Saturday, January 8, 2011

कहानी गृह-कर्ज की

किसी ने सच कहा है: दुःख बांटने से घटता है, सुख बांटने से बढ़ता है. मैंने पिछले पोस्ट में अपने कर्ज तले दबे मध्यवर्ग के जीवन के दर्द को चित्रित करने का प्रयत्न किया था, उस लेख के बाद मन काफी हल्का हुआ. मैंने वादा किया था कि जीवन से जो सिखा है, आपके साथ बाटूंगा. सो हाजिर है "कहानी गृह-कर्ज की" या "दास्तान-ए-होमलोन".

वर्ष २००५ में एक फ्लैट ख़रीदा, बैंगलोर में. उस समय राष्ट्रीयकृत बैंको से गृह-कर्ज लेना टेढ़ी खीर थी, मैंने कुछ शाखाओं में संपर्क किया किन्तु कोई फायदा न हुआ. निजी बैंक झटपट कर्ज दे देते थे वो भी बहुत ही सहूलियत से. सो मैंने निजी बैंकों से संपर्क किया और आखिरकार एच. एस. बी. सी. बैंक से लोन एप्रूव हो गया, ७.२५ % फ्लोटिंग ब्याज दर पर, २० साल के लिए. कुछ दिनों में सब फ़ाइनल हो गया, और मुझे घर मिल गया. फिर दो महीने बाद एक लैटर मिला बैंक से कि ब्याज दर बढ़ा कर ७.७५% कर दिया गया है और मासिक किस्त की राशी बढ़ा दी गयी है. फिर तो ये सिलसिला हो गया और वर्ष २००८ के करीब में ब्याज दर बढ़ कर १३.७५% हो चुका था, मासिक किश्त लगभग दुनी हो चुकी था और समय सीमा २५ साल की हो गयी थी. बीते लगभग तीन सालों में, लिए गए कर्ज के एक तिहाई से ज्यादा कि रकम दे चुका था किन्तु मूल धन वैसे का वैसे ही था. सोचता रहता था कि ये क्या हो रहा है, ऐसा चलेगा तो मैं लोन कभी नहीं चुका पाउँगा. मुंशी प्रेमचंद जैसे महान कथाकारों कि कहानियों में सूदखोर महाजन के जाल में फंसे किसान हों या सत्यजीत रे जैसे महानुभावो के सिनेमा के किरदार, सब अपने लगने लगे थे, सबके दर्द को महसूस कर सकता था. सोचता रहता था कि सरकार क्या कर रही है? कैसे उन्होंने निजी बैंको को बेलगाम छोड़ दिया हमारा शोषण करने कि लिए? हालाँकि कर, सरचार्ज, इंधन, महंगाई इत्यादी बढ़ाने में सरकार कोई कोताही नहीं बरत रही थी और न आज ही बरत रही है. और हम सरकार और लेनदार के दो पाटों में पिस रहे थे, पिस रहे है.

