,
माँ मुझ पे कभी भी
नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ
तो सिखाना संभलना|
अपनी आँचल में मुझको
छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पे
टिकाये रखना,
दुनिया की निगाहों से
बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना|
मेरे बालों में उंगलिया
फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से
थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पे चुम्बन
लुटाते रहना,
गालों से गालों को
सटाये रखना|
माँ मुझको आँचल में
छुपाये रखना|
माँ मुझको कलेजे से
लगाये रखना||
- अमिताभ रंजन झा
Poems dedicated to mother:
माँ तू याद आती है
आंतकवादी की माँ
हाड़ मांस का पुतला
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