गांव में कभी नाम लगाया जाता था। दो दोस्त एक दुसरे के लिए एक ही नाम का प्रयोग करते थे। स्नेह, प्रेमकुमर, गुलाबजल, डिअर।
कि स्नेह - त - हाँ स्नेह, कि प्रेमकुमार - त - हाँ प्रेमकुमार, कि गुलाबजल - त - हाँ गुलाबजल, कि डिअर - त - हाँ डिअर।
घर घर में नामकरण का भी रिवाज होता था। कितने सारे पुकारू नाम। बूरहा, बौवा, लाल, बड़का, छोटका, छोटू, नूनू, पढ़ुआ। बाबा, दादा, नाना, कक्का, मामा, पीसा, मौसा, भाईजी सबके लिए।
बौवा नाम तो हर घर में हर जनरेशन में होता। बौवा भाईजी, कक्का, मामा। बगल के बूढ़ा बाबा दरवाजे पर पुकार लगाते "बौवा छी यौ"? एक साथ आवाज आती हाँ भाईजी, हाँ कक्का, हाँ बाबा।
जो बूढ़े होते वो बूरहा भय्या, कक्का, पीसा, मामा, मौसा।
जो बड़े वो बड़का। छोटे छोटका, छोटे, छोटू, नुनू। जो मंझले वो लाल। जो ज्यादा पढ़े लिखे विद्वान वो पढ़ुआ।
शिक्षा या व्यवसाय के हिसाब से भी नाम। मुखिया, मास्टर, मनेजर, डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, ओभरसियर।
स्त्रीलिंग भी होता। बडकी दाय, दादी, नानी, काकी, मौसी, मामी, दीदी। डॉक्टर काकी, वकील मामी।
नामकरण के अनेक कारण होते। संजुक्त परिवार होता था, बड़ा सा। एक घर में दस कक्का। एक कक्का कभी बोले, बाबूजी के कहियौन कक्का बजा रहल छैथ। बाबूजी पूछे "कून कक्का"? इंजिनियर कक्का!
अपने से बड़े का नाम लेना कुसंस्कार माना जाता, ये दूसरा कारण। और जब ये कोई पुकारू नाम लेकर पुकारता तो समझ जाते, कोई घर का है। बहार वाले फॉर्मल नाम बुलाते। ये अलग फायदा।
घर आई नयी बहू का भी नया नाम रखा जाता। उमरावती, कुसुमावती, कलावती, पद्मावती, राधे बौवासीन, श्यामा बौवासीन। उद्देश्य शायद ये कि उनका ससुराल में आना नए जनम की शुरुवात। सो नया नाम। दूसरा कारण ये कि जो उनका नाम होता वो पहले से घर में किसी का होता।
घर में जो काम करनेवाली होती उनका नाम उनके गांव से नाम से जोड़ कर बनता। भज्परौल वाली, रामनगर वाली।
समय बदलना शुरू हुवा। दादी माँ, काकी माँ का प्रचलन शुरू हुआ। हम कक्का, मामा, दीदी, भाईजी को नाम से बुलाने लगे।
हम बड़े होते गए। शिक्षा और नौकरी के लिए घर से, रिश्तों से दूर होते गए। हमारे बच्चे उस अपनापन से दूर।
पता भी नहीं चला कि कब हम पिज़्ज़ा, बर्गर, कोका कोला, लेज़, पेस्ट्री पर पलने वाले नुक्लेअर फॅमिली बन गए।
अब सारे रिश्तेदार को नाम के साथ पुकारते हैं बच्चे।
नितीश कक्का का जन्मदिन है आज, फेसबुक पर विश कर दीजियेगा।
- अमिताभ रंजन झा
कि स्नेह - त - हाँ स्नेह, कि प्रेमकुमार - त - हाँ प्रेमकुमार, कि गुलाबजल - त - हाँ गुलाबजल, कि डिअर - त - हाँ डिअर।
घर घर में नामकरण का भी रिवाज होता था। कितने सारे पुकारू नाम। बूरहा, बौवा, लाल, बड़का, छोटका, छोटू, नूनू, पढ़ुआ। बाबा, दादा, नाना, कक्का, मामा, पीसा, मौसा, भाईजी सबके लिए।
बौवा नाम तो हर घर में हर जनरेशन में होता। बौवा भाईजी, कक्का, मामा। बगल के बूढ़ा बाबा दरवाजे पर पुकार लगाते "बौवा छी यौ"? एक साथ आवाज आती हाँ भाईजी, हाँ कक्का, हाँ बाबा।
जो बूढ़े होते वो बूरहा भय्या, कक्का, पीसा, मामा, मौसा।
जो बड़े वो बड़का। छोटे छोटका, छोटे, छोटू, नुनू। जो मंझले वो लाल। जो ज्यादा पढ़े लिखे विद्वान वो पढ़ुआ।
शिक्षा या व्यवसाय के हिसाब से भी नाम। मुखिया, मास्टर, मनेजर, डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, ओभरसियर।
स्त्रीलिंग भी होता। बडकी दाय, दादी, नानी, काकी, मौसी, मामी, दीदी। डॉक्टर काकी, वकील मामी।
नामकरण के अनेक कारण होते। संजुक्त परिवार होता था, बड़ा सा। एक घर में दस कक्का। एक कक्का कभी बोले, बाबूजी के कहियौन कक्का बजा रहल छैथ। बाबूजी पूछे "कून कक्का"? इंजिनियर कक्का!
अपने से बड़े का नाम लेना कुसंस्कार माना जाता, ये दूसरा कारण। और जब ये कोई पुकारू नाम लेकर पुकारता तो समझ जाते, कोई घर का है। बहार वाले फॉर्मल नाम बुलाते। ये अलग फायदा।
घर आई नयी बहू का भी नया नाम रखा जाता। उमरावती, कुसुमावती, कलावती, पद्मावती, राधे बौवासीन, श्यामा बौवासीन। उद्देश्य शायद ये कि उनका ससुराल में आना नए जनम की शुरुवात। सो नया नाम। दूसरा कारण ये कि जो उनका नाम होता वो पहले से घर में किसी का होता।
घर में जो काम करनेवाली होती उनका नाम उनके गांव से नाम से जोड़ कर बनता। भज्परौल वाली, रामनगर वाली।
समय बदलना शुरू हुवा। दादी माँ, काकी माँ का प्रचलन शुरू हुआ। हम कक्का, मामा, दीदी, भाईजी को नाम से बुलाने लगे।
हम बड़े होते गए। शिक्षा और नौकरी के लिए घर से, रिश्तों से दूर होते गए। हमारे बच्चे उस अपनापन से दूर।
पता भी नहीं चला कि कब हम पिज़्ज़ा, बर्गर, कोका कोला, लेज़, पेस्ट्री पर पलने वाले नुक्लेअर फॅमिली बन गए।
अब सारे रिश्तेदार को नाम के साथ पुकारते हैं बच्चे।
नितीश कक्का का जन्मदिन है आज, फेसबुक पर विश कर दीजियेगा।
- अमिताभ रंजन झा
hmm achha hai sab yaad aa gaya.. kitane bhi pizza burger kha lo hum ye sab nahi bhool sakate ye saare naam hamare lahu me daurata hai ....
ReplyDeleteVisit aur comment ke liye dhanyavaad!
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