वर्ष २००८ ही वो साल था जब मैं "रिच डैड पुअर डैड" पढ़ कर जागरूक हो चुका था. दुनिया में मंदी कि आंधी छायी थी. सरकार भी नींद से जागी और सब बैंको को ब्याज दर घटाने का निर्देश दे रही थी. सो मैंने एक दिन फ़ोन घुमाया एच. एस. बी. सी. कॉल सेंटर, बोला ब्याज दर कम करो नहीं तो किश्त देना बंद कर देंगे. असर हुआ, ब्याज दर १३.२५% हो गया. उसके पश्चात भी "आर बी आई" ने कई दफे "सी आर आर" में कटौती की पर बैंक ने ब्याज दर नहीं घटाया. मन में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. उस समय राष्ट्रीयकृत बैंक भी गृह-कर्ज के रणक्षेत्र में उतर चुके थे. "एस बी आई" उनमे अग्रणी था सो मैंने एक शाखा में संपर्क किया, बोले कर्ज का स्थानांतरण संभव है वो भी करीब १०% ब्याज दर पर, १५ साल के लिए. मैंने एच. एस. बी. सी. में फिर संपर्क किया, वो बोले सब्र करने को, कुछ दिनों में ब्याज दर कम हो जायेगा, सरकार से बात हो रही है. मैं अड़ गया, अभी कम करो या मुझे माफ़ करो. शायद वो भांप चुके थे कि मेरा इस से ज्यादा दोहन नहीं कर सकते, मान गए, बोले २% पेनाल्टी लगेगा, सर्विश टैक्स अतिरिक्त. तीन साल में मूलधन का एक तिहाई से ज्यादा देने के बाद भी, मुझे उन्हें मूल धन से ज्यादा ही देना पड़ा. अवश्य ही उन पैसे से उन्होंने नया शिकार किया होगा. खैर अंततः मैंने लोन एस बी आई में ट्रांसफर करवा लिया. संतुष्ट हूँ उनकी पारदर्शिता से, ब्याज दर में भी कोई भारी बढ़ोत्तरी नहीं हुयी है न ही मासिक किश्त में. हालाँकि ग्राहक सेवा में काफी सुधार की गुंजाईश है. जब भी अतिरिक्त पैसे होते हैं, शौपिंग करने के बजाय झट से नेट बैंकिंग के द्वारा होम लोन खाते में ट्रान्सफर कर देता हूँ, एक हजार, दो हजार या कुछ भी. पिछले दो साल में मूलधन का लगभग एक चौथाई अदा कर चुका हूँ और विश्वाश है एक दिन ये कर्ज पूरा का पूरा चुका पाउँगा.

अपने घर का सपना संजोये मध्य वर्ग का दोहन बैंक तो करती ही है, रियल स्टेट एजेंट्स और राजनीतिज्ञों द्वारा अलग शोषण होता है. प्रोपर्टी व्यवसायी भ्रष्ट राजनीतियों से सांठ-गाँठ कर विकासशील शहर के आस पास की जमीन भोले-भाले ग्रामीणों से कौड़ी के भाव पर खरीदते है, और हमें आसमान छूटे भाव देने पड़ते है. ये अलग चिंता का विषय है, कभी विस्तार से लिखूंगा इस विषय पर.

गृह-कर्ज के अनुभव ने मुझे ये सिखाया है कि निजी बैंकों से कभी कोई कर्ज नहीं लेना चाहिए. आप कभी भी निजी और राष्ट्रीयकृत बैंक की तुलना करे, निजी बैंक का ब्याज दर हमेशा ज्यादा होता है, उनकी शर्ते पारदर्शी नहीं होती हैं. वो आपको फ्लोटिंग रेट पर कर्ज थोपने की कोशिश करते हैं और फिर एक बार आप उनके जाल में फँस गए, वो कर्ज का ब्याज दर बढ़ाते जाते हैं. आप उनके जाल में छटपटाते रह जाते है. राष्ट्रीयकृत बैंक थोड़ा समय लेते है पर काम आपके हित में होता है.

जो लोग निजी बैंक से कर्ज ले चुके हैं उनको कहना चाहूँगा, लोन ट्रान्सफर करवा ले राष्ट्रीयकृत बैंक में, फायदे में रहेंगे. तनिक भी देर न करे, आपका आलस्य आपको हर दिन महंगा पर रहा है. अपने मेहनत की कमाई ऐसे व्यर्थ न जाने दे. जागें, अपनी आँखें खोल ले और दुसरो को भी जागरूक करे. आप अपने अनुभव कमेंट्स सेक्सन में पोस्ट कर सकते हैं, कृपया अवश्य पोस्ट करें.

अगले पोस्ट में क्रेडिट कार्ड्स के अनुभव को लिखूंगा.

2 comments:

  1. very helpful for both who are suffering and who aspires to be.

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  2. काफी उम्दा लेखन है । हालाँकि फिक्स्ड और फ्लोटिंग में फिक्स्ड को ही ज्यादा सुरक्षित माना जाता है । रही बात निजी या सरकारी, तो सरकारी सर्वसम्मत विकल्प है और रहेगा ।

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