Saturday, March 16, 2013

पटना न्यू मार्केट - फ़्रंकफ़र्ट मेसे


पिछले हफ्ते जर्मनी के फ़्रंकफ़र्ट (माईन)में एक विज्ञान मेल में गया। रंग और रौशनी से नहाया हुआ। बेहद खुबसूरत बड़े छोटे स्टाल। नए प्रोडक्ट्स जिसे देखकर मुंह से निकले वाँव, अद्भुत! लोगो की भीड़। पांव रखने की जगह नहीं। एक स्टाल पे बहुत भीड़ थी। मैं भी पीछे खड़ा हो गया। प्रोजेक्टर पर एक शख्स नए प्रोडक्ट्स दिखा रहा था। वही भीड़ में एक आदमी पर नजर टिकी। ब्लैक सूट, हाथ में आई पैड। जैसे जैसे प्रोजेक्टर पर इमेज आते वो फोटो लेते जाता। स्क्रीन दर स्क्रीन। एक पल नजरे मिली फिर वो दुसरे स्टाल की तरफ बढ़ गया। आँखों ने अलग तरह का चोर देखा और चोरी भी। पुरानी बात याद आ गयी।


बात उन दिनों की है जब मैं हाई स्कूल में था। पटना के न्यू मार्केट में लगभग रोज का आना जाना था हर छोटे बड़े सामान के लिए। एक दिन की बात है, मैं मार्किट के पतली गली में घूम रहा था। ये वो जगह है जिसके के एक छोड़ पर हनुमान मंदिर है और दुसरे पर सब्जी बाजार। आधी सड़क पर कब्ज़ा दोनों तरफ दुकानदारो का, चौकी डाल दी, भरे बोरे रख दिए, ऊपर प्लास्टिक डाल दिया। और छोटे छोटे ठेले वाले सड़क के बीच में ठेले लगा देते। मार्केट में पांव रखने की जगह नहीं मिलती।

एक ठेले वाले से एक नेल कटर लिया। दूकानदार चौदह पंद्रह साल का लड़का ही था। उसको दस का नोट दिया। उसके पास खुदरा नहीं था। तभी एक और आदमी ठेले पर आया। लम्बा , दुबला पतला, सांवला। मटमैला सा धोती कुरता पहने। वो भी सामान देखने लगा। लड़के ने जो दाम बताया वो सुन कर जाने लगा। लड़का मुझसे बोला खुदरा ले के आते हैं। इधर लड़का गया और उधर वो आदमी वापस आया और झट से कुछ सामान ठेले से उठाया, कुर्ते के जेब में डाला. एक पल नजरे मिली और वो तेज कदम से भीड़ में गायब हो गया। ऐसा मैंने कभी देखा नहीं था। आँख के सामने चोरी दखी थी और चोर को भी। इस से पहले चोर के बारे में सुना था, अखबार में पढ़ा था। और चोर शब्द सुन कर सिहरन होती थी। पर उस समय जो देखा, स्तब्ध रह गया। चोर हमारी तरह इंसान निकला। एक पल के लिया सोचा हल्ला करूँ, चोर चोर। पर तरस आया, एक दो रूपये के सामान की बात थी।



-अमिताभ रंजन झा

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