Thursday, July 29, 2010

पागल मन

ख्वाबों में जो बसी हुयी हैं
नजरें उनको ढून्ढ रही हैं|
पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं||

कानो में पायल छनक रहे है
फिजाओं में महक वही है|
मौसम भी कर रहा इशारे
दिल में भी कसक वही है||

आँखों में छाए वो ही वो
सोने सी चमक रही हैं|
होठों पे मासूम हंसी है
असमान से उतर रही हैं||

पागल मन कर रहा इशारे
शायद वो यही कही हैं|

- अमिताभ रंजन झा

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