Thursday, April 18, 2013

घर से संसद है बहुत दूर


Favourit time pass sher of a Saansad:
Ghar se sansad hai bahut dur chalo yu kar le
Kisi haste huye bachche ko rulaya jaye!

एक सांसद का फेवरिट टाइम पास:
घर से संसद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी हँसते हुए बच्चे को रुलाया जाये।

Inspired by Nida Fazli!

Wednesday, April 17, 2013

विपरीत आकर्षण


विपरीत लिंग का आकर्षण प्रकृति का नियम है।
सब के लिए आसान नहीं सदा रखना संयम है।।
कच्ची उमर में ये सम्मोहन होता अति परम है।
उम्र ही ऐसा है नसों में दौड़ता खून गरम हैं।।

अजीब सी दिल में धड़कन बड़ी हलचल होती है।
किसी ख़ास को देखने की इक्षा पल पल होती है।।
उल्लू की तरह जागें जब सारी दुनिया सोती है।
जवां उमंगें बीज रंग बिरंगे नयन में बोती है।।

मन रूपी वीणा के झन झन तार बजते हैं।
खट्टे मीठे से ख्वाब लगातार सजते हैं।।
कोई मिलने की मिन्नतें बार बार करते हैं।
कोई हाथों के मेहंदी में अपना प्यार रचते हैं।।

आवाज़ सुन लगे कानों में मिसरी घुलता है।
दिल में उसी का नाम आयने में चेहरा दीखता है।।
एक दुसरे को पता हो ये जरुरी नहीं होता है।
मुड़ मुड़ के कोई देखता छुप छुप के रोता है।।

वो कौन है जिसने ये न महसूस किया है?
शख्स विशेष के खातिर न मदहोश हुआ है??
वो होश में रह कर भी थोड़ा बेहोश रहा है।
जमाने से डर कर भी बड़ा गर्मजोश रहा है।।

- अमिताभ रंजन झा

Monday, April 15, 2013

व्यंग: राजनीतिज्ञ द्वारा दूध दूहने का प्रतियोगिता


मंगल ग्रह पर एक बार अखिल ब्रह्माण्ड के जाने माने राजनीतिज्ञ द्वारा दूध दूहने का प्रतियोगिता आयोजित हुआ। सब नेता को अपना परिचय देना था और उनका नाम कैसे पड़ा ये बताना था और फिर दूध दूहना था। एक से एक धुरंधर आये, परिचय, नाम का कारण बताये और फिर दूध का झड़ी लगा दिये। पाँच, दस, बीस, पच्चीस लीटर।

खुराक देबामा जी का नंबर आया। खुराक ज्यादा था बचपन से ही। चौबीस घंटे माँ का दूध पीते रहते थे जब बच्चे थे। जब से बोलना सीखे हरदम कहते खुराक देबा माँ। सो नाम पड़ गया खुराक देबामा बड़े हो गए हैं, शादी भी हो गयी है, दो बेटी भी हैं. लेकिन दूध खुराक अभी भी वही है। पहले कहते खुराक देबा माँ अब कहते हैं खुराक देबा बुच्ची के माँ। आने के साथ जितनी भी महिला वहा उपस्थित थीं सबको सबसे खूबसूरत कहते गये। महिला लोग को बुरा नहीं लगा लेकिन मीडिया को बर्दाश्त नहीं हुआ। हंगामा मचा दिये। देबामा जी माफ़ी मांग के आगे बढ़े। आये एकदम गंग्नम स्टाइल में, लाये अपनी जर्सी गाय आ धराधर दूह दिए चालीस लीटर।

