आँखें फाड़ शीशे को
देखते रहते हो,
कभी शरमाते
कभी घबराते
तो कभी मुस्कराते हो|
आँखें बंद कर कभी
अंदर भी निहारों||
सूरत सँवारने में
घंटे लगे रहते हो,
क्या क्या लगा के
न जाने सजते हो
सँवरते हो|
कभी सीरत को भी
तो तराशो निखारो||
- अमिताभ रंजन झा
Saturday, January 1, 2011
सूरत और सीरत
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