Thursday, July 29, 2010

हबीब या रक़ीब

एक सुनसान से कब्रिस्तान में
किसी सुन्दर से पत्थर तले
खुबसूरत कफ़न में दफ़न
करता जाता है कोई परेशान इन्सान
एक एक जज्बात और नाकामयाबी को|

जिसे देख कर हैरान मैं नादान|

वो हबीब है या रक़ीब
मैं नहीं जनता पर ये हूँ मानता
कि ज़िंदा रहने और
आगे बढ़ने के लिए
ये क़दम जरुरी हैं यारों||

- अमिताभ रंजन झा

पागल मन

ख्वाबों में जो बसी हुयी हैं
नजरें उनको ढून्ढ रही हैं|
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं||

कानो में पायल छनक रहे है
फिजाओं में महक वही है|
मौसम भी कर रहा इशारे
दिल में भी कसक वही है||

आँखों में छाए वो ही वो
सोने सी चमक रही हैं|
होठों पे मासूम हंसी है
असमान से उतर रही हैं||

पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं|

- अमिताभ रंजन झा

Saturday, July 24, 2010

हँसते हँसते कट जाए रस्ते

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मैंने पुछा क्या हाल
उसने कहा बस चल रहा|
मैंने पुछा किस रुट पर
सारे दांत मेरे गिरे टूट कर||

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विदेश आने से पहले
लोग सही बात नहीं बताते|
कुछ पता हो न हो
अफवाह जरुर फैलाते||

उधर आटा नहीं मिलेगा
ऐसा लोगो ने बताया|
तो मेरे एक साथी ने
दस किलो आटा ढो के लाया||

बीवी नहीं मिलेगी
ऐसा मुझे लोगो ने बताया|
सो मै पचहत्तर किलो
साथ ले के आया||
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- अमिताभ रंजन झा

Friday, July 23, 2010

भारतवर्ष की संतान


भारतवर्ष की संतान

भारतवर्ष की है संतान,
ये बात कभी तू भूले न|
ऐसे करना काम महान,
मन ख़ुशी से फूल समाये न||

एक मुख बस, आंख कान दो,
दस उंगलिया दिए विधाता ने|
बोल देख सुन थोड़ा, कर ज्यादा काम,
व्यर्थ समय कभी गंवाए न||

किसी हाल में कोई बुराई
तुझको कभी बहकाए न|
मुस्कान, स्वाभिमान तो रखना,
अभिमान कभी छू पाए न||

जीवनपथ में भेड़िये मिलेंगे,
सिर्फ मिलेंगे भेड़ ही न|
संयम से तू संग चले,
और कभी घबराये न||

अटल विश्वास से सब संभव,
असंभव तुझे झुकाए न|
साहस धीरज से रहना,
रोड़े कदम रोक पाए न||

तू जाये उस पथ भी,
जहा भय से कोई जाये न|
आगे बढ़ते जाना तू,
क्या हुआ संग कोई आये न||

जब तक न मंजिल हासिल हो,
न रुके तू और सोये न|
मुश्किल हो तो खूब लड़े,
न थके तू और रोये न||

एक मुकाम हो जब हासिल
आलस से सुस्ताये न|
कामयाबी पर जश्न हो बेशक
पर प्यास कभी बुझ पाए न||

सूरज, चाँद, सितारे भी
चमक तेरी घटाए न|
ब्रह्माण्ड सदा याद रखे,
इतिहास कभी भुलाये न||




- अमिताभ रंजन झा