Sunday, March 31, 2013

आई आई एम् के फाइनेंस अलुम्नि

संस्कृत हजारों साल पुरानी भाषा है। एक कहावत सुनते आये हूँ बचपन से।

यावत जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत।

जब तक जीना
सुख से जीना
ऋण ले के भी तुम
घृत पीते जाना।

जैसे जैसे समय बदलता
रीत भी बदलती जाती है।
रिवाजो का आधुनिकरण
उसे लुप्तप्राय होने से बचाती है।
घृत में बहुत है फैट कैलोरी
जैक डेनियल अब पी जाती है
पर ऋण लेने की पावन रश्मे
सद्भाव से अब भी की जाती है।।

नए युग की नयी पीढ़ी
हम इस सिद्धांत को
बड़े शिद्दत से आज भी
निभाते जाते हैं।
गृह, वाहन, निजी, शिक्षा
ओवरड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड
विवाह तलाक़, इजी क्रेजी
हर लोन लेते जाते हैं।

आज के साहूकार बैंकों का
मानता हूँ मैं बड़ा लोहा।
जरुरत मंदों का शिकार करते हैं
जरुरत न हो तो भी फँसा लेते हैं।।
सौ, हजार कमाने वालों की
समझ में आती है है मज़बूरी।
लाखों कमाने वालो को भी
ताउम्र के कर्ज में डूबा देते हैं।।

आई आई एम् के फाइनेंस अलुम्नि
बड़े निपुण शयाने होते हैं।
देश के हर बच्चे को कर्ज में
कैसे डुबाये जानते हैं।।
बैंक और वित्तीय संस्थान आज के
उन्हें मुंह मांगी तंख्वाह देते हैं।
वो स्कीम बनाते रहते ऐसे
हम स्किम्ड होते जाते हैं।।

सस्ते दर पर ही शायद पर
वो भी कर्ज उठाते हैं।
ऋण लेने की पुरानी परंपरा
परम भक्ति भाव से निभाते हैं।।
फोर्ड, एप्पल, अरमानी, पेंटहाउस,
बिज़नस क्लास यात्रा, रिक्रिएशन,
फाइव स्टार, रिसोर्ट वेकेशन
सुख हर एक उठाते हैं।।

- अमिताभ रंजन झा।

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