मंगल ग्रह पर एक बार अखिल ब्रह्माण्ड के जाने माने राजनीतिज्ञ द्वारा दूध दूहने का प्रतियोगिता आयोजित हुआ। सब नेता को अपना परिचय देना था और उनका नाम कैसे पड़ा ये बताना था और फिर दूध दूहना था। एक से एक धुरंधर आये, परिचय, नाम का कारण बताये और फिर दूध का झड़ी लगा दिये। पाँच, दस, बीस, पच्चीस लीटर।
खुराक देबामा जी का नंबर आया। खुराक ज्यादा था बचपन से ही। चौबीस घंटे माँ का दूध पीते रहते थे जब बच्चे थे। जब से बोलना सीखे हरदम कहते खुराक देबा माँ। सो नाम पड़ गया खुराक देबामा बड़े हो गए हैं, शादी भी हो गयी है, दो बेटी भी हैं. लेकिन दूध खुराक अभी भी वही है। पहले कहते खुराक देबा माँ अब कहते हैं खुराक देबा बुच्ची के माँ। आने के साथ जितनी भी महिला वहा उपस्थित थीं सबको सबसे खूबसूरत कहते गये। महिला लोग को बुरा नहीं लगा लेकिन मीडिया को बर्दाश्त नहीं हुआ। हंगामा मचा दिये। देबामा जी माफ़ी मांग के आगे बढ़े। आये एकदम गंग्नम स्टाइल में, लाये अपनी जर्सी गाय आ धराधर दूह दिए चालीस लीटर।
फिर निरंतर गोदीजी आये। जनम से अभी तक जो जो किया था सबका बखान किये। बताया निरंतर गोदी में रहते थे सो नाम पड़ा। गोदी में अब भी रहते हैं, मीडिया के, चाटुकारों के। फिर पूरा मेहनत से पंद्रह लीटर दूहे। सेक्रेटरी से पूछे इतना कम काहे हुआ? सेक्रेटरी बोले देसी गाय है जर्सी गाय का खाल पहना के लाये हैं। आप पंद्रह निकाल दिए, दुसरा पांचो लीटर नहीं निकाल सकता था. फिर सेक्रेटरी इशारा किये भीड़ के तरफ़। जज पूछा कितना है, गोदीजी बोले फ़िफ्टीन। उनके कहने से पहले तमाम मीडिया, समर्थक लोग हल्ला मचा दिये, फिफ्टी, फिफ्टी। फिफ्टीन फिफ्टी बन गया। बस स्कोरर उनको देबामा जी से भी ऊपर डाल दिया। देबामा जी मन मसोस के रह गए मन ही मन बोले बेटा जब तक हम हैं तोहरा कहियो हमरे इहा का वीसा नहीं मिलेगा।
फिर नंबर आया रहल गन्दे का. महीन स्वर में बोले हम बच्चा में गन्दा रहे थे. माँ कहती तू हरदम रहेलअ गन्दे। सो नाम पड़ गया रहल गन्दे। बोले अब भी जब साफ़ कुरता बर्दाश्त नहीं होता है, देहात में जा के मिट्टी, कचरा उठा लेते है. तलब भी पूरा हो जाता है आ वाहवाही भी मिल जाता है. धराधर तीस लीटर दुह दिए, सेक्रेटरी बोले सर छोड़ दीजिये, लोग को पता चल जायेगा स्विट्ज़रलैंड का गाय है। माँ बोली मना किये थे, कहे थे कम दूहो। सेक्रेटरी इशारा किये, भीड़ हल्ला करने लगा। जज पूछा कितना? वो बोले थर्टी। भीड़ बोला थर्टीन थर्टीन. थर्टी थर्टीन हो गया. माँ को भी चैन आया।
उसके बाद धोती कुरता में बत्तीस कुमारजी का नंबर आया। मुस्कुराए, बत्तीस दांत दिख गये। बोले जादा नहीं बोलूंगा, पेट से ही बत्तीस दांत है। सो नाम पड़ गया। इन्तजार करना पड़ा, उनका गाय नहीं आया था। सेक्रेटरी बोला सर विरोधी लोग गाय भगा दिया है।
गोदीजी एक आयोजक को इशारा किये। वो आयोजक जो दिया बत्तीस जी उसी को दुहने लगे। सुबह से शाम हो गया। रात हो गया। बेदम हो गए लेकिन दुहते रहे। जज उनका बाल्टी देखा तो पता चला एक पौवा भी नहीं था।
जज हँसा, बोल इतना देर में यही? फिर ऊपर देखा, होश उड़ गये। इ त सांड था।
बत्तीसजी बोले गोदीजी को ऊपर रहने दिजिये, उनको राज्य भी जेर्सी गाय जैसा ही मिला था। हमरा किस्मत, राज्य भी मरणासन्न सांड जैसा ही मिला था। हम तो बस भाग लेने आये हैं, रैंक का मोह नहीं है। सेक्रेटरी पुछा सर सांड से दूध? बत्तीस जी बोले बुरबक, इज्जत रखना था ना। मेहनत कर रहे थे, जो पसीना आ रहा था उसको चुनौटी के चुना में मिला के बाल्टिया में गिराते गये। जज लोग एक हफ्ता का समय देता तो गोदी को पीछे छोड़ देते। सेक्रेटरी को आँख मारे बोले जनता सब देख रही है, लेकिन वही जो हम दिखा रहें हैं।
भीड़ में टोपी पहने कुछ लोग हल्ला मचा रहे थे हरमन केजड़ेबाल को काहे नहीं बुलाये इ प्रतियोगिता में. सब प्रतियोगी मुस्कराने लगे मने मन सोच के जो आयकर बिभाग में हो कर भी दुहना नहीं सीख पाया यहाँ कैसे गाय दूह पाता। केजड़ेबाल स्टेडियके बाहर झाड़ू ले के सफाई ही करने लगे जब नहीं घुसने दिया लोग. और बड़बड़ा रहे थे हमरा देख के बचपने से हर मनके जड़े बाल एही लिए हमरा नाम हरमन केजड़ेबाल।
अमिताभ रंजन झा
Monday, April 15, 2013, Edited on 9/1/2014
http://amitabh-jha.blogspot.in/2013/04/blog-post_4696.html
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