फिर निरंतर गोदीजी आये। जनम से अभी तक जो जो किया था सबका बखान किये। बताया निरंतर गोदी में रहते थे सो नाम पड़ा। गोदी में अब भी रहते हैं, मीडिया के, चाटुकारों के। फिर पूरा मेहनत से पंद्रह लीटर दूहे। सेक्रेटरी से पूछे इतना कम काहे हुआ? सेक्रेटरी बोले देसी गाय है जर्सी गाय का खाल पहना के लाये हैं। आप पंद्रह निकाल दिए, दुसरा पांचो लीटर नहीं निकाल सकता था. फिर सेक्रेटरी इशारा किये भीड़ के तरफ़। जज पूछा कितना है, गोदीजी बोले फ़िफ्टीन। उनके कहने से पहले तमाम मीडिया, समर्थक लोग हल्ला मचा दिये, फिफ्टी, फिफ्टी। फिफ्टीन फिफ्टी बन गया। बस स्कोरर उनको देबामा जी से भी ऊपर डाल दिया। देबामा जी मन मसोस के रह गए मन ही मन बोले बेटा जब तक हम हैं तोहरा कहियो हमरे इहा का वीसा नहीं मिलेगा।

फिर नंबर आया रहल गन्दे का. महीन स्वर में बोले हम बच्चा में गन्दा रहे थे. माँ कहती तू हरदम रहेलअ गन्दे। सो नाम पड़ गया रहल गन्दे। बोले अब भी जब साफ़ कुरता बर्दाश्त नहीं होता है, देहात में जा के मिट्टी, कचरा उठा लेते है. तलब भी पूरा हो जाता है आ वाहवाही भी मिल जाता है. धराधर तीस लीटर दुह दिए, सेक्रेटरी बोले सर छोड़ दीजिये, लोग को पता चल जायेगा स्विट्ज़रलैंड का गाय है। माँ बोली मना किये थे, कहे थे कम दूहो। सेक्रेटरी इशारा किये, भीड़ हल्ला करने लगा। जज पूछा कितना? वो बोले थर्टी। भीड़ बोला थर्टीन थर्टीन. थर्टी थर्टीन हो गया. माँ को भी चैन आया।

उसके बाद धोती कुरता में बत्तीस कुमारजी का नंबर आया। मुस्कुराए, बत्तीस दांत दिख गये। बोले जादा नहीं बोलूंगा, पेट से ही बत्तीस दांत है। सो नाम पड़ गया। इन्तजार करना पड़ा, उनका गाय नहीं आया था। सेक्रेटरी बोला सर विरोधी लोग गाय भगा दिया है।

गोदीजी एक आयोजक को इशारा किये। वो आयोजक जो दिया बत्तीस जी उसी को दुहने लगे। सुबह से शाम हो गया। रात हो गया। बेदम हो गए लेकिन दुहते रहे। जज उनका बाल्टी देखा तो पता चला एक पौवा भी नहीं था।

जज हँसा, बोल इतना देर में यही? फिर ऊपर देखा, होश उड़ गये। इ त सांड था।

बत्तीसजी बोले गोदीजी को ऊपर रहने दिजिये, उनको राज्य भी जेर्सी गाय जैसा ही मिला था। हमरा किस्मत, राज्य भी मरणासन्न सांड जैसा ही मिला था। हम तो बस भाग लेने आये हैं, रैंक का मोह नहीं है। सेक्रेटरी पुछा सर सांड से दूध? बत्तीस जी बोले बुरबक, इज्जत रखना था ना। मेहनत कर रहे थे, जो पसीना आ रहा था उसको चुनौटी के चुना में मिला के बाल्टिया में गिराते गये। जज लोग एक हफ्ता का समय देता तो गोदी को पीछे छोड़ देते। सेक्रेटरी को आँख मारे बोले जनता सब देख रही है, लेकिन वही जो हम दिखा रहें हैं।

