ज़माने का सौतेलापन
क्यों है हम जैसो से?
कोई बुद्धू समझता है
कोई कहता हमें संपोला ।।
पीठ पीछे बेदर्दी से
भोंके विष भरा खंजर।
सामने हो जब हमारे
ओढ़े अपनेपन का वो चोला।।
आखिर हम भी इंसा हैं
बिलकुल उनके ही जैसे।
हमारे भी तो अरमां हैं
और सीने में है एक शोला।।
क्या हुआ जो है हम सच्चे,
हमको छल नहीं आती?
नर्वस हो जाते हैं जब कभी,
तुतलाते भी हैं थोला।।
बहुत आसानी से सबका
हम विश्वास करते हैं।
फायदे के लिए हम जैसो का
कभी मन नहीं डोला।।
बेवफाई बेईमानी का अब तक
हमसे न कोई नाता।
ये जहर लहू में अपने
हमने अब तक न घोला।।
जलते घांव बाहर हमारे
जिस्म पर नहीं दीखते।
अन्दर झांके जब कोई
पाए बस दर्द और फफोला।।
मोहब्बत अपनी आदत
तिजारत उनकी है फितरत।
हम प्यार से मरते रहे
उन्होंने स्वार्थ से हमें तोला।।
दुनिया है बड़ी सायानी
बेशक समझती है।
हमें झुकाने के खातिर न चाहिए
बम तोप का गोला।।
भावुक, दयालु हम लजाते हैं,
हिचकिचाते हैं न कह न पाते हैं।
कोई भी जीत ले हमको
बस दे के प्यार भरा एक झोला।
हमारे सीधेपन को वो समझे
क्यों कायरता या कमजोरी?
खाक में मिल जाये कितने
जो हमने मुंह जरा खोला।।
दबा के आँशु आँखों में
रिमझिम हम बरसते हैं।
जो फट जायेंगे एक दिन
हम बरसेंगे बन के ओला।
एक माँ ही है जो मेरे
तन मन में बसती है।
वो ही है जिसने
सदा कहा मुझको भोला।।
दुनिया की बातें
जब सुन के रोता मैं।
गले लगा के कहती
जहाँ में मैं सबसे अलबेला।।
-अमिताभ रंजन झा
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