भीड़ में टोपी पहने कुछ लोग हल्ला मचा रहे थे हरमन केजड़ेबाल को काहे नहीं बुलाये इ प्रतियोगिता में. सब प्रतियोगी मुस्कराने लगे मने मन सोच के जो आयकर बिभाग में हो कर भी दुहना नहीं सीख पाया यहाँ कैसे गाय दूह पाता। केजड़ेबाल स्टेडियके बाहर झाड़ू ले के सफाई ही करने लगे जब नहीं घुसने दिया लोग. और बड़बड़ा रहे थे हमरा देख के बचपने से हर मनके जड़े बाल एही लिए हमरा नाम हरमन केजड़ेबाल।

अमिताभ रंजन झा
Monday, April 15, 2013, Edited on 9/1/2014
http://amitabh-jha.blogspot.in/2013/04/blog-post_4696.html

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Old version

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कथा के प्रशंशा और ताली के दिए अग्रिम धन्यवाद, निंदा और गाली के लिए अग्रिम क्षमा प्रार्थना

- अमिताभ रंजन झा

शायद आपको ये व्यंग रचना भी पसंद आये।

सफल राजनीतिज्ञ मडोना कुमार

एनडीए के शातिर, यूपीए के अल्हड़!



फेसबुक/ट्विटर डोमखाना बस्ती का कुक्कुर कटौव्वल

आम आदमी(केजरीवाल ), पप्पू (राहुल) और फेंकू (मोदी) का लड़ाई इ स्तर पर पहुचता जा रहा है कि पटना के मंदिरी मोहल्ला के चीना कोठी नाला पूल के पास का डोमखाना बस्ती का कुक्कुर कटौव्वल याद आ जाता है। रोज साँझ में मर्दबा ताड़ी आ पाउच का कॉकटेल पी के पहले घरवाली को पीटता आ फिर घरवाली (गाली ) गाड़ी आ झाड़ू से तरोतार कर देती . सब गाली का रिविजन पांच मिनट में, साथ ही नए नए अविष्कृत गालिया, अनोखी, अनसोची गालिया। मन ऐसा घिना जाता कि उधर जाना छोड़ देते चाहे लम्बा कट काहे नहीं लेना पड़ता। आम आदमी(केजरीवाल ), पप्पू (राहुल) और फेंकू (मोदी) का फेसबुक/ट्विटर पेज वैसा ही हो गया है। अनलायक, अनलायक, अनलायक!

जातिवादी न समझे मुझे, जात पूछे बिना स्कूल से ही टिफिन शेयर किया है और करते रहेंगे।

Sunday, April 7, 2013

पोखर माछ मखान ह्रदय में वाणी में मोधक गंगा


सीता माता जेता के बेटी विद्यापति के जे धरती
कखनो बायढ़ के मारल आय कखनो अकाल स परती।
सरकार नेता के कुनो नै मतलब बैन क बैसल मूर्ति
बाजैथ नै मुंह में पान भरल देखैत नै छन्ही नाक में सुर्ती।।

मिथिला में दुर्लभ अछि आयओ पानी, बिजली, शिक्षा
काज उद्योग के कुनो पता नै ने स्वस्थ्य के कुनो रक्षा।
सब सुख सुविधा हमरो भेंटा हरदम मोन में रहल इक्षा
अंधकार जीवन अछि आयओ प्रगति के अछि प्रतिक्षा।।

पेट में अन्न के दाना नै आ देह पर नै अछि अंगा
भारत माँ के हम संतान अछि हमरो सपना सतरंगा।।
पोखर माछ मखान ह्रदय में वाणी में मोधक गंगा
ठोड़ पर अछि दरभंगा आ मोन में अछि तिरंगा।।

अपन हक़ के बात करै छी हम नै छी भिखमंगा
आब और बर्दाश्त नै करब किनको व्यवहार दूरंगा।
जे मैथिल हित के बात नै करता नेता हुनका देबैन ठेंगा
मिथिला के जे माथ पर रखता देबैन नबका धोती रंगा।।

पोखर माछ मखान ह्रदय में वाणी में मोधक गंगा
ठोड़ पर अछि दरभंगा आ मोन में अछि तिरंगा।।

- अमिताभ रंजन झा

The great Mithila dreams!


Monday, April 1, 2013

आज की मीरा


आज की मीरा प्रैक्टिकल,
हकीक़त में जीती है।
विष न राणा देता है
न ही मीरा पीती है।।

वो न माथा पटकती है
न दर दर भटकती है।
नैहर से ससुराल तक
सब का मान रखती है।।

अब मीरा और राणा
संग घर में रहते हैं।
कान्हे को उनके बच्चे
प्यार से मामा कहते हैं।।

उसके कान्हा की दूसरी
मीरा से शादी हो जाती है।
जिसके कान्हा को बच्चे
प्यार से मामा बुलाते हैं।।

हर राणे में कन्हैया है
हर कान्हे में राणा है।
मीरा भी समझती है
"मूव ऑन" का जमाना है।।

कुछ मीरा और कान्हा की
बात बन भी जाती है।
कुछ घर से भाग जाते हैं
कुछ की शादी हो जाती है।।

बैकुंठ धाम का कान्हा भी
चैन से बांसुरी पकड़ता हैं।
अब किसी पागल के लिए
नहीं वो धरती पर उतरता है।

- अमिताभ रंजन झा।

गृह कर्ज दुह्स्वप्न


किसानों की पुरानी जमीन बिल्डर
सरकार से मिल के ले रही है।
किसानो को सौ के भाव दे कर
हमें थव्जेंड्स पर स्कवैर फीट में बेच रही है।।
एक घर हो हमारा ये सपना
रियलटरों के भूख से मिल रही है।
अनमोल खेत जो उगलती थी सोना
अब कंक्रीट जंगल बन रही है।।

होम लोन लेना इतना है इजी
तो लोन हम सब ले रहे हैं।
चुकाना पड़ता है सूद के साथ
हम लोग फिर भी ले रहे हैं।।
सैलरी के बड़े हिस्से से
इ एम् आई समय पर दे रहे हैं।
देखा है जो घर का सपना
सूद जुर्माने में दे रहे हैं।।

नीचे चार्ट में देखिये
इस मनमानी का असर
कितना बोझ पड़ेगा
अपने हर बच्चे पर।।
पच्चीस लाख का लोन
हम पच्चीस साल का जो लें।
मेरे बच्चा तब रखे अपने घर का स्वप्न
जब महीने डेढ़ लाख कमा ले।।



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देश भक्ति का भाव जाग गया है,
ओल्ड मोंक रगों मैं अब दौड़ रहा है।
इंडिया की बात है सबसे अनोखी
मेरा ह्रदय ये इंग्लिश में बोल रहा है।।

कुछ मदहोश पंक्तिया...

सारी दुनिया घूम लोगे
पर भारत देश जैसा ना पाओगे।
अमेरिका यूरोप ऑस्ट्रेलिया में भी
ऐसे महंगे सूद का दर तुम न पाओगे।।
ये देश अटके हैं आधे एक प्रतिशत पे
चालीस प्रतिशत पर कर्ज यही तुम पाओगे।
सरकारों ने लगा रखी है लगाम वहा पर
भारत सरकार सा दिल तुम कही न पाओगे।।

भारत की अध्यात्मिक सरकार
मैडिटेशन कर रही है।
योग ध्यान में डूबकर
इश्वर की तलाश कर रही है।।
कुछ बोध नहीं इसको
यहाँ पर क्या बीत रही है।
चन्द लोगों ने है लूट मचाई
देश खुद ही चल रही है।।

ये ख्वाइश है कि थोड़ी
सरकार जल्दी जाग जाये।
क्रेडिट रिपो रेट रूपी शैतान
एकदम बेलगाम हो चुकी है।।
सरकार उस पर शख्त होकर
एक बड़ी सी लगाम लगाये।
ख्वाइशें तो ख्वाइशें हैं,
हकीकत तो है वो सो रही है।।

- अमिताभ रंजन झा।